उत्तराखंड

पहाड़ की इस शख़्सियत को दिल्ली में महान क्रिकेटर कपिल देव देंगे दधीचि सम्मान

जेपी की 'रिंगाल क्रांति': पहाड़ की हस्तशिल्प कला को दिलाई नई पहचान

जेपी की ‘रिंगाल क्रांति’: पहाड़ की हस्तशिल्प कला को दिलाई नई पहचान

संजय चौहान

जेपी नाम से विख्यात जगदम्बा प्रसाद मैठाणी ने दम तोड़ती हस्तशिल्प कला में जान फूँक दी है। रिंगाल क्रांति के ज़रिए वह न केवल स्थानीय लोगों को रोज़गार दे रहे हैं, वहीं विरासत में मिली इस कला को सँजोए रखने का काम भी कर रहे हैं। इस उपलब्धि पर 16 सितम्बर के दिन दिल्ली में पूर्व क्रिकेटर कपिल देव उन्हें दधीचि पुरुस्कार से सम्मानित करेंगे।

अलकनंदा नदी के बायीं ओर पहाड़ की गोद में बसे पीपलकोटी (चमोली) कस्बे ने राज्य बनने के बाद बहुत तेजी से अपनी अलग पहचान बनाई है। जनांदोलनों की इस धरती ने कई मर्तबा जनपद ही नहीं बल्कि सूबे को भी गौरवान्वित होने का मौका दिया है। यहां के युवाओं नें हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। इन दिनों एक बार फिर से पीपलकोटी सुर्ख़ियों का केंद्र बना हुआ है। इसकी वजह है जेपी की रिंगाल क्रांति और उन्हें मिलने जा रहा दधीचि सम्मान।  पीपलकोटी-नौरख गांव निवासी जगदम्बा प्रसाद मैठाणी की आगाज संस्था को देश की राजधानी दिल्ली में दधीचि पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है।

जेपी की 'रिंगाल क्रांति': पहाड़ की हस्तशिल्प कला को दिलाई नई पहचान

जेपी को मिलेगा दधीचि सम्मान

जेपी ने कभी भी हार नहीं मानी और अपना सफ़र जारी रखा। पहाड़ को सदैव प्रेरणास्रोत और नदियों से कुछ करने की शक्ति मिलने की बात कहने वाले जेपी ने रिंगाल क्रांति के जरिये उपेक्षित और हाशिये पे जा चुकी पहाड़ के हस्तशिल्प कला को नई पहचान दिलाई। उन्होंने 2001 में उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद और यूएनडीपी/ जीईएफ/ एसजीपी के सहयोग से पीपलकोटी में प्रदेश के पहले बायोटूरिज्म पार्क और आजीविका वाटिका की स्थापना की। पहले एसएफसीआईडी और फिर आगाज के जरिये जेपी ने स्थानीय ग्रामीणों को हस्तशिल्प की आधुनिक ट्रेनिंग कराई और हस्तशिल्पयों के हुनर को निखार कर उन्हें रिंगाल के नये नये डिज़ाइन बनवाने में प्रशिक्षित किया।

अभी तक वे पीपलकोटी बायोटूरिज्म पार्क में विभिन्न जनपद के विभिन्न गांवो के 500 से अधिक ग्रामीणों को हस्तशिल्प में प्रशिक्षित करा चुके हैं। इन हस्तशिल्पयों को वर्तमान बाजार की मांग के अनुरूप 200 से भी अधिक डिजाइन तैयार करना सिखाया, ताकि ये इनका निर्माण कर खुद भी स्वरोजगार कर सकें। इनके द्वारा प्रशिक्षित 20 से अधिक मास्टर ट्रेनर आज देश के विभिन्न हिस्सों में रिंगाल की ट्रेनिंग देते हैं। अब तक रिंगाल से विभिन्न मंदिरों के डिजाइन, फूलों की टोकरी, प्रसाद की टोकरी, लैंप सेड, कलमदान, फूलदान, मेज, सोफे, स्टूल, बेम्बो हट, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टविन, सहित लगभग 200 डिजायन स्थानीय हस्तशिल्पयों द्वारा तैयार किये जा चुके है।

अभी तक वे पीपलकोटी बायोटूरिज्म पार्क में विभिन्न जनपद के विभिन्न गांवो के 500 से अधिक ग्रामीणों को हस्तशिल्प में प्रशिक्षित करा चुके हैं।

जेपी पीपलकोटी बायोटूरिज्म पार्क में विभिन्न जनपद के विभिन्न गांवो के 500 से अधिक ग्रामीणों को हस्तशिल्प में प्रशिक्षित करा चुके हैं।

वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी शैलेश बगोली, बद्रीनाथ मंदिर समिति और स्थानीय व्यापार संघ बद्रीनाथ के सहयोग से 4 साल तक बद्रीनाथ में प्रसाद के लिए रिंगाल की 68 हजार टोकरी तीर्थयात्रियों को मुहैया करवाई। जिससे न केवल हस्तशिल्पयों को काम मिला अपितु रोजगार के अवसर भी बढ़े। स्थानीय उत्पादों, लकड़ियों से ज्वैलेरी निर्माण से लेकर डांस कंडाली भांग के रेशों से कपडा निर्माण, बुरांस, माल्टा, निम्बू, आंवला, बेल, सहित स्थानीय उत्पादों के जूस, जैम, अचार बनाने का प्रशिक्षण भी समय-समय पर ग्रामीणों को दिया जाता है।

वृक्षारोपण के लिये लोगों को इनकी नर्सरी से विभिन्न प्रजाति के फलदार और अन्य पेड़ पौधे आवंटित किये जातें है। साथ ही लोगों को जल, जंगल, पर्यावरण से संबधित जानकरियों दी जाती है। पीपलकोटी में देहरादून की लींची, कश्मीर के छोटे प्रजाति के सेब, चीकू के पेड़ लगाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। आज ये सब पेड़ फल देने लगे हैं। इसके अलावा गांवो के ग्रामीणों को जंगलों को आग से बचाने, स्वच्छता, आपदा से बचाव, जलजनित रोगों से रोकथाम, जंगली जानवरों से बचाव, पशु क्रूरता अधिनियमों की जानकारी, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, महिला अधिकारों की जानकारियाँ ग्रामीणों को दी जाती है।

 

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