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अब भरतु की ब्वारी के बड़े भाई की कहानी

नवल ख़ाली

भरतु की ब्वारी के बड़े भाई गुरजी थे और राजावाला के बगल में गुरूवाला में रहते थे। अब पहाड़ी गाँव के स्कूल गर्मियों की छुट्टियों के बाद खुल चुके थे। गुरजी देहरादून के गुरूवाला स्थित अपने मकान से अनचाहे मन से पहाड़ी गांवो की स्कूल की तरफ रवाना हो चुके थे। गुरुजी के बच्चे देहरादून के सेंट फर्राटा इंरनेशनल स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते थे। गुरुजी धन का विज्ञान नामक विषय में पारंगत थे। आज उन्हीं की बदौलत गुरूवाला में रौनक थी। 2007 में गुरूवाला में प्लाटिंग की शुरुवात इन्हीं के हाथों हुई थी, तब वहाँ वीरान जंगल औऱ पीपल के कई पेड़ थे। पीपल काटना हालांकि हिन्दू धर्म मे अशुभ मानते हैं, पर आज के युग मे पीपल बड़ा या प्लाट ?गुरुजी आवश्यकतावाद में विश्वास रखते थे। फिर गुरुजी ने पूरे स्टाफ को वहीं प्लाट दिलवा दिए और आज गुरूवाला में मकानों के अम्बार थे।

गुरुजी अब विद्यालय में पहुंच चुके थे। ब्लैकबोर्ड पर कुछ सवाल-जवाब लिखकर खुद चीयर पर बैठे ल फेसबुक और वट्सअप में अपने क्रांतिकारी विचार लोड कर रहे थे। बच्चे चुपचाप बैठे ब्लैकबोर्ड के सारे सवाल जवाब कॉपियों में उतार रहे थे। गुरुजी की खासियत थी कि बच्चो का बड़ा मनोरंजन भी करते थे, जैसे सन्ता-बंता के चुटकीले सुनाना, बच्चो के साथ सेल्फी खींचकर उनको दिखाना, बच्चो के शरारती वीडियो बनाना। आदि आदि। फिर इंटरवल के बाद गुरुजी फट से मिड डे मील के किचन में घुस जाते और अपने टिफ़िन से रात की बासी रोटी गरम करके थोड़ा सा दो चार फुल्ल फुल्ल कटोरी दाल मिड डे मील से निकालकर अपना दिन का दाना चुग लेते थे। उस 16 स्टूडेंट वाले विद्यालय में उपस्थित सिर्फ 10 ही थे, उनमें से 6 नेपाली बच्चे थे, बाकी छः बगल के शिशु मंदिर में पढ़ते थे, पर एडमिशन सरकारी विद्यालय में था क्योंकि वजीफा भी उतना ही जरूरी था, जितना कि पढाई।

गुरुजी मंगलवार से शुक्रवार तक गाँव से तिमले, लिंगुडे अन्य साग भुज्जी, घी की माणी आदि इकट्ठा करते थे। स्कूल आने के रास्ते मे एक गदेरा पड़ता था, जहाँ गुरुजी आते हुए मछली पकड़ने के लिए जाल बिछाते थे और देहरादून जाते हुए चार पांच किलो मच्छी भी लेकर जाते थे। मछली से दिमाग तेज होता है, ऐसा रात में मछली का मुंड चूसते हुए अपने बच्चो को बताते थे। ब्वारी के लिए भी मकान पर ही दुकान खोलकर दे रखी थी। गाँव से लाये हुए तिमले, लिंगुडे कुछ दुकान में बिक जाते थे। कुछ खुद खा जाते थे और सन्डे को गुरजी दुकान खुद चलाते थे। भरतु भाई छुट्टियों में गुरजी को दो चार फौजी रम के पैग भी पिलाता था और गुरजी की लाई हुई गांव के गदेरे की मच्छी भी फौजी स्टाईल में खुद ही बनाता था।

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