उत्तराखंड

केदारनाथ में पांच वर्ष बाद भी तीन कुंडों को नहीं खोज पाई सरकार

केदारनाथ त्रासदी को पांच वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज तक धाम में स्थित पांच कुडों में से दो को ही सरकार खोज पाई है। केदारनाथ में स्थित इन पांचों कुंडों का विशेष महत्व रहा है।

रुद्रप्रयाग : केदारनाथ त्रासदी को पांच वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज तक धाम में स्थित पांच कुडों में से दो को ही सरकार खोज पाई है। पौराणिक पंरपराओं से जुड़े यह पांचों कुंड त्रासदी के बाद मलबे में दब गए थे। हालांकि, नमामि गंगे के तहत इन्हें खोजने को रूपरेखा भी तय की गई, लेकिन आज तक इस पर कार्य शुरू नहीं हो पाया है।
जून 2013 में आई आपदा में केदारनाथ स्थित रेतस, हंस, उदक, अमृत व हवन कुंड तबाह हो गए थे। पुनर्निर्माण के दौरान अमृत व उदक कुंड तो खोज लिए गए, जिनका पुनर्निर्माण कार्य चल रहा है। लेकिन, शेष तीन कुंडों का आज तक पता नहीं लग पाया।

तीर्थ पुरोहित एवं केदारनाथ नगर पंचायत सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास पोस्ती कहते हैं कि आपदा के पांच वर्ष बाद भी कुंडों को न खोज पाना दुखदायी स्थिति है।

उन्होंने कहा कि मलबे में दबे होने के कारण यात्री इन कुंडों के दर्शन नहीं कर पा रहे। जबकि, इनका पौराणिक महत्व है। सरकार को चाहिए कि कुंडों को खोजने के लिए प्रभावी पहल करे।उधर, डीएम मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि पुनर्निर्माण कार्यों के तहत ही केदारनाथ में कुंडों का पुनर्निर्माण होना है। योजना पर कार्य चल रहा है।

नमामि गंगे के तहत हुआ था सर्वे

पूर्व में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कुंडों का पुनर्निर्माण नमामि गंगे के तहत करने के निर्देश अपने अधिकारियों को दिए थे। बीते वर्ष जून के अंतिम सप्ताह में नमामि गंगे के दो इंजीनियर केदारनाथ पहुंचकर परियोजना का जायजा भी ले चुके हैं। ऐसे में उम्मीद थी कि इन पर शीघ्र कार्य शुरू होगा, लेकिन आज तक मामला जहां का तहां है।

कुंडों की पौराणिक मान्यता

पौराणिक काल से ही केदारनाथ में स्थित इन पांचों कुंडों का विशेष महत्व रहा है। यात्री इन कुंडों का विशेष रूप से दर्शन करते थे। उदक कुंड का जल तो इतना पवित्र माना जाता था कि लोग उसे अपने घर भी ले जाते थे।

मान्यता है कि मृत्यु के समय यदि संबंधित व्यक्ति के गले में यह जल डाला जाए तो उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हंस कुंड में पितरों के तर्पण का विशेष महत्व माना गया है। जबकि, रेतस कुंड के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव के कामदेव को भस्म करने के बाद यहां पर रति ने विलाप किया था। पंचाक्षरी मंत्र ऊं नम: शिवाय का जप करने पर इस कुंड में बुलबुले उठते थे।

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