साल बदल रहे है, हाल बदल रहे है और पहाड़ को बदलने में लगा है ये युवा…
प्रोजेक्ट स्माइलिंग के माध्यम से चमका डाला सरकारी स्कूल…
इससे पहले भी अपने कार्यों के लिए खूब सुर्खियां बटोर चुके है आशीष डंगवाल
कुलदीप बगवाड़ी
Uk News Network देहरादून डेस्क :
युवा शिक्षक आशीष डंगवाल एक बार फिर अपने नए प्रोजेक्ट के लिए सुर्खियों में है, इस युवा शिक्षक ने राजकीय इंटर कॉलेज गरखेत टिहरी गढ़वाल के बच्चों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट – स्माइलिंग को तैयार किया है , डंगवाल बताते है की इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में 2 से 3 महीने का समय लगा, प्रोजेक्ट को स्कूली 9th,11th के बच्चों और कुछ स्थानीय बच्चों के साथ मिलकर छुट्टी के दिनों में तैयार किया गया है,
क्या है प्रोजेक्ट – स्माइलिंग…
स्कूल की पूरी दीवारों पर – मोटिवेशनल और एजुकेशन 3d आर्ट्स पेंटिग्स की गयी है जिसमे उत्तराखण्ड के लगभग सभी जिलों से नॉलेजफूल वाक्य चित्रों को दर्शाया गया है जैसे हाई कोर्ट नैनीताल, गैरसैण राजधानी भवन , केदारनाथ बद्रीनाथ जी के मंदिर ,NIM, डोबरा चांटी पुल , चिपको आंदोलन, आईएएस अकादमी मसूरी अन्य कहीं चित्रों को दर्शाया गया है साथ ही कई मोटिवेशनल थॉट भी लिखे गए है ।
आपको बता दे उत्तरकाशी में असी गंगा घाटी स्थित राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली में तैनात रहे शिक्षक आशीष डंगवाल सरल स्वभाव, मिलनसार व्यक्तित्व, ना सिर्फ बच्चे, बल्कि आशीष डंगवाल की सरलता ने उत्तरकाशी के भंकोली गांव के लोगों के दिलों को भी छू लिया। यही कारण रहा कि जब राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली से तीन साल तक कार्य करने के बाद वहा से विदा ले रहे थे, तो शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के साथ ही स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें भावभीनी विदाई दी। जिसमें न सिर्फ छात्र-छात्राएं एवं विद्यालय के शिक्षक बल्कि अभिभावक भी भावुक हो गए।
रुद्रप्रयाग जिले के श्रीकोट गांव निवासी 27 वर्षीय आशीष डंगवाल को वर्ष 2016 में राइंका भंकोली में सामाजिक विज्ञान के एलटी शिक्षक के तौर पर पहली नियुक्ति मिली थी। विदाई में ग्रामीण ढोल दमाऊं के साथ शिक्षक को गांव के बाहर तक विदा करने आए। आशीष ने इस विदाई समारोह को लेकर एक फेसबुक पोस्ट भी लिखी थी। जिसमें उन्होंने छात्रों ओर गांव वालों के लिए अपनी भावनाएं व्यक्त की। उन्होंने लिखा मेरी प्यारी केलसु घाटी, आपके प्यार, आपके लगाव ,आपके सम्मान, आपके अपनेपन के आगे, मेरे हर एक शब्द फीके हैं।
घराट को नया रूप देने की कोशिश में भी जुटे आशीष डंगवाल
देवभूमि के घराट हमारी पारंपरिक पहचान के साथ ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकते है । इसके तहत घराट हब को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित किया जा सकता है, पर आज घराट हमारी पारंपरिक संस्कृति लुप्त होने की कगार में है, घराट संस्कृति को सहेजने का एक छोटा सा प्रयास अध्यापक आशीष डंगवाल और उनके बच्चों द्वारा किया गया है
आशीष डंगवाल ने घराट संस्कृति को सहेजने के लिए अपने स्कूली बच्चों के साथ पास के किसी गधेरे में पुराने घराट को नया रूप दिया,और इसको प्रोजेक्ट घट्ट नाम दिया। लोग आज पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे के स्वाद को पूरी तरह से भूल चुके हैं, जिसके चलते घराट चलाने वालों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए घराट संस्कृति को छोड़कर अन्य व्यवसाय करना पड़ रहा,पुरातन समय में आटा पीसने के लिए मशीनें आदि नहीं होती थी इस विशेष विधि की खोज की गई थी। शिक्षा व्यवस्था में अध्यापको द्वारा प्रैक्टिकली ज्ञान देना और साथ ही पहाड़ की पौराणिक संस्कृति को जिन्दा रखना सच्च में काबिलियत कारी प्रयास हैं।
किसी समय आटा पीसने का एकमात्र साधन घराट वर्तमान मेंं विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। लेकिन इनमें पिसे आटे में पौष्टिकता भरपूर रहती है। हालांकि, अब इन्हें चलाने में भी संचालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समय के अभाव में इस परंपरा को लोग भी भूलते जा रहे हैं। खड्डों व कूहलों के पानी से चलने वाले घराट पौष्टिक आटा तैयार कर मुहैया करवाते थे। लोगों की कतारें भी घराटों के बाहर देखने को मिलती थी। घराट बिना बिजली से चलते हैं और इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। आधुनिकता के दौर में लोग घराटों से मुंह फेरने लगे हैं और बिजली से चलने वाली आटा चक्की की ओर रुख कर गए। इसी संस्कृति को सहेजने का एक छोटा सा प्रयास अध्यापक आशीष डंगवाल और उनके बच्चों द्वारा किया गया था