भारत चीन को पटखनी के पश्चात नेपाल पर पैनी नजर..
देश-विदेश : नेपाल में चीन की रणनीति को धराशाई करने के बाद वहां के राजनीतिक घटनाक्रमों पर भारत की पैनी नजर है। भारत की पहली कोशिश वहां चुनाव कराने पर है। भारत को उम्मीद है कि चुनाव के बाद नेपाल और भारत के रिश्ते फिर से पटरी पर आ जाएंगे।
दरअसल भारत को चार महीने पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की उम्मीद थी। हालांकि चीन के खुले हस्तक्षेप के बाद ओली का कार्यकाल लंबा खिंच गया। अब पार्टी में फूट के बाद जिन परिस्थितियों में मध्यावधि चुनाव होने हैं, उनमें पीएम के रूप में ओली की वापसी की संभावना नहीं के बराबर है। इसकी संभावना ज्यादा है कि देश के वामपंथी दल सीपीएन और सीपीएन माओवादी अलग राह अपना लें।
चीन की चिंता…
भारत खासतौर पर चीन की भावी भूमिका को लेकर आशंकित है। इस मामले में पटखनी खाने के बाद चीन ओली को फिर से पार्टी में स्थापित करना चाहेगा। भारत से तकरार के बाद नेपाल में चीन की राजदूत ने कई मौकों पर ओली की रक्षा की थी। भारत को लगता है कि ओली को पार्टी में स्थापित करने के लिए चीन फिर से अपनी सारी ताकत झोंकेगा। हालांकि पार्टी में अलग-थलग पड़े ओली का बचाव अब चीन के लिए मुश्किल होगा।
तय समय पर चुनाव क्यों चाहता है भारत…
दरअसल ओली के कार्यकाल में भारत-नेपाल के रिश्तों में अभूतपूर्व कड़वाहट आई। ओली ने उस समय भारत के साथ विवाद खड़ा किया जब भारत पूर्वी लद्दाख से जुड़े एलएसी पर चीन से कूटनीतिक जंग लड़ रहा था। उस दौरान ओली ने जानबूझ कर सीमा सहित कई तरह के विवाद खड़े किए। भारत को लगता है कि चुनाव बाद चाहे जिसकी सरकार बने, मगर दोनों देशों के संबंधों में ऐसी कड़वाहट की वापसी नहीं होगी।
विवाद पर भी है नजर..
दरअसल नेपाल के संविधान में संसद को भंग करने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में ओली सरकार के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर पर विवाद है। कई दलों ने इस मामले को अदालत में चुनौती दी है। जाहिर तौर पर मध्यावधि चुनाव से पहले प्रतिनिधि सभा भंग करने के मामले में न्यायिक स्तर पर सियासी लड़ाई के आसार बन रहे हैं।