उत्तराखंड

कल होगा भुकुंट भैरव जी का यज्ञ, केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों द्वारा परंपरागत किया जाता है भैरव यज्ञ

जगत कल्याण और धाम की सुरक्षा के लिए हर वर्ष किया जाता है हवन…

हर वर्ष आषाढ़ माह संक्रांति को होता है बाबा भैरव नाथ जी का यज्ञ

तीर्थ पुरोहितो द्वारा किया जाता है भैरव नाथ जी का यज्ञ

कुलदीप बगवाडी

UK NEWS NETWORK केदारनाथ डेस्क 

केदारनाथ : कल रविवार आषाढ़ माह की संक्रांति को विधि-विधान पूर्वक केदारपुरी के रक्षक (क्षेत्रपाल) भुकुंट भैरव जी का यज्ञ और पूजा-अर्चना केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों द्वारा किया जायेगा । आषाढ़ माह की संक्रांति को भुकुंट भैरव जी के यज्ञ और पूजा-अर्चना की परम्परा तीर्थ पुरोहितों  द्वारा अनादिकाल से चली आ रही है,  धाम के तीर्थ पुरोहितों द्वारा इस मौके पे यज्ञ में जगत कल्याण,क्षेत्र की सुरक्षा व समृद्धि के लिए आहूतियां दी जाती हैं,

 

 

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी धाम के तीर्थ पुरोहित आषाढ़ माह की संक्रांति पूजा के लिए केदारनाथ धाम में तैयारियों में जुट गए है, यहाँ के तीर्थ पुरोहितों द्वारा इस यज्ञ को सफल बनाने के लिए तीर्थ पुरोहित समाज के लोगो द्वारा आर्थिक मदद दी जाती है,कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष सभी भक्तों की उम्मीद भुकुंट भैरव जी के यज्ञ से भी काफी लगी हुई है, बता दे धाम में यह पूजा पुरोहितो द्वारा विश्व कल्याण व क्षेत्र की सुरक्षा और समृद्धि के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ अनादिकाल से की जाती है।, इस बार धाम में कोरोना के चलते 21 तीर्थ पुरोहित ब्राह्मण ही यज्ञ में सम्मिलित हो पायेंगे।

हिमालय की गोद में बसे भगवान केदारनाथ के कपाट खुलने का श्रीगणेश भैरव पूजन के साथ शुरू होता है । परम्परा के अनुसार भगवान केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम रवाना होने से पूर्व केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ जी की पूजा का विधान है। लोक मान्यता है कि भगवान केदारनाथ के छः मास के लिए शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मन्दिर में विराजमान होने के पश्चात् भुकुंड भैरव ही शीतकाल में यहाँ पर बाबा केदार की पूजा अर्चना एवं इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं।

भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ से आधा किमी की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर संहार के हिन्दू देवता शिव के एक गण भगवान भैरव को समर्पित है। भैरवनाथ का यह स्थान केदारनाथ मन्दिर से दक्षिण दिशा की तरफ आधा किमी की दूरी पर स्थित है । ये मूर्तियां भगवान भैरव की हैं जो इसी प्रकार विना छत की रहती हैं । भैरव को भगवान् शिव का ही एक रूप माना जाता है। प्रत्येक शिव व शक्ति पीठों में समस्त देवों के दर्शन के अन्त में भैरों बाबा के दर्शन करने अनिवार्य माने जाते हैं।

कौन है भुकुंट भैरव व क्या है इनकी पूरी कहानी आइये आपको बता दें

हर यात्री केदारनाथ तो पहुंच जाता है लेकिन केदारनाथ से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी तय कर भुकुंट भैरों के दर्शन करने का साहस नहीं कर पाता क्योंकि केदारनाथ क्षेत्र में कम ऑक्सीजन होने व केदारनाथ तक पहुँचने की थकान तीर्थ यात्री का साहस यहीं दर्शन कर समाप्त कर देती है जबकि पुराणों व जनश्रुतियों के आधार पर बिना भैरों के दर्शन के यह यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती।

भैरवनाथ का यह स्थान केदारनाथ मन्दिर से दक्षिण दिशा की तरफ आधा किमी की दूरी पर स्थित है । ये मूर्तियां भगवान भैरव की हैं जो इसी प्रकार विना छत की रहती हैं । भैरव को भगवान् शिव का ही एक रूप माना जाता है। प्रत्येक शिव व शक्ति पीठों में समस्त देवों के दर्शन के अन्त में भैरों बाबा के दर्शन करने अनिवार्य माने जाते हैं।

केदारपुरी के रक्षक (क्षेत्रपाल) भुकुंट भैरव की पूजा-अर्चना के बाद पुजारी बागेश लिंग ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। भैरवनाथ की पूजा केवल मंगलवार व शनिवार को की जाती है।

