दून की नियो मेट्रो परियोजना को झटका, स्टेशन की जमीन पर पार्क बनाने की उठी मांग..
उत्तराखंड: राजधानी देहरादून में प्रस्तावित नियो मेट्रो परियोजना को एक और बड़ा झटका लगता नजर आ रहा है। लगभग आठ वर्षों में 90 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाने के बावजूद अब तक अधर में लटके इस प्रोजेक्ट के भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं। ताजा मामला आईएसबीटी के पास नियो मेट्रो स्टेशन के लिए आवंटित की गई जमीन को लेकर है, जिसे अब पार्क में तब्दील करने की मांग उठाई गई है। यह मांग झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल ने की है, जो कि एमडीडीए एचआईजी आईएसबीटी रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने एमडीडीए से आग्रह किया है कि इस जमीन पर नियो मेट्रो स्टेशन की बजाय स्थानीय निवासियों के लिए हरित पार्क विकसित किया जाए। विधायक कर्णवाल का कहना है कि परियोजना को लेकर वर्षों से असमंजस की स्थिति बनी हुई है और जमीन खाली पड़ी है, जबकि कॉलोनीवासियों को खुली और हरित जगहों की सख्त जरूरत है। राज्य सरकार द्वारा घोषित इस परियोजना पर बीते वर्षों में कई चरणों में धन खर्च किया जा चुका है। करीब 90 करोड़ रुपये की लागत अब तक विभिन्न गतिविधियों जैसे सर्वेक्षण, डीपीआर निर्माण और तकनीकी परामर्श पर खर्च हो चुकी है। बावजूद इसके जमीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और राजनीतिक सहमति जैसे अहम मुद्दे अभी भी सुलझ नहीं पाए हैं। स्थानीय निवासियों और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्टेशन की जमीन ही हाथ से निकल गई, तो नियो मेट्रो का पूरा प्रोजेक्ट ही पुनर्विचार की स्थिति में आ जाएगा। इससे सरकार की शहरी सार्वजनिक परिवहन योजना को गहरा धक्का लग सकता है।
राजधानी देहरादून में बहुप्रतीक्षित नियो मेट्रो परियोजना को लेकर एक और बड़ा विवाद सामने आया है। आईएसबीटी के पास प्रस्तावित स्टेशन स्थल की जमीन अब विवादों में घिर गई है, क्योंकि इस जमीन पर पार्क बनाने की मांग ने नया मोड़ ले लिया है। झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल ने इस संबंध में सीएम पुष्कर सिंह धामी को पत्र भेजकर अनुरोध किया है कि आईएसबीटी के बराबर वाली भूमि पर हरित पार्क निर्माण की घोषणा की जाए। चौंकाने वाली बात यह है कि पार्क निर्माण की यह पहल गुपचुप तरीके से शुरू की गई है और इस बारे में उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (UKMRC) को अब तक कोई औपचारिक सूचना नहीं दी गई है। परियोजना के प्रबंध निदेशक बृजेश कुमार मिश्रा ने मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया कि उन्हें पार्क से जुड़ी किसी भी योजना या प्रस्ताव की जानकारी नहीं है। उनके अनुसार, संबंधित भूमि पर नियो मेट्रो का स्टेशन भवन निर्माण प्रस्तावित है और अब तक सभी तैयारियां उसी के अनुसार चल रही थीं। इस घटनाक्रम से न केवल नियो मेट्रो परियोजना की प्रगति पर सवाल खड़े हो गए हैं, बल्कि यह आशंका भी गहराने लगी है कि यदि भूमि एमडीए द्वारा किसी अन्य प्रयोजन के लिए स्थानांतरित कर दी जाती है, तो परियोजना का भविष्य और भी ज्यादा अनिश्चितता में पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि नियो मेट्रो प्रोजेक्ट पर अब तक करीब 90 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन जमीन अधिग्रहण, निर्माण और अनुमति संबंधी अड़चनें इसे लगातार अधर में डाले हुए हैं।
2017 से कवायद, 2022 में केंद्र को भेजी थी डीपीआर..
राजधानी देहरादून में मेट्रो रेल चलाने का सपना वर्ष 2017-18 में देखा गया था, लेकिन यह सपना अब तक कागजों और प्रस्तुतियों के जाल में उलझा हुआ है। कई बार की समीक्षा, तकनीकी परीक्षण और योजना बदलावों के बाद नियो मेट्रो मॉडल को अंतिम रूप मानते हुए राज्य सरकार ने इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) को 08 जनवरी 2022 को कैबिनेट से मंजूरी दिलाई थी। इसके चार दिन बाद यानी 12 जनवरी 2022 को यह DPR केंद्र सरकार को भेजी गई, लेकिन वहां से सालभर तक केवल प्रश्नों और तकनीकी टिप्पणियों का दौर चला। इसके बाद केंद्र स्तर पर इस पर कोई ठोस संवाद या निर्णय नहीं हो सका।केंद्र से अपेक्षित सहयोग न मिलने पर उत्तराखंड सरकार ने इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना को अपने बूते आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके लिए इसे मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (PIB) के अधीन रखा गया। इस स्तर पर भी विभिन्न प्रजेंटेशन और विचार-विमर्श हुए, लेकिन कोई अंतिम निर्णय नहीं हो सका। सूत्रों के अनुसार, अभी तक राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी किसी स्पष्ट निर्णय की स्थिति में नहीं हैं। भूमि, वित्तीय प्रबंधन, निर्माण अनुबंध और केंद्र की मंजूरी जैसे मसलों पर स्थिति अभी भी अधर में है। डीपीआर तैयार करने से लेकर मॉडल में बदलाव, तकनीकी अध्ययन और सलाहकार एजेंसियों के शुल्क तक बड़ी धनराशि खर्च की जा चुकी है। लेकिन भौतिक रूप से ज़मीन पर अब तक एक ईंट भी नहीं रखी गई है।
यह हैं मेट्रो के दो प्रस्तावित कॉरिडोर..
आईएसबीटी से गांधी पार्क, लंबाई 8.5 किमी
एफआरआई से रायपुर, लंबाई 13.9 किमी
कुल प्रस्तावित स्टेशन, 25
कुल लंबाई, 22.42 किमी
लेटलतीफी से 450 करोड़ रुपए से अधिक बढ़ी लागत
पूर्व में मेट्रो परियोजना की लागत 1852 करोड़ रुपए आंकी गई थी। अब साल दर साल बढ़ते इंतजार में लागत बढ़कर करीब 2303 करोड़ रुपए हो गई है। यही कारण है कि अधिकारी इतनी बड़ी परियोजना को लेकर निर्णय करने से कतरा रहे हैं।
