उत्तराखंड

ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान हुए मद्महेश्वर

आज से शीतकालीन पूजा-अर्चना के साथ यात्रा का आगाज

रुद्रप्रयाग। पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम से विख्यात भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान हो गई है। डोली आगमन पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने डोली का पुष्प अक्षत्र से भव्य स्वागत किया। आज से भगवान मद्महेश्वर की शीतकालीन पूजा-अर्चना यहां पर शुरू की जायेगी।

मद्महेश्वर धाम में भगवान शिव की मध्य भाग की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पाण्डव गौत्र हत्या के पाप से बचने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे थे, तो उस दौरान हिमालय पर बलशाली भीम शिव की आराधना करते हैं। लेकिन शिव उन्हें दर्शन नहीं देते और भैंसो के झुंड में जाकर छिप जाते हैं। भीम भैंसे रूपी शिव को पहचान लेते हैं और उनकी ओर भागते हैं, तभी शिव जमीन के अंदर चले जाते हैं और भीम उनकी पूंछ को पकड़ लेते हैं। जिस स्थान पर भगवान शिव का पृष्ठ भाग रह जाता है, वहां आज केदारनाथ के नाम से जाना जाता है। जबकि शिव के पैर तुंगनाथ में और मध्य भाग मदमहेश्वर चला जाता है और शिव के मुख की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है।

डोली के शीतकालीन गद्दीस्थल आगमन से पूर्व ब्रह्मबेला पर गिरीया गांव में मद्महेश्वर धाम के प्रधान पुजारी राजेशखर लिंग ने भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली व साथ चल रहे देवी-देवताओं के निशाणों की पंचाग पूजन व पौराणिक परम्पराओं के तहत अनेक पूजायें सम्पन्न कर आरती उतारी और ठीक सवा आठ बजे भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली गिरीया से रवाना हुई और फाफंज, सलामी से होकर मंगोलचारी पहुंची, जहां पर रावल भीम शंकर लिंग द्वारा भगवान मद्महेश्वर की डोली को सोने का छत्र चढाया गया और ग्रामीणों ने अघ्र्य लगाकर मनौती मांगी।

इसके बाद भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली मंगोलचारी से रवाना होकर ब्राह्मणखोली, डंगवाडी यात्रा पड़ा़वो पर श्रद्धालुओ को आशीष देते हुए अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मन्दिर में विराजमान हुई। डोली आगमन पर श्रद्धालुओं ने भगवान मद्महेश्वर को अघ्र्य लगाकर क्षेत्र की खुशहाली की कामना की।

भगवान मद्महेश्वर के ऊखीमठ मंदिर में विराजमान होने के साथ ही शीतकालीन यात्रा का आगाज भी हो गया है। अब सरकार को चाहिए कि ग्रीष्मकाल की तरह ही शीतकाल की यात्रा का भी संचालन किया जाय, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके और पौराणिक धरोहरों को भी संजोया जा सके।

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