उत्तराखंड

दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाँध होगा पंचेश्वर

प्रभावितों के लिए पुनर्वास में जमीन या मकान देने का प्रावधान नहीं

पूनम पांडे
उत्तराखंड में अगले साल से पंचेश्वर बांध का निर्माण शुरू होना है। ऐसे में सरकार ने बुधवार से जनसुनवाई शुरू कर दी है जिसमें बांध को लेकर लोगों की शिकायतें सुनी जानी हैं। हालांकि बांध को लेकर स्थानीय लोगों से लेकर राजनीतिक दलों तक ने विरोध तेज कर दिया है, जिससे इस परियोजना को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। यह बांध बनकर तैयार हो गया तो यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा। अभी शंघाई स्थित थ्री जॉर्ज्स डैम दुनिया का सबसे बड़ा बांध है।यह काली नदी पर बनना है जिसमें नेपाल का भी हिस्सा है। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के कुछ हिस्से को कवर करेगा। 1954 में जवाहर लाल नेहरू ने पंचेश्वर बांध की बात कही थी। तब से अलग-अलग स्तर पर इसे बनाने को लेकर बातें होती रही हैं। अब बांध बनने के लिए जनसुनवाई शुरू हुई है। बुधवार को चंपावत से जनसुनवाई शुरू हुई। 11 तारीख को पिथौरागढ़ और 17 को अल्मोड़ा में जनसुनवाई होनी है। इसकी डिटेल प्रॉजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से बांध का काम शुरू हो जाएगा और साल 2026 तक काम पूरा करके बांध में पानी भरना शुरू हो जाएगा। पानी पूरा भरने में 2 साल लगेंगे और 2028 तक यह पूरा हो जाएगा। पंचेश्वर बांध के साथ ही एक और छोटा बांध रुपाली गाड़ बांध भी बनना है।

रेल के सपने का क्या : असल में राज्य की कांग्रेस पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल सहित सभी छोटी पार्टियां और सामाजिक संगठन बांध का अलग-अलग वजहों से विरोध कर रहे हैं। हाल ही में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी रैली में पीएम नरेंद्र मोदी ने पंचेश्वर बांध का जिक्र करते हुए कहा था कि इससे मिलने वाली बिजली से न सिर्फ उत्तराखंड को फायदा होगा बल्कि भारत के दूसरे इलाकों में भी अंधेरा दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि इस पर भी लोग चर्चा कर रहे हैं कि अगर बांध बना तो पहाड़ों में रेल आने का सपना महज सपना रह जाएगा क्योंकि दशकों से जिस टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन की मांग हो रही है और जिसका सर्वे 1922 में ही हो गया था, वह पूरा इलाका डूब क्षेत्र में आ जाएगा।
मगर बिजली पानी का फायदा
पंचेश्वर और रुपाली गाड़ बांध बन जाने से 5 हजार मेगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा होगी। इसमें से 13 फीसदी बिजली उत्तराखंड को मुफ्त मिलेगी। सिंचाई के लिए इतना पानी मिलेगा जिससे 16 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकेगी। सिंचाई का पानी यूपी को भी मिलेगा और नेपाल को भी। विदेश नीति की दृष्टि से भी यह बांध भारत को फायदा पहुंचाएगा। इसके जरिए नेपाल भारत के और करीब आएगा। कुछ वक्त पहले नेपाल में चले मधेसी आंदोलन के दौरान नेपाल में भारत के खिलाफ गुस्सा दिखा था लेकिन इस बांध के जरिए भारत-नेपाल की दोस्ती और मजबूत हो सकेगी।

पुनर्वास का प्रावधान नहीं
बांध की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट में प्रभावितों के लिए पुनर्वास में जमीन या मकान देने का प्रावधान नहीं है। उत्तराखंड क्रांति दल नेता काशी सिंह ऐरी ने कहा कि प्रभावितों के लिए 6 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर जमीन का प्रावधान रखा है साथ ही प्रति मकान दो लाख रुपये का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में किसी के पास एक हेक्टेयर जमीन नहीं होती है। किसी के पास बहुत ज्यादा है तो भी वह आधी हेक्टेयर ही होगी। ऐसे में जमीन और मकान डूबने पर उन्हें 4-5 लाख रुपये ही मिलेंगे। इस राशि से कैसे कोई दूसरी जगह बस सकता है। जिनका सबकुछ चला जाएगा उनके पुर्नवास का ठोस इंतजाम हो।

भूस्खलन झेलेगा कुमाऊं
पर्यावरणविदों का कहना है कि जब अमेरिका जैसे देश पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और नुकसान को देखते हुए बड़े बांधों को तोड़ रहे हैं तो यहां इतना बड़ा बांध बनाने की क्या जरूरत। माटू संगठन के विमल भाई ने कहा कि टिहरी बांध बनने के 10 साल बाद भी लोगों का पुनर्वास सही से नहीं हो पाया। टिहरी की झील लगातार फैल रही है और भूस्खलन बढ़ा है। यह हिस्सा मध्य हिमालय का वह हिस्सा है जो अभी भी बनने के दौर में है। यहां जितनी बड़ी झील बनेगी उससे कुमाऊं का मौसम चक्र बदलेगा। लोकल मॉनसून भी यहां बनेगा और साल भर बारिश होने से लोगों को साल भर भूस्खलन का दंश झेलना होगा।

जन सुनवाई की प्रक्रिया गलत
स्थानीय लोग इस बात का विरोध कर रहे हैं कि जनसुनवाई की सूचना प्रभावित इलाकों तक सही से नहीं पहुंचाई गई। ‘महाकाली की आवाज’ संगठन के संयोजक शंकर खड़ायत ने कहा कि जनसुनवाई सिर्फ तीनों जिला मुख्यालय में रखी गई है। इसके लिए वक्त भी गलत चुना गया है। इस मौसम में कई गांवों का संपर्क ही कट जाता है। भूस्खलन हो रहा है और यातायत प्रभावित है। ऐसे में गांव वालों के लिए जिला मुख्यालय पहुंचना असंभव है। जिला मुख्यालय आने में गांव वालों के दो-तीन दिन बर्बाद होते हैं इसलिए जनसुनवाई ग्रामपंचायत स्तर पर होनी चाहिए।

 

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