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हिंमवन्त देश हौला त्रियुगीनारायण

पार्वती एवं भगवान शंकर का विवाह भगवान ब्रह्नमा ने कराया था, इसलिए इस स्थान पर ब्रह्नमा, विष्णु एवं शिव तीनों देव अपने शक्तियों के साथ विराजमान हैं। जो व्यक्ति त्रियुगीनारायण में जलाभिषेक कर धूनी के लिए लकड़ी दान देता है, उसकी तीन सौ पीढिय़ों के पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है

केदारघाटी- हिमवंत, केदारखण्ड, मानसखण्ड, स्वर्ग धाम व मानवीय संस्कृति के नाम से पहचाने जाने वाले उत्तराखण्ड में नर-नारायण तथा गौरी-शंकर की महिमा का वृहद रूप से वर्णन है। शिव की तपोभूमि व पार्वती की जन्मभूमि हिमालय, जहां महा शिव-शक्ति विराजमान रहते हैं, यहां पर प्रकृति का सौन्दर्य का वैभव बिखरा हुआ है। इसको देखने मात्र से ही सुखद अनुभूति की प्राप्ति होती है।

सोनप्रयाग से 13 किमी की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण सिद्धपीठ शैव और वैष्णवों की आस्था का केन्द्र है। यहां पर मुख्य आकर्षण का केन्द्र भगवान शंकर का मुख्य मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान नारायण ने तीन रूप बामन, विनायक तथा नागरूप बनाए थे। इसलिए इस तीर्थ को त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है। यहां के बारे में जनश्रुति है कि भगवान विष्णु को साक्षी मानकर राजा हिमांचल ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शंकर से कराया था

। इस शादी-विवाह मंडप की प्रज्वलित धूनी अभी तक निरंतर जलती आ रही है। मंदिर में जलती यह धूनी आज भी प्रत्यक्ष रूप से श्रद्धालुओं को दिखाई देती है। पार्वती एवं भगवान शंकर का विवाह भगवान ब्रह्नमा ने कराया था, इसलिए इस स्थान पर ब्रह्नमा, विष्णु एवं शिव तीनों देव अपने शक्तियों के साथ विराजमान हैं। लोक मान्यताएं हैं कि जो व्यक्ति त्रियुगीनारायण में श्रद्धा सुमन अर्पित कर पूजा-अर्चनाएं करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

तीन युगों से जलती धूनी की भस्मी को धारण करने से युग-युगान्तर से लेकर कल्प-कल्पांतरों के दुखों का हरण होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जो व्यक्ति त्रियुगीनारायण में जलाभिषेक कर धूनी के लिए लकड़ी दान देता है, उसकी तीन सौ पीढिय़ों के पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

त्रियुगीनारायण से पांच किमी दूर तोषी गांव में पार्वती का जन्म स्थल माना जाता है, इसलिए इस स्थान पर आदि शक्ति की पूजा बाल रूप में की जाती है। यहां पर भगवान सदाशिव भैरव रूप में विराजमान हैं। दशकों से चली आ रही परम्परा को जीवित रखते हुए भाद्रपद के महीने में ग्रामीणों द्वारा त्रियुगीनारायण में बावन द्वादशी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान नारायण को ब्रह्नमकमल अर्पित किये जाते हैं।

त्रियुगीनारायण के तीर्थ पुरोहित दीनमणि गैरोला, का कहना है कि इस कलिकाल में जो मानव सिद्धपीठ त्रियुगीनारायण में आकर दर्शन पूजा-अर्चना जलाभिषेक व तर्पण करता है, उस मानव को पुत्र-पौत्रादि, वंश, यश, बुद्धि, आयु की प्राप्ति होती है।

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