उत्तराखंड

जब जलंधर की मौत के बाद वृंदा हो गयी सती

केदारनाथ में महाशिवपुराण कथा का आयोजन , छठवें दिन ब्यास नौटियाल ने कराया जलंधर वध एवं तुलसी कथा का श्रवण

रुद्रप्रयाग। केदारनाथ आपदा में मृत आत्माओं की शांति के लिए धाम में महाशिव पुराण का आयोजन किया जा रहा है। धार्मिक अनुष्ठान में देश-विदेश के श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे हैं और कथा श्रवण कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। यह धार्मिक अनुष्ठान पिछले चार वर्षों से किया जा रहा है।

ग्यारह दिवसीय महाशिवपुराण के छठवें दिन ब्यास दीपक नौटियाल ने जलंधर वध एवं तुलसी की कथा सुनायी। उन्होंने बताया कि पौराणिक काल में एक लड़की जिसका नाम वृंदा था। उसने राक्षस कुल में जन्म लिया और बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर हुआ। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी। सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ और जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं। आप जब तक युद्ध में रहंेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते। मैं अपना संकल्प नहीं छोडंूगीं। जलंधर युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके और सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु के पास गये। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए। जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा वह शीघ्र पूजा से उठ गई और उनके चरण छूं लिए। जैसे ही उसका संकल्प टूटा तो युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उसका सिर वृंदा के महल में गिरा। जब वृंदा ने देखा कि उसके पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े हैं ये कौन हैं?। जैसे ही वह पास गयी तो भगवान विष्णु अपने रूप में आ गये और वृंदा सारी बात समझ गई। उसने भगवान को श्राप दे दिया और भगवान विष्णु पत्थर के बन गये। इसके बाद सभी देवता हाहाकार करने लगे और माता लक्ष्मी रोने लगी तो वृंदा ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर सती हो गई।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु ने कहा, आज से इसका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा। वहीं मंदिर समिति के कार्याधिकारी एनपी जमलोकी ने बताया कि कथा का समापन 13 अगस्त को होगा। इस अवसर पर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह, आचार्य आनंद प्रकाश नौटियाल, प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार नौटियाल, पुजारी टी गंगाधर लिंग, प्रभारी धर्माधिकारी ओंकार शुक्ला, वेदपाठी रविन्द्र भट्ट, डाॅ लोकेन्द्र रिवाड़ी, प्रबंधक अरविन्द शुक्ला, प्रदीप सेमवाल, स्वयंबर सेमवाल, मनोज शुक्ला, सुभाष सेमवाल, कैलाश जमलोकी, सूरज नेगी, उमेश शुक्ला, केदारसभा अध्यक्ष विनोद शुक्ला, एसआई विपिन पाठक सहित सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डाॅ हरीश गौड़ ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर परिसर गुप्तकाशी में चल रहे शिव पुराण के छठवें दिवस पर डाॅ दुर्गेश आचार्य ने शिव स्वरुप एवं मां तुलसी की महिमा सुनायी। श्रीमद देवी भागवत में आचार्य हिमांशु सेमवाल ने मां दुर्गा के विभिन्न अवतारों की कथा का परायण कराया। कथाओं का सैकड़ों भक्तों ने श्रवण किया।

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