उत्तराखंड

देहरादून में अस्थाई विधानसभा पर प्रचण्ड प्रदर्शन कर आंदोलनकारियों ने लगाया द्वार पर गैरसैंण राजधानी का बैनर

बजट सत्र में ही गैरसैंण राजधानी बनाने का ऐलान करने की मांग को लेकर अस्थाई विधानसभा(देहरादून) पर प्रचण्ड प्रदर्शन

देहरादून (प्याउ)। 18 मार्च को जहां उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी सरकार के पहली वर्षगांठ पर सरकार को खुद ही सफल बताते हुए देहरादून के परेड ग्राउंड में प्रदेश स्तर का भव्य जश्न मना रहे थे। वहीं 18मार्च को देहरादून में ही उत्तराखंड के सेकंडों राज्य गठन आंदोलनकारी, समाजसेवी, छात्र, युवा, महिला व पूर्व सैनिक राज्य गठन के बाद की 17सालों की सरकारों को राजधानी गैरसैंण न बना कर प्रदेश को बर्बाद करने का गुनाहगार मानकर घिक्कारते हुए गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग करते हुए अस्थाई विधानसभा पर प्रदर्शन कर रहे थे।

गौरतलब है कि इसी माह गैरसैंण में हो रहे बजट सत्र में ही उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग को लेकर 18 मार्च को ‘गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान’ के बेनर तले हाथों में गैरसैण के पीले झण्डे लहराते व गैरसैंण राजधानी बनाओं के गगनभेदी नारे लगाते हुए उमड़े जन सैलाव ने देहरादून स्थित अस्थाई विधानसभा पर प्रचण्ड प्रदर्शन किया। अस्थाई विधानसभा की तरफ बढ़ रहे आंदोलनकारियों को रोका नहीं। अस्थाई विधानसभा पर प्रचण्ड प्रदर्शन कर आंदोलनकारियों ने लगाया द्वार पर गैरसैंण राजधानी का बैनर।जनगीतो का किया गान।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के 17 साल बाद भी प्रदेश की अब तक की सरकारों द्वारा जनता व पूर्व उप्र सरकार की कौशिक समिति द्वारा चयनित उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण को घोषित न किये जाने से आक्रोशित उत्तराखण्डियों ने 18 मार्च को दोपहर 12 बजे देहरादून के आराघर चौक पर एकत्रित हो कर एक स्वर में प्रदेश सरकार व विपक्ष से गैरसैंण पर अपनी औछी अवसरवादी दलगत राजनीति से खिलवाड़ करने से बाज आने की चेतावनी देते हुए इसी बजट सत्र में गैरसैण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग की। इस अवसर पर राज्य गठन आंदोलन के शहीदों व गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए शहीद हुए बाबा मोहन उत्तराखण्डी सहित सभी दिवंगत आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हर हाल में राजधानी गैरसैंण घोषित करने की मांग की।

इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के राजधानी गैरसैण पर दिये गये गैरजिम्मेदार बयानों की कड़ी भत्र्सना की। राज्य गठन के बाद की इन 17 सालों की भाजपा व कांग्रेस की उक्रांद व बसपा समर्थित सरकारों ने गैरसैंण राजधानी न बनाकर राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों की शहादत, आंदोलनकारियों के संघर्ष, प्रदेश की आशा व विकास के साथ देश की सुरक्षा व शांति से शर्मनाक खिलवाड़ करने वाला अलौकतांत्रिक व उत्तराखण्ड द्रोही विश्वासघाती कृत्य किया।

