उत्तराखंड

केदारनाथ में पहाड़ की हस्तशिल्प कला से रूबरू हाेंगे तीर्थयात्री

केदारनाथ में हस्तशिल्प

स्नान घाट के किनारे चेजिंग रूम के रूप में उकेरी जायेगी पहाड़ की संस्कृति

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान कर रहा लकड़ी की नक्काशी
रुद्रप्रयाग। बाबा केदार के दर्शनों को धाम में आने वाले श्रद्धालु अब पहाड़ के हस्तशिल्प से भी रूबरू हो सकें। केदारनाथ में मंदाकिनी और सरस्वती नदी पर बने स्नानघाटों में चेजिंग रूम के बाहर देवदार की लकड़ी की खोली, मोरी और जंगला देखने को मिलेंगे। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के काष्ठ हस्तशिल्पों की मदद से सोनप्रयाग में देवदार की लकड़ी की नक्काशी करा रहे हैं।

16-17 जून 2013 की आपदा से बीते सवा तीन वर्षों से केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण में जुटे निम ने जहां धाम की सुरक्षा के लिये तकनीकी की मदद से कार्य किये हैं, वहीं यात्रियों की सुविधा के लिये काॅटेज, स्नानघाटों का भी निर्माण किया है। अब, कार्यदायी संस्था पहाड़ के घर गांवों की शान कही जाने वाली तुन, देवदार, जामुन आदि की लकड़ी से बनी खोली, मोरी, जंगला, छज्जा को स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। धाम में संगम पर बने दो सौ मीटर लंबे स्नानघाट की फर्श पर निर्माणाधीन चेजिंग रूम के बाहर लकड़ी की इन पारंपरिक धरोहरों की कृतियों को स्थापित किया जायेगा। जिससे बाबा केदार के दर्शनों को धाम पहुंचने वाले श्रद्धालु पहाड़ के काष्ठ हस्तशिल्प से रूबरू हो सकेंगे।

निम द्वारा चार दिन पूर्व करीब एक टन देवदार की लकड़ी सोनप्रयाग पहुंचाई गई है। यहां टिहरी के तीन व देहरादून के दो कारीगर, जिसमें तीन बजुर्ग दो युवा हैं, इसकी लकड़ी को तैयार कर उस पर अपने हस्तशिल्प के जरिये एक से बड़कर एक बेहतरीन आकृतियां उकेर रहे हैं। निम के पदाधिकारियों के अनुसार एक-डेढ़ माह में कार्य पूरा हो जायेगा। संभवत जुलाई माह के तीसरे सप्ताह में लकड़ी की इन कृतियों को धाम पहुंचाकर चेजिंग रूम की फर्श पर जलग-अलग दूरी पर स्थापित भी कर दिया जायेगा।

निम के प्रभारी मनोज सेमवाल का कहना है कि केदारनाथ में स्नानघाट पर चेजिंग रूम में देवदार की लकड़ी से बनी खोली, मोरी, जंगला व छज्जा के ढांचे स्थापित किये जाएंगे। पहाड़ के हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के साथ ही देश-विदेश से पहुंच रहे लोगों को यहां की संस्कृति से अवगत कराना मुख्य उददेश्य है।

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