बिगडैल बिगरू का शौच फोबिया
चालान कटने का सता रहा भय
गुणानंद जखमोला
सुबह सूरज के सिर पर तमतमाने तक सोते रहने वाला बिगरू पिछले दो दिनों से तड़के उठ रहा है। उठते ही वह हौले से अपने 8 बाई 8 के खोली के किवाड़ खोलकर गली में चारों ओर चोर नजरों से देखता है। कोई नजर नहीं आता तो थोड़ी सी हिम्मत बढ़ जाती है और वह आॅरीजनल बिसलरी की बोतल में हैंडपंप का पानी भरकर तेजी से गली में निकल जाता है। बार-बार आगे-पीछे देखता है कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा। वह नजदीक के एक खाली प्लाॅट में जाता है। यह प्लाट उसके लिए और उसके जैसों के लिए नया नहीं है।
प्लाॅट में उकडू बैठने से पहले वह चारों ओर रेकी करता है कि कोई कमबख्त मोबाइल लिए फोटो न खींच रहा हो या वीडियो न बना रहा हो कि खुले में शौच कर रहा है। जब यह निश्चित हो जाता है कि कोई नहीं है तो तेजी से पैजामे का नाड़ा खोलता है और जोर लगा कर शौचमुक्त हो जाता है। उतनी तेजी से दौड़ता हुआ वापस खोली में लौट जाता है। यह प्रतिज्ञा करते हुए कि जल्द ही वह इलास्टिक वाला पैजामा लेगा, ताकि नाड़े का झंझट न रहे। वह उस दिन को कोस रहा है जब उसने गांव छोड़कर शहर आने का फैसला किया था। जबसे हरिद्वार के एक अवर अभियंता को खुले में शौच जाने पर डीएम द्वारा 5000 रुपये का जुर्माना करने का समाचार सुना तो बिगरू की हालत खराब हो गयी। सेलाकुई में दस से बारह घंटे की मजदूरी करने के बाद महीने की पगार ही पांच हजार है। यदि खुले में शौच करते देख किसी ने वीडियो बना ली या फोटो खींच दी तो फिर भला 5000 हजार जुर्माना कहां से देगा? बस, उसे शौच फोबिया हो गया। जिस खोली में बिगरू रहता है, वहां 20-22 ऐसे ही कमरे हैं, मकान मालिक ने शौचालय का झंझट ही नहीं रखा कि चाॅक हो जाएं।
बिगरू जैसे 50 रहते हैं वहां। सभी ऐसे ही खुले में जाते हैं। पर बिगरू तो बड़ा बिगड़ैल था। गांव में जहां मर्जी शौच बैठ जाता था। मां और बूढ़े बाप पर रौब झाड़ता था और दो घूंट अंदर जाने के बाद तो सवर्णों को भी गालियां देता था। कोई डर नहीं था। सब कहते कि बिगरू बिगड़ गया। एक दिन बूढ़े बाप ने टिमरू के डंडे से धो डाला तो गुस्से में शहर भाग आया। अब उसे आटे-दाल का भाव पता लग रहा है। बिगरू सोच रहा है कि गांव लौट जाएं, फैक्टरी में कमवख्त दिन भर की कमरतोड़ मेहनत और दो वक्त की रोटी का लोचा। किसी तरह से पेट भर भी लो लेकिन पेट से बाहर निकालोगेे कैसे और कहां? बस उसने तय किया है कि किसी तरह महीना गुजर जाएं तो गांव लौट जाए। पलायन का दाग भी हट जाएगा और पहाड़ की पगडंडी पर ठंडी हवा के झोके के साथ शौच करने पर चालान का डर भी नहीं होगा।