उत्तराखंड

यहां रंग-गुलाल से नहीं दूध-मक्खन से मनाते हैं ये उत्सव..

यहां रंग-गुलाल से नहीं दूध-मक्खन से मनाते हैं ये उत्सव..

अंढूड़ी उत्सव के नाम से जाना जाता हैं बटर फेस्टिवल..

 

 

 

 

 

 

रंगों और फूलों के त्योहार होली से तो आप परिचित ही होंगे। लेकिन उत्तराखंड में एक और स्थान है जहाँ पीढ़ियों से दूध और मक्खन से होली का एक विशेष खेल खेला जाता रहा है।

उत्तराखंड: रंगों और फूलों के त्योहार होली से तो आप परिचित ही होंगे। लेकिन उत्तराखंड में एक और स्थान है जहाँ पीढ़ियों से दूध और मक्खन से होली का एक विशेष खेल खेला जाता रहा है। कोरोना महामारी के दो साल बाद दयारा बुग्याल में पारंपरिक और ऐतिहासिक बटर फेस्टिवल (अंढूड़ी उत्सव) चल रहा है।

 

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पौराणिक बटर फेस्टिवल की बधाई दी है। वार्षिक उत्सव की तैयारियों पर चर्चा के लिए रविवार को दयारा पर्यटन उत्सव समिति की बैठक हुई थी। जिसमें अगले 16 और 17 अगस्त को महोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया गया।

 

रैथल के ग्रामीण समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में सदियों से भाद्रप्रद महीने के संक्रांति पर दूध, मक्खन और मट्ठे की होली खेल रहे हैं। दयारा पर्यटन महोत्सव समिति ने रविवार को रैथल में आयोजित बैठक के दौरान 17 अगस्त को वार्षिक मक्खन महोत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया। कहा गया कि दो वर्षों से कोरोना संकट के कारण बटर फेस्टिवल का आयोजन ग्रामीणों ने सूक्ष्म रूप से किया था।

दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीण सदियों से भाद्रप्रद महीने की संक्रांति को दूध, मक्खन और मट्ठे से होली खेलते आ रहे हैं। कई वर्षों से, दयारा पर्यटन उत्सव समिति और रैथल गांव की ग्राम पंचायत ने प्रकृति आभार जताने के लिए इस विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया है जिससे देश-विदेश के पर्यटक इस अनूठे उत्सव में भाग ले सकें।

 

वर्तमान समय में बटर फेस्टिवल के नाम से मशहूर हो चुके इस आयोजन से उत्तरकाशी के साथ उत्तराखंड राज्य की लोक संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार हुआ है। दयारा बुग्याल के आधार शिविर रैथल गांव के निवासी पंकज कुशवाल का कहना हैं कि यह आयोजन प्रकृति का आभार जताने के लिए किया जाता है।

 

 

 

 

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