उत्तराखंड

ठेकेदार की दबंगई के सामने प्रशासन नतमस्तक

सड़क के मलबे से पेयजल योजनाएं और पैदलरास्ते क्षतिग्रस्त
डंपिंग जोन के बजाय नदी में डाला जा रहा है मलबा
रुद्रप्रयाग/अगस्त्यमुनि।

सहारा न्यूज ब्यूरो। क्या ऐसा सम्भव हो सकता है कि निर्माण करने वाली एजेन्सी एवं निर्माण कराने वाली एजेन्सी के नक्शे अलग-अलग हों। अब तक सबने देखा है कि निर्माण कराने वाली एजेन्सी पहले नक्शा बनाती है और फिर उसी आधार पर किसी एजेन्सी को ठेका देकर निर्माण कराती है। परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर प्रचारित आॅल वेदर रोड (चार धाम यात्रा परियोजना) में कुछ ऐसा ही देखा जा रहा है और ताज्जुब की बात है कि यह पता चलने के बाद भी शासन-प्रशासन ठेकदार की मनमानी के सामने मौन बना हुआ है। अन्य परियोजना की बात होती तो अब तक निर्माण एजेन्सी से काम छीन लिया जाता और उसे ब्लेक लिस्ट भी कर दिया जाता। परन्तु यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है और इसे तय समय से पहले पूर्ण करने की होड़ मची है। इसलिए ठेकेदार की मनमानी भी स्वीकार्य है और दबंगई भी ऐसी कि कोई भी नियम कानून उसके सामने गौण हैं।


जी हां यहां बात हो रही है रूद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड तक बनने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग की। जो कि आॅल वेदर रोड का ही हिस्सा है। इस मार्ग पर कार्य करने वाले ठेकेदार ने अपनी दबंगई से सभी नियम कानूनों को धत्ता बताया हुआ है। रोड कटिंग का मलबा केवल डम्पिंग जोन में ही फेंका जाना है, ऐसा एनजीटी ने भी कहा है। साथ ही मलबे को नदी तट से दूर होना चाहिए तथा मलबा डालने से पूर्व सुरक्षा दीवार बनानी आवश्यक है। आॅल वेदर रोड का ठेकेदार इन नियमों से या तो अनजान है या उसको इन नियमों के पालन में कोई दिलचस्पी नहीं है। एनएच विभाग को ठेकदार द्वारा नियमों का पालन कराना चाहिए। परन्तु या तो विभाग भी सोया हुआ है या ठेकेदार इतना दबंग है कि उस पर किसी का नियन्त्रण नहीं है। रूद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड के रास्ते में देखा जा सकता है कि ठेकेदार द्वारा मलबा कहीं भी फेंका जा रहा है। कई जगह तो नदी के किनारे बिना सुरक्षा दीवार बनाये ही डम्प किया जा रहा है। जो कि अगामी बरसात में केदारघाटी के लिए अभिषाप बन सकता हैं। केदारघाटी के लोग अभी तक 2013 की आपदा को नहीं भूलें हैं, जब यहां निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं के डम्पिंग यार्ड के मलबे ने तबाही मचाई थी।


कई जगह पर ठेकदार द्वारा रोड कटिंग का मलबा सूखे गधेरों में बिना किसी सुरक्षा के डाला जा रहा है। यदि बरसात में इन गधेरों के आस पास अतिवृष्टि हुई तो यह मलबा भी तबाही मचा सकता है। रोड कटिंग से नगर क्षेत्र एवं कस्बों के न केवल पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, बल्कि पेयजल व्यवस्था भी पूरी तरह प्रभावित हो गई हैं। इसका सबसे अधिक प्रभाव अगस्त्यमुनि क्षेत्र में बनने वाले बाई पास रोड पर देखा जा सकता हैं, जहां आये दिन जनता पानी के लिए सुबह से ही हैण्डपम्पों पर लाइन लगाये हुए है। बाईपास का मलबा भी सूखे गधेरों में डाला जा रहा है। जो कि नगर क्षेत्र के ऊपर स्थित हैं। इनमें से धान्यों गधेरे ने तो वर्ष 2005 में विजयनगर में भारी तबाही मचाई थी। जिसमें चार जाने जाने के साथ ही कई मकान भी क्षतिग्रस्त हुए थे। ऐसे में इस गधेरे में डाला गया मलबा एक बार फिर से विजयनगर के लिए खतरा बन सकता है।
रुद्रप्रयाग बाईपास में निर्माण कार्य के दौरान पेयजल योजनाएं और ग्रामीणों के पैदल रास्ते क्षतिग्रस्त हो गए हैं। ऐसे में आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मलबा इधर-उधर डालने, पेयजल लाइने क्षतिग्रस्त करने तथा लोंगो के पैदल रास्तों को बरबाद करने के अतिरिक्त रोड कटिंग का कार्य करने वाले ठेकेदार पर सबसे बड़ा आरोप यह लग रहा है कि वह समरेखण से अलग जाकर ग्रामीणों की नापभूमि को काट रहा है। रोड का समरेखण कहीं और हुआ है, परन्तु ठेकेदार द्वारा अपनी सुविधानुसार कहीं और ही कटिंग की जा रही है। उसे इससे भी कोई मतलब नहीं है कि प्रभावित को मुआवजा मिला भी है या नहीं। मुआवजा नीचे वाले को मिला है परन्तु ठेकेदार ने अपनी सुविधानुसार ऊपर वाले का खेत काट दिया। ऐसा एक जगह नहीं अनेक जगहों पर किया गया हैं।


प्रभावितों द्वारा शिकायत करने पर एनएच एवं राजस्व के अधिकारियों से शिकायत करने को कहा जा रहा है। एनएच के अघिकारी ठेकेदार द्वारा नक्शे के अनुसार रोड कटिंग करने की बात कह रहे हैं और प्रभावितों को एडीएम (नोडल अधिकारी) के पास मुआवजे की अर्जी लगाने को कहा रहे है। अगस्त्यमुनि क्षेत्र पंचायत की बैठक में भी यह मामला उठा था। जिसपर जिलाधिकारी ने एनएच के अधिकारियों से इसका जवाब मांगा था। अधिकारियों का जवाब था कि ठेकेदार के पास जो नक्शा है वह केन्द्रीय मंत्रालय से एप्रूव्ड है। जिलाधिकारी द्वारा एक ही रोड के दो नक्शे होने पर हैरानी भी जताई, परन्तु कुछ कह नहीं पाये। ऐसे में ठेकेदार की ऊंची पहुंच एवं दबंगाई का अहसास बखूबी होता है। जब जिलाधिकारी भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो अन्य की क्या बिसात। वहीं जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि एनएच के अधिकारियों को निर्देश जारी किए गए हैं कि मानकों के अनुरूप काम करवाएं। पेयजल योजना और क्षतिग्रस्त पैदल रास्तों को समय पर दुरूस्त किया जाए। नदी में मलबा न फेंका जाए।

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