गौरलतब है कि 10 मार्च को संसद की चौखट पर ‘गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान’ के बेनरतले कवियों व पत्रकारों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी से राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए किये गये संसद पर दिये धरने से परेशान उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार संभल भी नहीं पायी थी कि नेताओं व नौकरशाहों की ऐशगाह बनी देहरादून में गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तले दर्जनों सामाजिक संगठनों ने 18 मार्च 2018 की दोपहरी को हाथ में तिरंगा लिये, जनगीतों व राजधानी गैरसैंण बनाने के गगनभेदी नारे लगाते हुए जलसैलाब आराघर से अस्थाई विधानसभा (देहरादून )े की तरफ कूच किया तो लोगों के जेहन में राज्य गठन आंदोलन की यादें ताजा हो गयी। इस जन चेतना रेली में आंदोलनकारियों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि बजट सत्र में राजधानी गैरसैंण को घोषित करें नहीं तो जनता ऐसे निकम्भी सरकार को राजधानी गैरसैंण घोषित कराने के लिए राज्य गठन आंदोलन की तर्ज पर व्यापक जनांदोलन छेड़ देगी।

इस जन चेतना रेली में राज्य गठन आंदोलन के शहीदों के सपनों को साकार करने की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए राज्य गठन आंदोलन की तरह व्यापक जनांदोलन छेड़ने का संकल्प लिया। आंदोलनकारियों ने इस बात के लिए अभी तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों की कड़ी भत्र्सना की कि उन्होने जनता व अविभाजित उप्र की सरकार द्वारा गठित रमाशंकर कौशिक समिति की रिर्पोट द्वारा सर्वसम्मत से राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून में ही कुण्डली मार कर बैठ कर उत्तराखण्ड को बर्बादी के गर्त में धकेल दिया। बलात देहरादून में कुण्डली मार कर बैठे रहने से उत्तराखण्ड के वे सीमान्त व पर्वतीय जनपद शिक्षा, रोजगार व शासन से वंचित होने से पलायन के दंश से मर्माहित हैं, जिन्होने अपने चहुंमुखी विकास, सम्मान व हक हकूकों की रक्षा के लिए राव मुलायम जैसे अमानवीय सरकारों के दमन सह कर भी राज्य आंदोलन जीवंत रख कर राज्य गठन को मजबूर किया। सीमान्त व पर्वतीय जनपदों की देहरादून में कुण्डली मार कर बेठे नेताओं व नौकरशाहों ने अपनी अÕयाशी के लिए प्रदेश की जनांकांक्षाओं, शहीदों के सपनो व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण को रौंद कर देश व प्रदेश के हितों पर कुठाराघात किया। आंदोलनकारी हैरान थे कि जब राज्य गठन आंदोलन चलाया ही गया राजधानी गैरसैंण के लिए, शहीदों ने राजधानी गैरसैंण के लिए दी, और प्रदेश से पूर्व उप्र सरकार की कौशिक समिति ने राजधानी गैरसैंण के पक्ष में अपनी रिर्पोट दी। तो गैरसैंण राजधानी बनाने के बजाय हुक्मरानों ने बलात देहरादून में कुण्डली मार कर प्रदेश को तबाही के गर्त में धकेल दिया। जबकि हिमालयी राज्यों की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में है। वर्तमान में प्रदेश की एकमात्र विधानसभा भी गैरसैंण में है। गैरसैंण की विधानसभा में शीतकालीन, ग्रीष्मकालीन सत्र होने के बाद अब बजट सत्र भी आयोजित हो रहा है। ऐसे में क्यों प्रदेश के हुक्मरान जनभावनाओं, सरकार की समिति व देश की सुरक्षा के लिए अपने जनसेवक के दायित्व का निर्वाह करते हुए गैरसैंण राजधानी घोषित कर रहे है।

राज्य गठन के 17 सालों की उत्तराखण्ड की तमाम सरकारों के नक्कारेपन का नमुना है जनसम्मत राजधानी गैरसैंण की घोषणा सरकार द्वारा नहीं किया जाना। जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने तेलांगना बनने के मात्र 4 साल के अंदर ही आंध्र प्रदेश की भव्य राजधानी अमरावती को न केवल घोषित किया अपितु इसका निर्माण भी कर दिया है।

