उत्तराखंड

सीएम साहब क्या इसी को ज़ीरो टॉलरेंस कहते हैं, सैनिक स्कूल के नाम पर करोड़ों का घोटाला

सैनिक स्कूल के नाम पर खानापूर्ति

सैनिक स्कूल के नाम पर करोड़ों रुपए के वारे-न्यारेकई बार जांच होने के बावजूद जांच रिपोर्ट नहीं आई सामने ग्रामीणों ने स्कूल के लिये दी है करीब एक हजार नाली भूमि, सिंचित खेत देने के बाद भी ग्रामीणों को नहीं मिला मुआवजा

मोहित डिमरी 

रुद्रप्रयाग। रुद्रप्रयाग जिले की बड़मा पट्टी के दिग्धार में निर्माणाधीन सैनिक स्कूल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। दस करोड़ रुपए की धनराशि खर्च होने के बावजूद सैनिक स्कूल के नाम पर एक पत्थर तक नहीं लगा है। इस मामले में सरकारी स्तर पर हुई जांच की भी रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आई है। सैनिक स्कूल के निर्माण के लिए ग्रामीणों द्वारा दी गई करीब एक हजार नाली भूमि भी बर्बाद हो गई है। स्थिति यह है कि न तो सैनिक स्कूल का निर्माण हुआ और ना ही ग्रामीणों को भूमि का मुआवजा मिल पाया। पिछले डेढ़ साल से सैनिक स्कूल का निर्माण कार्य पूरी तरह ठप पड़ा है।

पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार में सैनिक कल्याण मंत्री रहे हरक सिंह रावत ने वर्ष 2013-14 में सैनिक स्कूल का शिलान्यास किया था। वह इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मान रहे थे। उन्होंने सैनिक स्कूल के निर्माण के लिए 11 करोड़ रुपए की धनराशि जारी करवाई थी। जिसमें करीब छह करोड़ सैनिक कल्याण विभाग और 5 करोड़ उपनल के माध्यम से मिले थे। कार्यकारी संस्था उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने 10 करोड़ रूपये की धनराशि से दिग्धार में खानापूर्ती के लिए जमीन समतलीकरण, दीवाल और डेढ़ किलोमीटर कच्ची सड़क का ही निर्माण किया है।

स्थानीय लोगों को सैनिक स्कूल निर्माण से विकास की उम्मीद जगी थी। सैनिक स्कूल के लिए उन्होंने अपनी सिंचित जमीन तक दे दी थी। ग्रामीण महिला आशा देवी, विमला देवी का कहना है कि उनके पास जितनी भी जमीन थी, वह सैनिक स्कूल के लिये बनी सड़क में चली गई है और उन्हें इसका मुआवजा भी नहीं मिला है। रोजगार देने की बात कही गई थी, लेकिन रोजगार भी नहीं मिल पाया है। आज आजीविका का संकट मंडरा गया है। कई बार शिकायत भी दर्ज करा दी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पूर्व में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से भी इस बारे में सवाल किया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने भी यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि मामला संज्ञान में है और कार्रवाई की जायेगी।

बड़मा विकास समिति के अध्यक्ष कालीचरण रावत कहते हैं कि काश्तकारों ने सैनिक स्कूल के नाम पर अपनी कृषि भूमि दी थी। लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। ग्रामीण चाहते हैं कि उनकी भूमि की प्रतिपूर्ति मुआवजे के रूप में की जाए।
जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने भी स्वीकारा कि जितना भी कार्य हुआ है, उसमें गुणवत्ता नहीं है। डीएम का कहना है कि फिर से इस मसले को देखा जायेगा।

सरकार भले ही जीरो टालरेन्स की बात हर मंच से कर रही है, मगर सैनिक स्कूल के नाम पर हुए करोडों रुपए के घोटाले पर सरकार की तरफ से अभी तक कोई भी कदम नहीं उठाए गए हैं। हर बार जांचें कर ली जाती हैं और जनता को आश्वासन दे दिया जाता है। लम्बा समय बीत जाने के बाद अब स्थानीय लोगों को यह चिन्ता सताने लग गयी है कि उन्हें तो रोजगार मिला,ना मिली सड़क, ना मुआवजा और ना ही स्कूल।

सपना ही रह गया दूसरा सैनिक स्कूल
रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड एक मात्र ऐसा राज्य है जहां घोड़ाखाल (नैनीताल) के बाद दूसरा सैनिक स्कूल बन रहा था। सैनिक स्कूल का निर्माण ‘सैनिक स्कूल सोसायटी’ करती है और यह शिक्षा विभाग के नियंत्रण में होती है और उसका अध्यक्ष प्रदेश का शिक्षामन्त्री होता है। आपको बता दें कि तत्कालीन सैनिक कल्याण मंत्री के ‘प्रभाव’ के चलते इस विद्यालय का निर्माण कार्य शिक्षा विभाग के बदले सैनिक कल्याण विभाग को सौंपा गया। यह सब तत्कालीन सैनिक कल्याण मंत्री हरक सिंह रावत और शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के बीच तनातनी के कारण हुआ।

 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top