उत्तराखंड

आपदा के चार साल बाद भी नहीं बना पुल, फिर ट्रॉली से सफर करेंगे ग्रामीण

मंदाकिनी नदी के पार बसे ग्रामीणों की मुसीबतें बढ़ी, जल स्तर बढ़ने से अस्थाई पुलिया को हटाया 

जान हथेली पर रखकर सफर कर रहे ग्रामीण, शासनप्रशासन के दावे सिर्फ खोखले ही हुए साबित 

हरीश गुसाईं

अगस्त्यमुनि। बरसात शुरू होते ही मन्दाकिनी नदी के पार बसे ग्रामीणों की मुसीबतें भी बढ़ने लगी हैं। एक बार पुनः उन्हें जान हथेली पर रखकर ट्राॅलियों से सफर करना उनकी नियति बन गई है। शासन-प्रशासन द्वारा इस वर्ष भी पैदल पुलों का निर्माण पूर्ण होने का आश्वासन भी धरा रह गया। मन्दाकिनी का जल स्तर बढ़ने के साथ ही लोनिवि ने विजयनगर, गबनी गांव एवं चन्द्रापुरी में बनाये गये अस्थाई पैदल पुलों को हटा दिया है, जिससे हजारों ग्रामीणों को ट्रॉली से सफर करने को मजबूर होना पड़ेगा। अभी तो भीड़ कम है इसलिए यह आसान लग रहा है, मगर अगले हफ्ते से स्कूल काॅलेजों के खुलने के साथ ही ट्राॅलियों पर भी आवागमन का बोझ बढ़ेगा। क्योंकि अधिसंख्य छात्र-छात्रायें नदी पार से ही आते हैं। ऐसे में स्कूल टाइम पर ट्रालियों में सवारियों का दबाव ज्यादा रहेगा। जो कि दुर्घटना का सबब भी बन सकता है। ऐसे में हजारों ग्रामीण जनता की जीवन रेखा की नियति तारों में झूलने की बन जायेगी।

दरअसल, वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा में मन्दाकिनी नदी पर बने सभी पैदल पुल आपदा की भेंट चढ़ गये थे। आपदा को चार वर्ष गुजर जाने के बाद भी सरकार एक अदद पुल का निर्माण नहीं कर सकी है। मात्र सिल्ली में ही पुल बने हैं वह भी दो पुल एक ही स्थान पर। जबकि विजयनगर एवं चन्द्रापुरी में पुल की अधिक आवश्यकता थी, लेकिन इन स्थानों पर निर्माण की गति कछुवा चाल से चल रही है। जबकि इन स्थानों पर पुल निर्माण को लेकर जनता ने बड़े आन्दोलन किए। धरना-प्रदर्शन से लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम भी लगाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। इस वर्ष नये जिलाधिकारी के रूप में युवा तुर्क मंगेश घिल्डियाल ने कार्य भार सम्भाला और त्वरित गति से फैसले लिए। इससे भी जनता में आस बढ़ी। जिलाधिकारी ने भी सबसे अधिक ध्यान पैदल पुलों पर दिया और इसका प्रतिफल भी दिखा। जब वर्षों से पुलों का अटके निर्माण कार्य में तेजी आई, मगर परन्तु यह तेजी भी इस वर्ष ग्रामीणों को ट्राॅली से सफर करने की परेशानी से निजात नहीं दिला पाई।

विजयनगर झूला पुल निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह रावत का कहना है कि ये पुल केवल रास्ते पार करने के साधन भर नहीं थे, ये हमारी जीवन रेखा के भी पुल थे। पुलों के निर्माण के लिए हर सम्भव प्रयास किए। धरना प्रदर्शन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम करने के अलावा मन्त्रियों का भी घेराव किया। हर बार सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिला।  जिला पंचायत सदस्य सुलोचना का कहना है कि आपदा को गुजरे चार वर्ष हो गये हैं। नदी से आर पार जाना कठिनाइयों भरा है खासकर नौनिहालों के लिए। ट्राॅली पर लगती बच्चों की लम्बी कतारें देखकर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि सब बच्चे सुरक्षित पार हो जायें। कई बार आन्दोलन कर चुके हैं। आगे भी करेंगे, मगर अधिकारियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है।

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