जौनसार-बाबर के कालसी और चकराता ब्लॉक के लगभग 200 गांव, खेड़े और मजरों में गुरुवार से बूढ़ी दीवाली का पारंपरिक उत्सव धूमधाम से शुरू हो गया। गुरुवार को खत देवघार और खत शैली क्षेत्र में विशेष पूजा-अर्चना और पर्व की रस्में निभाई गईं। सुबह से ही मंदिरों में देवदर्शन के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। चकराता और कालसी ब्लॉक के गांवों में बूढ़ी दीवाली की सदियों पुरानी परंपराएँ, लोकगीत और नृत्य मुख्य आकर्षण रहे। पंचायती आंगनों में ग्रामीणों ने सामूहिक नृत्यों के साथ हारुल की स्वर लहरियाँ बिखेरीं। पहले सितलू मोडा की हारुल और फिर कैलेऊ मैशेऊ की हारुल की गूंज पूरे क्षेत्र में सुनाई दी।
सुबह चार बजे परंपरा के अनुसार ग्रामीण भीमल की मशालें लेकर नाचते-गाते हुए बाहर निकले और होलियात प्रज्वलित कर पर्व का शुभारंभ किया। ढोल, दमाऊं और रणसिंघे की धुनों के बीच देर रात तक लोकसंगीत और नृत्य का सिलसिला चलता रहा। बूढ़ी दीवाली पर मंदिरों में भारी भीड़ देखने को मिली। कहीं महासू देवता, कहीं शिलगुर विजट, चुड़ेश्वर महाराज, तो कहीं भगवान परशुराम के दर्शन के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। सभी ने घर-परिवार की समृद्धि और शांति की कामनाएँ कीं।
पुरातात्विक महत्व वाले प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की। लाखामंडल शिव मंदिर, डिमऊ का परशुराम मंदिर, सिमोग का शिलगुर विजट मंदिर, लखवाड़ का महासू मंदिर, थैना और बुल्हाड़ में आस्था का सैलाब देखने को मिला।