इस मंदिर में विदेशों से आते हैं लोग, मान्यता ऐसी कि 2025 तक हो चुकी है बुकिंग..
उत्तराखंड: श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार में बाबा की चौखट से कोई भी श्रद्धालु निराश नहीं लौटता है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी होती है। मनोकामना पूरी होते ही भक्त मंदिर में भंडारा कर हनुमान जी को भोग लगाते हैं। श्रद्धालुओं पर बजरंग बली की नेमत इस कदर बरसती है कि यहां भंडारा आयोजन के लिए भक्तों को सालों साल इंतजार करना पड़ता है। धाम में अगले सात वर्षों यानी 2025 तक भंडारों की एडवांस बुकिंग चल रही है।
कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली धाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। बजरंग बली जी के इस पौराणिक मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है। श्री सिद्धबली बाबा के दर्शन को देश एवं विदेश से श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं और मंदिर में मत्था टेककर मनोकामना मांगते हैं। बाबा अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। मुराद पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारा कर भोग लगाते हैं।
पौराणिक खोह नदी के किनारे स्थित है श्री सिद्धबली धाम। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि हर समय यहां देश-विदेश से आए भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। ऐसे भी माना जाता है कि कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान है हनुमानजी। उन्हीं हनुमानजी को समर्पित इस मंदिर की चलिए जानें खास बात ऐसे देशभर में हनुमानजी के कई चमत्कारी मंदिर है, जहां जाने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मगर उत्तराखंड के पौड़ी क्षेत्र में कोटद्वार नगर से करीब ढाई किमी. दूर, नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगा पवित्र श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर का महत्व सबसे अधिक है। खास बात है कि खोह नदी के किनारे पर करीब 40 मीटर ऊंचे टीले पर ये मंदिर स्थित है। यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, जिनकी मनोकामना पूरी होती हैं वे भक्त भंडारा करवाते हैं।
दरअसल यहां से कोई भक्त आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। इसलिए भक्तों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यहां होने वाले विशेष भंडारों की बुकिंग फिलहाल 2025 तक के लिए पूरी हो गई है। यहां जनवरी-फरवरी, अक्टूबर-नवंबर व दिसंबर माह में रोज भंडारे का आयोजन होता है, जबकि अन्य माह में मंगलवार, शनिवार व रविवार को भंडारा रहता है। खास बात है कि भारतीय डाक विभाग की ओर से भी साल 2008 में मंदिर के नाम एक डाक टिकट जारी किया गया था। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में गुड़, बताशे और नारियल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है।
क्या है सिद्धबली मंदिर की मान्यता..
ऐसी मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा भी कहा जाता है। गोरखपुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवन पूत्र बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े।
हनुमानजी ने यहीं दिया गुरु गोरखनाथ को दर्शन..
इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनों में से कोई पराजित नहीं हुआ तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आए और गुरु गोरखनाथ से वरदान मांगने कहा। जिस पर उन्होंने हनुमानजी से यहीं रहने की प्रार्थना की थी। गुरु गोरखनाथ व हनुमानजी के कारण ही इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा। आज भी ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप से यहां विराजमान हैं।
श्री सिद्धबली धाम की ख्याति देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है। हर साल लाखों भक्त देश एवं विदेश से धाम पहुंचते हैं। भंडारा बुकिंग काउंटर वाले बताते हैं कि भंडारे की एडवांस बुकिंग कराने वाले श्रद्धालु उत्तराखंड के अलावा यूपी, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र से हैं। कई एनआरआई भी हैं, जिनकी मुराद धाम में आने पर पूरी हुई है। श्री सिद्धबली धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष के मुताबिक श्री सिद्धबली धाम गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या स्थली रही है। आदिकाल में मंदिर स्थल पर सिद्ध पिंडियां थीं। 80 के दशक में मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापित हुई। इसके बाद ही मंदिर का सुंदरीकरण हुआ। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए इसी रास्ते गए थे।