उत्तराखंड

मुख्यमंत्री आवास को आशियाना बनाने वाले नेताओ की वक़्त से पहले हुई विदाई..

मुख्यमंत्री आवास को आशियाना बनाने वाले नेताओ की वक़्त से पहले हुई विदाई..

उत्तराखंड: दसवें मुख्यमंत्री के तौर पर तीरथ सरकार ने कामकाज संभाल लिया है , लगता है तूफ़ान थम सा गया है और मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पिछली सरकार के तथाकथित दाग धोने में जुट गए हैं। लेकिन एक मिथक है जिस पर सबकी नज़र फिर आ कर टिक गई है और वो है 10 एकड़ में फैला एक आलीशान बंगला, देवभूमि के सबसे ताकतवर शख्स के सरकारी निवास मुख्यमंत्री आवास की। 60 कमरों वाले अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित इस मुख्यमंत्री आवास की दहलीज को पार करने के लिए 70 विधायकों वाली विधानसभा में तमाम ऐसे विधायक होते हैं जिन का सपना होता है कि वो भी इसकी चौखट को एक बार लांघ सकें जिसके लिए तमाम जोड़ तोड़ , साजिश , खेमेबंदी , और सियासी खेल भी किये जाते रहे हैं।

 

बीते 20 सालों में तमाम मुख्यमंत्री आये और चले गए लेकिन पीछे रहा गया वो अपशगुन जो एक बार फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भारी पड़ा है। भाजपा हो या कांग्रेस जब भी इन पार्टियों ने प्रदेश में सरकार बनाई और उनका चुना हुआ मुख्यमंत्री इस भव्य मुख्यमंत्री आवास में रहने आया उसकी विदाई हमेशा विवादों के साथ हुई है। जब जब सरकारें बदली हैं गिरी हैं या नेतृत्व परिवर्तन हुआ है तब तब केंद्र में इसी बंगले की भूमिका नज़र आई है। एक बार फिर जब त्रिवेंद्र सिंह रावत की बड़े नाटकीय अंदाज में विदाई हो चुकी है तो एक बार फिर देहरादून के कैंट रोड पर बने इस सीएम आवास के अतीत पर सबकी नजरें जा रही हैं। दरअसल सियासत हो या ब्यूरोक्रेसी जब से ये आलीशान मुख्यमंत्री आवास बना है तब से इस विशाल मुख्यमंत्री आवास को लोग मनहूस मानते हैं। वैसे भी देवभूमि उत्तराखंड देवी-देवताओं मान्यताओं और पहाड़ के अनगिनत कुल देवताओं के तीर्थ स्थल के रूप में दुनिया भर में पूजी जाती है और यहां अनगिनत परंपराएं निवास करती हैं लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री आवास को लेकर इतिहास बताता है वह अपने आप में दिलचस्प है और रोमांचक भी है।

 

उत्तराखंड की सियासत में अतीत के पन्ने पलटने पर कई मुख्यमंत्रियों का नाम जेहन में आता है। वर्तमान एचआरडी मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक रहे हों या पूर्व सीएम विजय बहुगुणा या फिर एक्स सीएम बीसी खंडूरी ,मनहूसियत का वो सिलसिला आज पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भी कहीं न कहीं सच साबित हुई है। जो भी इस आलीशान भवन में एक मुख्यमंत्री के तौर पर रहने गया है उसकी विदाई समय से पहले और बड़े नाटकीय अंदाज में हुई है हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जब सत्ता संभाली तो इस भ्रम को तोड़ते हुए या यूं कहें कि इस मिथक को तोड़ते हुए 2017 में ही यहां प्रवेश कर लिया था और खास बात यह है कि उन्होंने गृह प्रवेश के लिए जो दिन चुना था वह नवरात्रि का था लेकिन आज के हालात को देखकर लगता है कि ना तो वह पूजा काम आई ना वह मंत्र काम आए और ना वह भरोसा क्योंकि एक बार फिर यह मुख्यमंत्री आवास पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के लिए मनहूस साबित हुआ है।

 

हांलाकि कांग्रेस राज में जब हरीश रावत ने विजय बहुगुणा से सत्ता संभाली थी तब उन्होंने इस आवास में रहने से इंकार कर दिया था और बीजापुर गेस्ट हाउस को ही अस्थाई मुख्यमंत्री आवास बनाकर अपना कार्यकाल पूरा किया था तो क्या यह मान लिया जाए कि वाकई में मुख्यमंत्री आवास एक मनहूस इमारत है जहां प्रचंड बहुमत वाली भाजपा के मुख्यमंत्री को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ गई अब अगर इस भवन की भव्यता की बात करें तो इस बंगले को पहाड़ी स्टाइल में खूबसूरत पत्थरों के द्वारा ऊंचे ऊंचे कमरों की स्थापत्य कला को बड़ी बारीकी से तराशते हुए तैयार किया गया है जिसका निर्माण 16 करोड़ की लागत से साल 2010 में किया गया था। इस विशाल भवन की देखरेख में भी बड़े पैमाने पर कर्मचारी और अधिकारी तैनात रहते हैं सुरक्षा कर्मियों पर भी राज्य सरकार का बड़ा बजट खर्च होता है। अब इस बात पर जब सबकी नज़र है तो मुझे भी इंतज़ार है कि मुख्यमंत्रियों की किस्मत पर ग्रहण लगाने वाले इस मनहूस सीएम आवास का आने वाला भविष्य क्या होगा।

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