उत्तराखंड

मंत्री जी, इस ‘दबंगई’ से नहीं होगा शिक्षा का कायाकल्प..

मंत्री यानी सरकार, सरकार मतलब विश्वसनीयता, जिम्मेदारी, मर्यादा और गरिमा । लगता है प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार के मंत्री अपने पब्लिसिटी स्टंट के चक्कर में यह भूल चुके हैं। वह भूल चुके हैं उस शपथ को जो उन्होंने मंत्री के रूप में ली है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने दो दिन पहले स्कूल में औचक निरीक्षण के दौरान एक शिक्षिका को जिस तरह बेइज्जत किया वह अपने आप में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मंत्री के वीडियो को देखकर कर ऐसा लग रहा है कि मानो यह कोई फिल्मी दृष्य है, जिसमें कोई खलनायक अपनी दबंगई दिखा रहा है।

शिक्षा का सीधा ताल्लुक है तहजीब से, मर्यादा से नैतिकता से आत्मसम्मान से और अनुशासन से। यदि एक शिक्षा मंत्री में इन सब गुणों का अभाव है तो फिर किसी भी शिक्षक से रूबरू होने से पहले शिक्षा मंत्री को खुद शिक्षित होने की आवश्यकता है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने छात्रों के सामने जिस तरह एक शिक्षक के साथ व्यवहार किया वह बेहद आश्चर्यजनक है। सवाल यह उठता है कि मंत्री ऐसा करके और इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल कराकर क्या साबित करना चाहते हैं? क्या यह कि, वह बहुत काबिल हैं, या क्या यह कि, उनके शिक्षक नाकाबिल हैं ? मंत्री जी जिस तरह से सवाल पूछते नजर आ रहे हैं उसमें उनकी ‘काबिलयत’ तो साफ नजर आ रही है। मंत्री जी मानो पहले से ही तय करके बैठे थे कि उन्हें हर हाल में शिक्षिका को गलत साबित करना है।

अगर यह मान भी लिया जाए कि शिक्षिका को विषय ज्ञान नहीं है तो फिर यह कमी सरकार की है, उस चयन बोर्ड या आयोग की है जिसने नाकाबिल शिक्षक-शिक्षिकाओं का चयन किया है। मंत्री शायद यह भी भूल रहे हैं कि वह कोई थानेदार या माफिया की भूमिका में नहीं बल्कि एक संवैधानिक पद पर बैठे जनप्रतिनिधि हैं। आम जनता बतौर मंत्री उनसे मर्यादित और शालीन व्यवहार की उम्मीद करती है।
मंत्री जी के वीडियो से एक बात साफ है मंत्री जी अभी तक स्टंट से बाहर नहीं आ पाए हैं। जबकि जो मंत्री आज क्लास रूम में शिक्षकों पर सवाल खड़े कर रहे हैं, वह पांच महीने के अपने कार्यकाल में खुद कटघरे में हैं। मंत्री जी क्या यह दावा करने की स्थिति में हैं कि कोई भी शिक्षक-शिक्षिका आज सचिवालय, निदेशालय या अन्यत्र कहीं संबद्ध नहीं है? मंत्री आज तक अपनी यह घोषणा पूरी नहीं कर पाए। आज भी तमाम शिक्षक स्कूलों में तैनात होने के बजाय कार्यालयों में संबद्ध हैं। क्या मंत्री जी ने कांग्रेस शासन के अंतिम समय में हुए तमाम सिफारिशी तबादले रद्द कर दिये? हकीकत यह है कि कोई तबादला रद्द नहीं हुआ। सबको तैनाती मिल चुकी है। नहीं हुए तो सिर्फ अनुरोध वाले वो तबादले नहीं हुए जो कि वर्षों से बाट जोह रहे हैं। क्या मंत्री जी तबादला कानून ला पाए? सच यह है कि मंत्री जी खुद इसके पक्षधर नहीं हैं।

पब्लिक स्कूलों पर शुरुआती तेवर भी हवा हो चुके हैं। स्कूलों के हाल जरूर वही पुराने हैं। सुचिता का आलम यह है कि देहरादून से लेकर रुद्रपुर तक एक ही अधिकारी का एकछत्र राज अपने आप में एक पहेली है। स्कूलों में ड्रेस कोड लागू करने की मंत्री जी की योजना अभी तक परवान नहीं चढ पई है। जो मंत्री यह दावा कर रहे थे कि वह खुद भी ड्रेस पहनेंगे उन्होंने आज तक खुद क्यों ड्रेस नहीं पहनी।
बहरहाल मंत्री अगर यह सब प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प करने के मकसद से कर रहे हैं तो फिर मंत्री जी गलत राह पर हैं। शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय अगर वाकई शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प करना चाहते हैं तो उन्हें दिल्ली से सीख लेनी चाहिए। वहां सरकार ने स्कूलों का शिक्षा स्तर उठाने के लिए शिक्षकों का स्तर उठाया है। दिल्ली सरकार शिक्षकों को देश-विदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में भेज रही है, ताकि शिक्षक स्वप्रेरित हों। इसके अलावा स्कूलों में छात्रों व शिक्षकों के लिये आवश्यक संसाधन और सुविधाएं प्राथमिकता के तौर पर जुटाई गई हैं।

दिल्ली सरकार अगर आज करोड़ों रुपये प्रचार पर लुटा रही है तो वह काम के प्रचार पर लुटा रही है, उत्तराखंड की तरह नहीं कि जमीन पर कुछ नहीं और हवा में सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट। सरकार को, शिक्षा मंत्री को समझना होगा कि सिर्फ स्टंट से, बयानबाजी से या दबंगई दिखाकर नहीं बल्कि शिक्षा का कायाकल्प तो शिक्षकों को विश्वास में लेते हुए उन्हें जिम्मेदारी का अहसास कराते हुए धरातल पर काम करने से ही संभव है।

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