उत्तराखंड

छोटे से कमरे में की मशरूम की खेती, 50 पैकेट मशरूम में कमाया 15 हजार का मुनाफा….

“लौट आया हु शहर की जिंदगी छोड़कर” “अपने गाँव की खेती को आबाद करने”

दिव्यांशु बहुगुणा

श्रीनगर : मशरूम की खेती तो तमाम लोग कर रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड के जिला पौड़ी में श्रीनगर गढ़वाल के विकास चौहान की खेती की दास्तान ही कुछ और है। वह अपने घर के रूम में ही मशरूम की खेती कर श्रीनगर की मंडी व वह के आस पास के लोगों तक फसल की सप्लाई कर रहे हैं। वह बताते हैं कि किराये घर के रूम में विशेष किस्म का ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की खेती करने के लिए वह एक टैंक में लगभग सौ लीटर पानी भर देते हैं। फिर उसमें दस किलोग्राम भूसा भिगोकर घोल देते हैं।

उसके बाद पांच ग्राम वेबस्टीन पाउडर और 125 एमएल फार्मेटिनभी टैंक में डाल देते हैं। यह सब टैंक के पानी में मिलाने के बाद वह पूरे एक दिन तक यानी चौबीस घंटे उसे फर्श पर सुखाते हैं। सूखने के बाद इसमें सात सौ ग्राम बीज मिलाकर अलग-अलग लगभग पांच पैकेट तैयार कर लेते हैं और उन सभी पैकेटों को अपने रूम में ही लटका देते हैं। यह पैकेटों में झूलती फसल एक महीने में मशरूम के रूप में तैयार हो जाती है। किराये के मकान के एक रूम में वह ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की खेती कर श्रीनगर की मंडी व वह के आस पास के रहने वाले लोगों तक सप्लाई कर रहे हैं।उनकी देखादेखी कई और लोग क्षेत्र में उसी विधि से मामूली सी जगह में ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की फसल से मुनाफा लेने में जुटे हैं। विकास बताते हैं कि वह पिछले सात-आठ महीने से ही अभी इस काम में लगे हैं, लेकिन अपेक्षा से अधिक आय ने उन्हें अब इसे बड़े स्तर पर आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया है। नई विधि से ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की खेती शुरू करने से पहले उन्होंने एक साल पहले देहरादून में मशरूम की खेती के लिए करीब डेढ़ सप्ताह का प्रशिक्षण लिया था।

प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने यह गंभीरता से जानने की कोशिश की थी कि खेती किस तरह से कम से कम स्थान का उपयोग कर की जा सकती है। दरअसल, उनका विचार था कि बड़े स्पेस में खेती कहीं सफल हो, न हो। कम जगह में खेती करते हैं, मुनाफा नहीं भी होता है तो बाद में कोई पश्चाताप नहीं होगा। उनका ऐसा सोचना ही उनका खास आइडिया बन गया। वह अपने घर के एक रूम में ही ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की खेती में जुट गए। पहली बार उन्होंने घर के टैंक का इस्तेमाल कर अपनी विधि से लगभग पचास पॉलीथिन में ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की फसल लगाई और उन पचासो पैकेट को छत से लटका दिया ।वह बताते हैं कि ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम की फसल तैयार करने के लिए उन्होंने कमरे का तापमान दस से पचीस डिग्री सेल्सियस के बीच रखा। फसल तैयार होने के दौरान कमरे में नमी का स्तर सत्तर से नब्बे के बीच रहा। उनकी पहली फसल एक महीने में तैयार हो गई। इसके बाद बाजार की टोह में लग गए।

उधरी दूसरी तरफ विकास चौहान का एक्सपेरिमेंट इस मामले में औरों से थोड़ा अलहदा है, कि इस विधि से वह तीन महीने तक लगातार मशरूम का उत्पाद प्राप्त करते रहते हैं। ‘ऑयस्‍टर’ मशरूम का बीज वह दिल्ली से ले आते हैं।

 

 

 

 

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