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तो इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून

उत्तराखण्ड आंदोलन हाइजेक करने वाले भी पलायन करने वाले थे और राज्य बनने के बाद सत्ता का स्वाद चखने वाले भी पलायनवादी। पहाड़ पर हँसने वाले भी। आज मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ उन सभी बुद्धजीवियों, पत्रकार भाइयों का जो हल्द्वनी, देहरादून तथा दिल्ली में बैठकर भरतु, हरिया आदि की ब्वारी की कहानी और उसमे कॉमेंट्स करके आनन्द ले रहे हैं और जिन्होंने अनायास ही कलम लिखना सिखा दिया। मेरा मकसद किसी लेखक के लेख में व्यंग्य करना या मजाक करना नहीं है, बल्कि पहाड़ की वेदना को बताना है। जो बड़े शहरो में बैठकर पलायन की बातें करते हैं। इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून साहब पूछो उस भरतु से जिसकी गर्भवती ब्वारी ने 15 किमी डोली से अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दिया। साहब पूछो उस भरतु की माँ से जो वर्ष भर दिन रात खेतों में काम है और जब हाथ पैरो में दर्द होती है तो डाइक्लोविन की गोली खाकर सोती है। उसे पता नहीं उसे यूरिक एसिड, साईटिका जैसी बीमारियां है और ऐसे ही डाइक्लोविन खा खाके कब उसे अलसर या उसकी किडनी ख़राब हो गयी पता ही नहीं चला। साहब पूछो उन सभी भरतुओ की माओ से जो रोज अपने बच्चो को स्कूल भेजती हैं पर मास्टर न होने से दिन भर बच्चे जंगल में ताश खेलते हैं और चरस पी कर घर आते हैं। इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून साहब शहर में मिलता होगा टोंड दूध 50 रूपये किलो। पूछो उस भरतु की ब्वारी से गाय बकरी चराने गयी 15 साल की बेटी को गुलदार ने घायल कर दिया। पूछो उस भरतु से जिसकी जंगल में चारा काटने गयी ब्वारी चट्टान से गिर कर मर गयी, तथा उस भरतु से पेड़ से गिरने से जिसकी ब्वारी की कमर टूट गयी। इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून साहब पूछिए उस भरतु की माँ से जो पूरी बरसात रात भर इसलिए नहीं सो पाती क्या पता किस रात को उसका गांव में भी केदारनाथ जैसी आपदा आ जाए तो पूरा पहाड़ गांव को निगल जाय। जहाँ आपके बच्चो ने गर्मी की छुट्टी में सेल्फी ली थी। साहब आपके शहर में आते होंगे 4 जी नेटवर्यांहो क यंहा तो अभी भी 15 किलोमीटर दूर जाके करनी पड़ती है फोन में बात इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून साहब पूछिए उन नेताओं से जो देहरादून, दिल्ली से आते हैं।चुनाव लड़ने, पलायन रोकने और शराब बंदी के वादे के साथ और वही फिर देहरादून सेटल होकर आबकारी नीति बना के डेनिश, जाफरान बेचते हैं पहाड़ पर और जब किसी भरतु की माओ ने विरोध कर दुकान नहीं खुलने दी तो वही लोग गाडी से घर-घर शराब बेचते हैं। शायद इसलिए गयी भरतु की ब्वारी देहरादून क्या ऐसे ही देहरादून, हल्द्वानी दिल्ली में बैठकर बाते करने से रुकेगा पलायन। पूछिए अपने दादा पर दादा से कि उन्होंने क्यूँ किया पहाड़ से पलायन। वो न करते तो लोगों में न लगती शहर जाने की होड। आईये कभी 6 महीने के लिए पहाड़ में रहकर बिताइए। पहाड़ में पिकनिक बनाने से सेल्फी खींचकर अपलोड करने से नहीं रुकेगा पलायन।

(लक्ष्मण जी की फ़ेसबुक वाल से)

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