उत्तराखंड

दस्तक परिवार की ओर से फ़ुलदेई महोत्सव एवं घोघा जात्रा का आयोजन

‘चला फुल्यारी फूल डाल्योला, अपड़ा घोघा खूब नचौला’

अपनी संस्कृति, अपने गांव, अपने पहाड़, अपने मूल को न भूलें: मंगेश

अगस्त्यमुनि। ‘चला फुल्यारी फूल डाल्योला, अपड़ा घोघा खूब नचौला’, जैसे गीतों से अगस्त्यमुनि एवं विजयनगर बाजार गुंजायमान हो गया। अवसर था दस्तक परिवार की ओर से आयोजित फ़ुलदेई महोत्सव एवं घोघा जात्रा का। जिसमें 32 टीमों के चार सौ से अधिक बच्चों ने प्रतिभाग कर अपनी संस्कृति के संरक्षण की शपथ ली।

विभिन्न पहाड़ी भेष-भूषा के साथ घोघा एवं अन्य निशाणों को नचाते हुए बच्चे जब बाजार में निकले तो व्यापारियों, स्थानीय निवासियों तथा राह चलते यात्रियों ने उनका भव्य स्वागत किया। खेल विभाग के प्रांगण से प्रारम्भ हुई घोघा जातरा अगस्त्यमुनि तथा विजयनगर बाजार से होते हुए वापस उसी प्रांगण में समाप्त हुई।

घोघा जात्रा के बाद मुख्य पाण्डाल में फूलदेई प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस वर्ष की प्रतियोगिता मठियाणा घोघा टीम बैनोली ने जीती। जबकि गुरूकुल नेशनल स्कूल द्वितीय तथा ओंकारानन्द हिमालयन स्कूल जखोली तृतीय स्थान पर रहे। जिन्हें मुख्य अथिति जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग मंगेश घिल्डियाल द्वारा क्रमशः 31 सौ रू0, 21 सौ रू0, 11 सौ रू0 नगद पुरस्कार प्रदान किए गये। चतुर्थ स्थान पर इन्द्रासिणी घोघा टीम जैली तथा पंचम स्थान पर राजराजेश्वरी कण्डारा की टीम रही।

इसके साथ ही प्रत्येक टीम को भी सान्त्वना पुरस्कार दिया गया। इस अवसर पर दस्तक परिवार द्वारा विगत 17 वर्षों से खेतों में हल चलाते हुए पुरूषवादी स्वीकार्यता को नकार कर पलायन से बंजर होती धरती को चीरकर सोना उगलने वाली क्यार्क बरसूड़ी की श्रीमती आशा देवी को ‘उम्मीदों के पहाड़‘ सम्मान से सम्मानित करते हुए जिलाधिकारी द्वारा उन्हें शाॅल औढ़ाकर प्रशस्ति पत्र दिया गया।

विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरित करते हुए रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम होने आवश्यक हैं। उन्होंने दस्तक परिवार द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम नई संस्कृति को पुरानी संस्कृति से जोड़ने की एक पहल बताया, जो अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास है। उन्होंने नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वे जीवन में किसी भी मुकाम तक पहुंचे, परन्तु अपनी संस्कृति, अपने गांव, अपने पहाड़, अपने मूल को न भूलें। आयोजन समिति के सदस्य हरीश गुसाईं ने बताया कि यह मात्र प्रतियोगिता नहीं है, अपितु अपनी माटी, अपनी पहचान और अपनी विरासत से नई पीढ़ी को रूबरू करवाने और उन्हें जोड़ने का भी प्रयास है।

प्रतियोगिता प्रारम्भ होते ही एक के बाद एक फुलारी टीमों ने अपने घोघा के साथ नृत्य एवं गायन से सभी का मन मोह लिया। प्रतियोगिता को देखने के लिए बड़ी संख्या में महिलायें एवं स्थानीय निवासी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी गिरीश बैंजवाल एवं कुसुम भट्ट ने किया, जबकि रंगकर्मी राजेन्द्र गोस्वामी, कुसुम भट्ट, नरेन्द्र सिंह रौथाण एवं ओमप्रकाश चमोला ने निर्णायक की भूमिका निभाई। कार्यक्रम को सफल बनाने में दस्तक के दीपक बैंजवाल, सुधीर बत्र्वाल, गजेन्द्र रौतेला, अखिलेश गोस्वामी, त्रिभुवन नेगी, हेमन्त फरस्वाण, उमा प्रसाद भट्ट, नन्दन राणा, दीपक भट्ट, सतेश्वरी रौथाण, अश्विनी गौड़, अजय, विक्की, हिमांशु, मनीश बडियारी आदि का सहयोग रहा। इस अवसर पर औंकारानन्द हिमालयन स्कूल के प्रबन्धक ललिता प्रसाद भट्ट, प्रभारी जिला क्रीड़ाधिकारी महेशी आर्य, डाॅ गीता नौटियाल, गंगाराम सकलानी, बलिराम नौटियाल, ओमप्रकाश बेंजवाल, सहित बड़ी संख्या में दर्शक मौजूद थे।

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