इसके अलावा भुकुंट भैरव केदारनाथ के क्षेत्रपाल देवता हैं। केदारबाबा से पहले केदारनाथ में भुकुंट भैरव की पूजा की जाती है।

बिना छत के स्थित है यह मंदिर

भुकुंट भैरव का यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से आधा किमी दूर दक्षिण दिशा में स्थित है। यहां मूर्तियां बाबा भैरव की हैं जो इसी प्रकार से बिना छत के स्‍थापित की गई हैं। भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है। पुजारियों के अनुसार, हर साल मंदिर के कपाट खोले जाने से पहले मंगलवार और शनिवार को भैरवनाथ की पूजा की जाती है।

जब कपाट बंद होने के वक्त केदारनाथ धाम में हुआ ‘चमत्कार’, देखकर अचंभित हुए सब

वर्ष 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन को गर्भगृह के कपाट बंद करने में खासी दिक्कतें हुई। लाख कोशिशों के बाद भी दरवाजे के कुंडे नहीं लग पाए। मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर चांदी लगाई गई थी । इसलिए कुंड लगाने में खासी दिक्कत हुई।
कई प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिली तो बीकेटीसी के सीईओ बीडी सिंह और वयोवृद्ध तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भकुंड भैरव का आह्वान किया। कुछ ही पल में भकुंड भैरव अपने पश्वा अरविंद शुक्ला पर अवतरित हुए। देवता द्वारा कुंड को स्पर्श करते ही वह दूसरे कुंडे पर जुड़ गया, जिसके बाद पदाधिकारियों व अधिकारियों की मौजूदगी में ताला लगाया गया। बीकेटीसी सीईओ ने बताया कि शीतकाल में केदारनाथ धाम की सुरक्षा भगवान भैरवनाथ के भरोसे होती है।

शीतकाल में करते हैं केदारनाथ मंदिर की रखवाली

हिंदू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार, देश में जहां-जहां भगवान शिव के सिद्ध मंदिर हैं, वहां-वहां काल भैरवजी के मंदिर भी हैं और इन मंदिरों के दर्शन किए बिना भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा माना जाता है। चाहे काशी के बाबा विश्‍वनाथ हों या उज्‍जैन के बाबा महाकाल। दोनों ही स्‍थानों पर काल भैरव के मंदिर हैं और भक्‍त भगवान शिव के दर्शन के बाद इन दोनों स्‍थानों पर भी आकर सिर झुकाते हैं तब उनकी तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है। ऐसे ही केदारनाथ में भी भुकुंट भैरव भैरवनाथ का मंदिर है। यहां भी हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव मंदिर में पूजापाठ की जाती है। मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है की शीतकाल में धाम के कपाट बंद होने पर भैरवनाथ जी द्वारा केदारनाथ धाम की रखवाली की जाती है की जाती है

ऐसे होती है भुकुंट भैरव की पूजा

परंपरा के अनुसार, भगवान केदारनाथ की चल विग्रह उत्‍सव डोली के धाम रवाना होने से पहले केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है। मान्‍यता रही है कि भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गद्दीस्‍थल उखीमठ के ओंकारेश्‍वर मंदिर में विराजमान भैरवनाथ की पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी को प्रस्‍थान कर देते हैं। पुराणों में भी बताया गया है कि बिना भैरों के दर्शन के यात्रा अधूरी मानी जाती है। हर साल मंदिर के कपाट खोले जाने से पहले मंगलवार और शनिवार को भैरवनाथ की पूजा की जाती है।

भुकुंट भैरव की चेतावनी से लेना होगा सबक

जिसे भुकुंट को केदारनाथ धाम का प्रथम पुजारी बताया जाता है उसकी केदारनाथ आपदा के बाद जो चेतावनी यहां के स्थानीय लोगो, या पुरोहित लोगो लिए थी या पूरे उस हिन्दू समाज के लिए जो यहां तीर्थ यात्रा को सिर्फ और सिर्फ हनीमून स्थल या फिर मनोरंजन का स्थान समझकर यहां पहुंचता है कहा नहीं जा सकता क्योंकि सिर्फ पुरोहित समाज को ही नहीं हमें भी यह बड़ी चेतावनी समझनी होगी कि हम हिन्दू विधि विधानों के साथ किसी भी धाम की यात्रा करें क्योंकि यहां प्रकृति के अनुशासन को बरकरार रखना व धर्म स्थलों की मर्यादा का ख़्याल रखना हमारा कर्तब्य है न कि वहां के तीर्थ पुरोहित समाज का। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे अध्याय दुबारा न दोहराये जाएं इसका हमें ख्याल रखना होगा

 

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