उत्तराखंड

तो ख़त्म हो जाएगा राज्य पुष्प ब्रह्मकमल का अस्तित्व !

हिमालय क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों से ब्रह्मकमल पर मंडरा रहा खतरा
प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा फेंके जाने से ब्रह्मकमल की प्रजाति हो रही नष्ट
सरकार की हिमालय नीति भी नहीं हो पा रही कारगर साबित
वन महकमे को नहीं है कोई चिंता, पर्यावरणविद भी हैं परेशान
रोहित डिमरी
रुद्रप्रयाग। भगवान शंकर का प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसको लेकर जहां वन महकमे को कोई चिंता नहीं है, वहीं सरकार की हिमालय नीति भी इस ओर कोई कारगर साबित नहीं हो रही है। ऐसे में वैज्ञानिक इस पुष्प के संरक्षण को लेकर खासे चिंतित नजर आ रहे हैं। उनकी माने तो अगले कुछ सालों में ब्रह्मकमल का नामोनिशान ही हिमालय से मिट जायेगा, जिसके लिए साफ तौर पर मनुष्य ही दोषी है।

ब्रह्मकमल ऊंचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है, जो कि हिमालय में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्मकमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों तथा तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई में पाया जाता है। इसकी सुंदरता और दैवीय गुणों से प्रभावित होकर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है, मगर आज यह पुष्प अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

भगवान शंकर को चढ़ाये जाने वाले इस पुष्प की संख्या कम होती जा रही है। ऊंचाले वाले क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां ज्यादा होने से इसका दोहन किया जा रहा है। रही-सही कसर पर्यटक यहां प्लास्टिक-कचरा छोड़कर कर रहे हैं। ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है, जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्मकमल को शुभ माना जाता है। इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था।

ब्रह्मकमल की महत्ता से कोई अनविज्ञ नहीं है। देश-विदेश से पर्यटक और श्रद्धालु इसे देखने के लिए हिमालय की ओर कूच करते हैं, मगर आज स्थिति यह आ गई है कि संरक्षण के अभाव में बह्मकमल दम तोड़ रहा है। यह पुष्प बद्रीनाथ-केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ के इलाकों में पाया जाता है। हर साल ब्रह्मकमल की संख्या घटती जा रही है, जिसका मुख्य कारण हिमालय क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों का अत्यधिक बढ़ना है। पर्यटक और स्थानीय लोग हिमालय में जाकर ब्र्हमकमल का दोहन कर रहे हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं। इस कूड़े-कचरे और प्लास्टिक के कारण ब्रहमकमल का फूल सही तरीके से भी नहीं खिल पा रहा है, जबकि इसकी जड़ें भी खराब हो रही हैं। ब्रह्मकमल की बढ़ने की क्षमता समाप्त हो रही है। पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ा है।

एक ओर राज्य सरकार हिमालय नीति बनाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य पुष्प विलुप्ति की कगार पर है। जिसका कुप्रभाव सबसे अधिक पर्यावरण पर पड़ेगा और इसके दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे। पुष्प के संरक्षण को लेकर ना ही वन महकमा सजग दिखाई दे रहा है और ना ही सरकार कोई ठोस कदम उठा रही है। ऐसे में वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ना लाजमी ही है। अगर समय से इस पुष्प की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम नहीं उठाये गये तो वो दिन भी दूर नहीं होगा, जब राज्य पुष्प सिर्फ नाममात्र का रह जायेगा।

उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केन्द्र (हैप्रेक) के वैज्ञानिक भी राज्य पुष्प के संरक्षण को लेकर चिंतित हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में यह पुष्प अत्यधिक संख्या में पाया जाता है, लेकिन धीरे-धीरे यह विलुप्त होता जा रहा है। मेडिशन प्लांट के रूप में भी इस पुष्प की डिमांड ज्यादा है। इस पुष्प को पांच से दस रूपये में खरीदा जा रहा है। क्लाइमेंट चैंज होने से भी पुष्प की प्रजाति कम होती जा रही है। हिमालय क्षेत्रों में सैलानियों की बढ़ती संख्या से पुष्प के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अगर समय से इसके बचाव के तरीके नहीं ढूँढे गये तो ब्रह्मकमल को बचाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। वन विभाग को ब्रह्मकमल की सुरक्षा को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है।
म0सी0 नौटियाल
डायरेक्टर, हैप्रिक श्रीनगर

आस्ट्रेलिया से ग्रूप के साथ ब्रह्मकमल को देखने आये थे। बहुत सुना था ब्रह्मकमल के बारे में। यहां आकर ब्रह्मकमल की स्थिति को देखकर बहुत बुरा लगा। इस पुष्प के आस-पास कूड़ा-कचरा पड़ा है। गंदगी फैलाकर पुष्प को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। वन विभाग को इसकी सुरक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए।
जानकी सोमया, लीना, अजिता, एनआरआई

ब्रह्मकमल औषधीय प्लांट है। हिमालय में आकर पर्यटक एवं श्रद्धालु अपशिष्ट छोड़ रहे हैं। प्लास्टिक सड़ता नहीं है और ब्रह्मकमल की जड़ों में गर्मी पैदा करता है। इसके साथ ही आस्था के नाम पर ब्रह्मकमल का अधिक दोहन होने के कारण इसके बीजों से नयी पौध भी विकास नहीं हो पा रहा है। पुष्प के अंदर ही बीजपुंज पाया जाता है, जिसे तोड़कर लगाया जाता है। यदि यही स्थिति रही तो ब्रह्मकमल की प्रजाति विलुप्ति हो जायेगी। सरकार को भी इसे ओर सोचने की जरूरत है। हिमालय नीति की बात करने वाली सरकार को ब्रह्मकमल के अस्तित्व को बचाने की पहल करनी होगी।
देव राघवेन्द्र चैधरी
पर्यावरणविद्

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top