18 मार्च को जुलूस में भाग लेने वाले सामाजिक संगठनों में जहां देहरादून सहित उत्तराखण्ड की अलकनंदा पिंडर घाटी विकास समिति, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली विकास समिति, पर्वतीय विकास मंच, बद्री केदार विकास समिति, उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच, अखिल गढ़वाल सभा, नैनीडांडा विकास समिति, उत्तराखंड रैफरी फुटबॉल एसोसिएशन, उत्तराखंड जनमंच, उत्तराखंड बैंक एसोसिएशन, नव भारत संघ, अपना परिवार, कूर्माचल विकास परिषद्, गढ़ सेना, पूर्व सैनिक अर्ध सैनिक संगठन, ग्यारह गांव हिंदवाण, डांडी कांठी क्लब, धाद संस्था, मैती संस्था, उत्तराखंड नव निर्माण मंच, उफ्तारा संस्था, उत्तराखंड फुटबॉल अकादमी के अलावा दिल्ली की सबसे बडी सामाजिक संगठन उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली ने मशाल जुलूस में भागेदारी निभाई।गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के रघुबीर बिष्ट, सचिन थपलियाल, देवसिंह रावत, रविंद्र जुगरान, पी. सी. थपलियाल, कामरेड समीर भण्डारी,पपहेमा देवराड़ी, मोहन रावत उत्तराखण्डी, प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल,अनिल पंत, बी एस. रावत, जगमोहन मेहंदीरत्ता, जयदीप सकलानी,प्रदीप सती, वीरेन्द्र रावत, पुष्कर नेगी, विजय बौड़ाई, कैलाश जोशी, ललित जोशी, महेंद्र रावल,पुरूषोत्तम भट्ट,मोहन भुलानी, प्रदीप सत्ती,सूरवीर राणा , पुष्कर नेगी, लूसुन टोडरिया, सतीश धोलाखंडी,गोपाल गुसांई सहित अनैक समाजसेवी जन चेतना रेली को सफल बनाने में जुटे हुए थे।

इस जलूस में दिल्ली में 2016 से गैरसैंण राजधानी की अलख जगाने वाले गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान दिल्ली का शिष्टमण्डल ने जुलूस में भाग लिया। भाग लेने वालों में गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान दिल्ली के देवसिंह रावत, अनिल पंत, किशोर रावत आदि सम्मलित थे।
प्रसिद्ध जनगीतों के गायक जयदीप सकलानी, सत्तीश धोलाखण्डी, सचिन थपलियाल व मोहन रावत उत्तराखण्डी की अगुवाई वाले स्वरों में ‘ये केसी राजधानी है.., लडके लेगे, भीड़ कर लेंगें गैरसैंण, ले मशाले चल पडे है लोग मेरे गांव के आदि जनगीतों से देहरादून गूंज गया। ये केसी राजधानी है नामक जनगीत आंदोलनकारियों ने गाया।

अन्य प्रमुख आंदोलनकारियों में भगवती प्रसाद मैंदोलिया, पुष्कर नेगी,गोपाल गुसाईं,दिनेश बडोला, विनोद सामंत,पूर्व सैनिक संगठन के बचन सिंह रावत,प्रेम गुसाईं,पत्रकार योगेश भट्ट, ब्रिगेडियर बिनोद पसबोला,कर्नल परमार,रुपेंद्र रावत,अनुपम रावत,बबीता लोहानी, प्रिया चमोला,विकास नेगी, विजय बौडाई, हरिकिशन किमोठी,कैलाश जोशी,लुसुन टोडडिया,शिव प्रसाद सती, आदित्य भट्ट, विपिन रावत कमल रजवार, आदि सम्मिलित थी।

इस जुलूस में बड़ी संख्या में छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, बुजुर्गों, पत्रकारों, रंगकर्मियों ने प्रमुखता से भाग लिया।

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