मनोरंजन

भरतु की ब्वारी और गर्मियों की छुट्टियां…

नवल खाली 

गर्मियों की छुट्टियों में भरतु की ब्वारी बाल बच्चो सहित ठेठ अपने पहाड़ी गाँव पहुंच रखी है !!  फरफर फफराट करती हवा , काफल, हिसोल , बेडु खाकर मन बड़ा तृप्त था !!! पदानी काकी की ताज़ा ब्या रखी भैंस की गर्म छाँस और हरी भुज्जी के प्रोटीन विटामिन से भरतु की ब्वारी और बच्चे  टिमाटर के माफिक लाल हुए जा रहे थे !!

शुरू के दो दिन तो सपरिवार दस्त से परेशान रहा ,क्योंकि मिलावटी चीजो को खाने के बाद पेट को पोष्टिक चीजें तुरन्त सूट न हुई , पर अब दिन ब दिन तंदुरुस्त हुए जा रहे थे 

छुट्टियों में आजकल गाँव में भरतु की ब्वारी कभी डाले में घास लाते हुए, कभी कुदाल, कुटली पकड़ कर बाड़े -खोड़े में खुदाई- गोड़ाई करते हुए ,कभी काफल के पेड़ में काफल खाते हुए , तो कभी सर में गागरी रखे हुए नौले-धारे से ठंडा पानी लाते हुए कभी सिलबट्टे पर नमक पीसते हुए सेल्फी-फोटो खींचकर धडाधड फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, मैसेंजर पर अपलोड करने में व्यस्त थी !!!

सासू कई बार टोकती थी कि सौरा , जिठाना सब देख रहे है सिर में धोती का पल्लू तो रख पर भरतु की ब्वारी का मानना था कि ये धोती का पल्लू-पुल्लु चोंचलेबाजी है !!! बस गाँव की आबोहवा ताजी है !!!

जब सुबह सुबह सैर पर निकल पड़ी भरतु की ब्वारी….

अब गाँव मे आपने आजतक किसी ब्वारी को मोर्निंगवॉक पर जाते देखा है !???
नही न ??
पर भरतु की ब्वारी को देहरादून की आदत हो गयी थी ! इसलिए गाँव मे भी सुबह सुबह सैर यानी मार्निग वाक पर निकल पड़ती है

कल जब रधुली की सासु ने सुबह सुबह भरतु की ब्वारी को जल्दी जल्दी से जाते हुए देखा तो… उसका मन में धक्क सा हो गया उसे लगा कि घर मे कुछ अनबन / बबाल हो गया है….

कहीं भरतु की ब्वारी फांसी खाने तो नही जा रही है ???

क्योंकि वो उस दौर की महिला थी जब गाँव मे जवान जवान ब्वारियाँ अक्सर घर वालो से अनबन पर सीधे फांसी खाने चली जाती थी !!!!

औरतों के पेट में कोई बात नहीं रहती ,  रधुली की सासु भी कैसे चुप रहती , उसने भी  तुरन्त ये बात गाँव में आग की तरह फैला दी !!!

गाँव के लोग भी इकठ्ठे हो गए और भरतु की ब्वारी को ढूंढने निकल पड़े 

कुछ ही दूर पर भरतु की ब्वारी उन्होंने शीर्षआसन मुद्रा में टांगे ऊपर और सिर नीचे दिख गयी

उन्होंने ऐसी उल्टी फाँस खाने की घटना पहली बार देखी थी …!!!!

सब दौड़ के उसके नजदीक पहुँच गए !!!! उसने आहट सुनी तो सरबट खड़ी हो गयी !!!!

देखा पूरा गाँव खड़ा था …. !!!!

गाँव वाले भी झंड हो गए थे !!!

भरतु की ब्वारी ने पूछा कि सब यहाँ क्यों ?? तो रधुली की सासु वाली बात सामने आई ….!!!!
फिर तो आपको पता ही है ….भरतु की ब्वारी ने रधुली की सासु के नौ पीढ़ी के पित्तरों का श्राद्ध कर दिया.. !!!!
सुबह – सुबह घात – मघात, अहंकार , देवता लगाने तक जा पहुंची ….
ऐसा झगड़ा अक्सर वर्षों पूर्व गाँव मे गाय के उज्याड़ खाने , खेतों का वोडा सरकाने , पानी तोड़ने-भरने , दूसरों के खेतो में दिशा- जंगल करने आदि पर होता था !!!!!

भरतु की ब्वारी ये कहते कहते हुए घर लौट गई कि…. गंवार के गंवार ही रहेंगे ,  सुबह सुबह ‘मूड ऑफ ‘कर दिया…

जब कभी भरतु की ब्वारी का ‘मूड ऑफ होता ‘ तो वो तेज तेज साँस लेने लगती ऐसा उसे देहरादून में मेडिटेशन के एक ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के गुरु ने बताया था =अब भरतु की ब्वारी अपने बरामदे में आंखे बंद करके तेज तेज साँसे ले रही थी  तो सास- ससुर को लगा कि ब्वारी पे हो न हो कुल देवी  कालिंका देवी अवतरित हो गयी हो ….

उन्होंने भी फटाफट एक थाली में चावल और धूप अगरबत्ती ले आये …. और ब्वारी के आगे रख दिया !!!!

अब ये देखकर भरतु का ब्वारी का गुस्सा नाक से सीधे बरमण्ड- कपाल में चढ़ गया उसने भी मुठ्ठी में चावल लिए और सास ससुर को 120 की स्पीड पर ताड़े मारने लगी बेचारों के बूढे झुर्रीदार गालों पर चावलों के टाक पड़ गए गाल लाल हो गए …. !!!

बगल के ही चौक में खड़ी रधुली की सासु ये सब कुछ ‘ लाइव’ देख रही थी भरतु की ब्वारी दौड़ती हुए उसकी तरफ बढ़ी और चार ताड़े उसके ऊपर ऐसे मारे कि उसके गालों में झमझ्याहट पड़ गया रधुली की सासु तेजी से अपने रसोई में घुस गई …और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया !!!! वही दिन है आज का दिन है ….
भरतु की ब्वारी के कोई मुँह नही लगता …. इसलिए तो उसकी इतनी तड़ी है !!!!और उसकी टाँग हमेशा की तरह ऊपर ही रहती है !!!!!
अगर आपको कहानी पसन्द आये तो अपने मित्रों को भी पढ़ाएं ।। हंसते रहिये ,मुस्कराते रहिये । जय उत्तराखंड ।

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