उत्तराखंड

विश्व जल दिवस: 50 प्रतिशत जल स्रोत सूखे, पानी देने वाला पहाड़ ही प्यासा..

विश्व जल दिवस: 50 प्रतिशत जल स्रोत सूखे, पानी देने वाला पहाड़ ही प्यासा..

उत्तराखंड: आज विश्व जल दिवस है, हर साल विश्व जल दिवस पर देश और प्रदेशों में तमाम संस्थाएं और सरकारी महकमे इस गहराती जा रही गंभीर समस्या पर चिंतन करते हैं, योजनाओं का बखान और सफलताओं के आंकड़े भी पेश करते हैं लेकिन धरातल पर जरूरी प्रभाव और उसके कामयाबी के अंश कहीं नजर नहीं आते। दरअसल हकीकत तो ये है कि जल संरक्षण की मुहिम आज कम से कम उत्तराखंड में सिर्फ कागजों में ही बहती नज़र आ रही है। क्योंकि पहाड़ सूखता जा रहा है और उत्तराखंड वासियों को जल संकट से जूझना पड़ रहा है।

 

इस गंभीर समस्या पर जल संस्थान प्रबंध निदेशक नीलिमा गर्गका कहना हैं कि उनका विभाग रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर सरकार से मिले निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ रहा है। देहरादून की बात करें तो शासन की मंजूरी के बाद रेन वाटर हार्वेस्टिंग को 32 भवनों में स्थापित किया जा रहा है। जैसे-जैसे शासन से बजट स्वीकृत होता रहेगा, योजना पर कार्य को तेज़ी से आगे बढ़ाया जायेगा ।

 

आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में करीब 2.6 लाख प्राकृतिक जल स्रोत हैं। प्रदेश में तकरीबन 90 फीसद पेयजल आपूर्ति इन्हीं जल स्रोतों से होती है। मगर, पर्याप्त रिचार्ज नहीं मिल पाने के कारण इन जल स्रोतों में बीते कुछ सालों से पानी की मौजूदगी घटती जा रही है। इसके अलावा भूजल का उपयोग और अनियोजित दोहन भी लगातार बढ़ रहा है। इन वजहों से प्रदेश में जल संकट की स्थिति उत्पन्न होने लगी है। इसे ऐसे में ये समझना आसान है कि 30% ग्रामीण और 50 % शहरी इलाके आखिर क्यों जल संकट से जूझ रहे हैं। अब इस मुद्दे पर नीति आयोग की रिपोर्ट को देखें तो हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्रोत जिनमें मुख्यत: जलधाराएं और झरने हैं वो तेज़ी से सूख रहे हैं। 150 वर्ष में 60 फीसद प्राकृतिक जल स्रोत सूखने का दावा नीति आयोग की रिपोर्ट में किया गया है।

 

पेयजल निगम के आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश के तीन पर्वतीय जिलों में सबसे ज्यादा पेयजल की किल्लत है। पौड़ी में हर साल की तरह इस साल भी पानी की उपलब्धता सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। टिहरी के भी कई इलाकों में पानी की किल्लत शुरू हो गई है। जबकि अल्मोड़ा के सल्ट, भिखियासैंण सहित कई क्षेत्रों में पेयजल की भारी कमी होने लगी है। पानी के बिना गुजारा करना मुश्किल है और ये मुश्किल पहाड़ों में कितनी बड़ी चुनौती है इसका अंदाज़ा सिर्फ वहां रहने वाले ग्रामीण ही लगा सकते हैं ऐसे में सरकार और ज़िम्मेदार विभाग के लिए मीटिंग्स , दावों और फाइलों के ढेर से बाहर निकल कर उत्तराखंड के लोगों को पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना सबसे बड़ा दायित्व है

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