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कई औषधियों से भरा है उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुराँश..

कई औषधियों से भरा है उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुराँश ..

 

 

 

 

 

 

 

 

देवभूमि उत्तराखंड में अधिक मात्रा में पाए जाने वाला बुराँश उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है। लाल रंग का यहां बुरांश उत्तराखंड की खूबसूरती में चार चाँद लगा देता हैं। बुराँश का ये फूल अधिकतर उत्तराखंड में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता हैं।

 

 

उत्तराखंड: देवभूमि उत्तराखंड में अधिक मात्रा में पाए जाने वाला बुराँश उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है। लाल रंग का यहां बुरांश उत्तराखंड की खूबसूरती में चार चाँद लगा देता हैं। बुराँश का ये फूल अधिकतर उत्तराखंड में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता हैं। फरवरी के अंत में बुराँश खिलना शुरू हो जाता हैं। जो कि मार्च, अप्रैल तक पुरे उत्तराखंड के जंगलों को अपनी गुलाबी चादर ओड़ा देता हैं। फरवरी से लेकर अप्रैल महीने तक नीले आसमान के नीचे बुराँश के रंग बिरंगे फूलों को करीब से देखकर मन को वाकई एक अलग सा सुकून मिलता हैं

 

बुराँश का फूल जितना सुंदर दिखने में होता है उतना ही बुराँश शरीर के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। इस फूल की पंखुड़ियों को तोड़कर जूस तैयार किया जाता है जो कि गर्मी के समय में काफी राहत देता हैं। बुराँश कई बीमारियों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। बुराँश की चटनी और जूस पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हैं। पहाड़ों में कई लोग आज भी इसके रस को निकालकर छोटा-बड़ा कारोबार करते हैं बुराँश के रस को निकालकर पहाड़ों के लोग जूस बनाकर मैदानी क्षेत्रों में भेजते हैं। गर्मी के मौसम में उत्तराखंड में पहाड़ों से लेकर मैदानी क्षेत्रों में लगभग सभी घरों में लोग बुराँश के रस का शर्बत बनाकर पीते हैं। इसके साथ ही पहाड़ों में लोग बुराँश की चटनी से लेकर कई अन्य चीजे भी बनाते हैं।

 

यूं तो देवभूमि उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ बहुत खूबसूरत हैं। लेकिन जितने खूबसूरत यहां के पहाड़ हैं उतनी ही खूबसूरत पहाड़ की संस्कृति है। कहने को तो बुराँश सिर्फ एक जंगली फूल है जो उत्तराखंड का राज्य वृक्ष होने के साथ ही नेपाल का राष्ट्रीय वृक्ष भी हैं। लेकिन ये अपने खट्टे-मीठे शर्बत और कई अन्य स्वाद के कारण पहाड़ों को एक अलग पहचाना दिलाता है। अगर कोई भी फरवरी अंत से लेकर जुलाई, अगस्त तक पहाड़ी गांवों में जाते हैं तो वहां पर उनका स्वागत बुराँश का शर्बत पिलाकर किया जाता हैं। बुराँश सिर्फ एक फूल ही नहीं बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति का हिस्सा भी है।

लोग बुराँश के फूल से निर्मित जैम, जेली, जूस बनाकर छोटा मोटा व्यपार भी करते हैं। जिससे पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों के पास रोजगार के अवसर भी मिल जाते हैं। जो कि पहाड़ी क्षेत्रों के विकास में भी एक भूमिका निभाता हैं। बुराँश की लकड़ियों का प्रयोग ईंधन बनाने में भी किया जाता हैं। उत्तराखंड के जंगलों को प्राकृतिक सौंदर्य से निखारने वाले बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेन्ड्रम अरवेरियन हैं। बुरांश का उपयोग आयुर्वेद में भी किया जाता हैं। बुरांश की पत्तियों और फूलों से दवाईयां भी बनाई जाती हैं। जो कि आयुर्वेद में मरीजों के लिए फायदेमंद माना जाता हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण बुरांश आज पूरे भारत के बाजार में सहज ही मौजूद हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

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