उत्तराखंड

उत्तराखंड का वीर सपूत सीमा पर शहीद

देहरादून : देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को बलिवेदी पर चढ़ाने वाले वीर उत्तराखंड ने दिए हैं। इन वीरों ने कभी भी अपनी जान की परवाह नहीं की। आपको जानते ही होंगे कि जम्मू कश्मीर में बॉर्डर पार से आ रहे आतंकी लगातार हमारे वीर जवानों के सीने को छलनी कर रहे हैं। जम्मू के रिहायशी इलाके सुंजवां में सेना के कैंप पर शनिवार को सुबह आतंकियों ने हमला कर दिया। इस हमले में एक जेसीओ समेत 6 जवान शहीद हुए। इस फिदायीन हमले में उत्तराखंड के सपूत राकेश रतूड़ी घायल हुए थे। दुखद खबर है कि वो अब हमारे बीच नहीं रहे, आतंकियों से लड़ते लड़ते उन्होंने अपने प्राणों का कुर्बान कर दिया। राकेश रतूड़ी मूलरूप से श्रीनगर विधानसभा के थलीसैण ब्लाक के सांकर गांव के रहने वाले थे। शहीद के माता और पिता गांव में रहते हैं। शहादत की खबर पाकर मां और पिता के आंसू थम नहीं रहे।
राकेश रतूड़ी का परिवार देहरादून के प्रेमनगर में रहता है। प्रेमनगर के बड़ोंवाला क्षेत्र में उनका घर है। गम इस बात का भी है कि राकेश रतूड़ी अपने पूछे अपनी पत्नी और दो बच्चों को छोड़कर चले गए। पत्नी को जब ये खबर मिली तो वो सन्न रह गईं। दो बच्चों को इस दुनिया में छोड़ कर पिता पर देश को गर्व है। इस पिता ने साबित किया है कि उत्तराखंड के वीरों ने हर बार देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह तक नहीं की। सुजवां में शनिवार सुबह तीन से चार आतंकी सेना के कैंप में घुस गए। आतंकियों ने संतरी के बंकर पर फायरिंग की थी। इसके बाद वो दो ग्रुपों में बंटकर कैंप के अंदर घुस गए। इसके बाद आतंकियों ने एक और घिनौती हरकत की थी। वो कैंप में सेना के परिवारों के लिए बनाए गए फ्लैट में जाकर छिप गए। आतंकियों के खात्मे के लिए सौ से ज्यादा राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों ने मोर्चा संभाला था।
इसके अलावा इस हमले में सूबेदार मदन लाल चौधरी आतंकियों से निहत्थे हड़े थे। उन्होंने निहत्थे ही आतंकवादियों का मुकाबला किया। उन्होंने अपने सीने में गोलियां खाईं लेकिन ये सुनिश्चित किया कि हमलावर उनके परिवार को नुकसान ना पहुंचा पाये। मदन लाल चौधरी पर आतंकवादियों की एके 47 राइफल से गोलियां दागी थी। उड़ी हमले के बाद ये दूसरी बार है जब आतंकियों ने सेना के बेस कैम्प को अपना निशाना बनाया और एक बड़ा हमला किया। सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 4 आतंकियों का खात्मा कर दिया है। ये याद रखें कि अगर आप आज चैन की नींद सो पा रहे हैं, तो इन जवानों की बदौलत ही ये संभव है। राकेश रतूड़ी तो चले गए लेकिन अपने परिवार को अपने पीछे अकेला छोड़कर चले गए। देश के इस वीर सपूत को राज्य समीक्षा का सलाम

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