उत्तराखंड

गुप्तकाशी : पहाड़ के लोगों को फिर लुभा रहे हैं सदियों पुराने ये मनोरंजन के साधन

कुलदीप बगवाड़ी

गुप्तकाशी : आज टेलीविजन, इंटरनेट और मनोरंजन के दर्जनों साधनों की उपलब्धता के बाद भी एक बार फिर पहाड़ के लोग सदियों पुराने मनोरंजन के साधनों की ओर मुड़ रहे हैं. मनोरंजन की इन परम्परागत विधाओं से यहां के निवासियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भूख और आवश्यकता की पूर्ति तो होती ही है, साथ ही मनोरंजन भी होता है.

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के ल्वारा (गुप्तकाशी ) गांव के साथ ही अनेक गांवों में इन दिनों पांडव नृत्य का आयोजन हो रहा है. कई गांवों में ये आयोजन 15 से अधिक सालों के बाद हो रहे हैं.

बताया जाता है कि जाड़ों के मौसम में पहाड़ में खेती-किसानी नहीं होने से आम-जनमानस फुर्सत में होता है. इन त्यौहारों के बहाने बहन-बेटियां भी मायके आती हैं. पांडव नृत्यों का आयोजन 21 से लेकर 45 दिन तक का होता है. उत्तराखंड में केदारनाथ से लेकर हर मंदिर से पांडवों से जुड़ी कथाएं प्रचलित हैं.

यहां के स्थानीय निवासी पांडवों की देवताओं के रूप में पूजा करते हैं. पांडव नृत्यों के आयोजन में पांडव आवेश में परम्परागत वाद्य यंत्रों की थाप और धुनों पर नाचते हैं. पांडव नृत्य में युद्ध की सदियों पुरानी विधाओं जैसे चक्रव्यू, कमल व्यू, गरुड़ व्यू, मकर व्यू आदि का भी आयोजन होता है. रात्रि में पांडव लीला के आयोजन में महाभारत की कथाओं का मंचन भी होता है.

ल्वारा गांव पांडव नृत्य से जुड़ी खास बातें

ल्वारा गांव पांडव नृत्य का आयोजन 14 वर्षो के बाद हो रहा है, जिसमे कही युवाओं पे देव गड़ देखने को मिल रहे है, पांडव नृत्य का लुप्त उठाने और उत्साह बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय जनता भी बढ़ चढ़कर के हिसा ले रही है, 28 दिसम्बर को चक्रव्यू का आयोजन होगा और पांडव नृत्य २ जनवरी तक चलेगा, क्षेत्रीय युवा मुक्की बगवाड़ी, सुरजीत भट्ट, आलोक शुक्ला, विपिन बगवाड़ी,प्रिंस शुक्ला, प्रेम बगवाड़ी , हेमंत बुटोला , सौरव शुक्ल,दीपक भट्ट अन्य बताते है की अपनी परम्परा, वाद्य यंत्रों और लोक संस्कृति से जोड़े रखने का ये एक अच्छा प्रयास है

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