उत्तराखंड

प्राकृतिक आपदाओं से कब ले सकेंगे सबक…

प्राकृतिक आपदाओं

प्राकृतिक आपदाओं से कब ले सकेंगे सबक..

उत्तराखंड : गंगोत्री गोमुख मार्ग पे राम मंदिर कनखू आश्रम है, जंहा 10-12 सालों से मैंने गर्मियों के अलग अलग सीजन में लम्बा समय बिताया है, 17-18 की उम्र में आश्रम में रहना , साधुओं की सेवा करना , ट्रेकर यात्रियों के साथ गाइड करना, पॉटर का काम करते हुए जो अनुभव मिले उनसे लगता है प्रकृति ही मेरी सबसे बड़ी शिक्षक है।

 

 

उस दौरान चीड़वासा, भोजवासा के बीच ग्लेशियर आने की घटना गोमुख के ऊपर चढ़ाई करते हुए गोमुख-तपोवन के बीच छोटे छोटे कैचमेंट बनते देखना और उनका फटना मुझे आम लगता था। तब 2007-08 में गोमुख यात्रा के लिए कोई भी परमिशन की आवश्यकता नही होती थी, वनविभाग के चेक पोस्ट पे कुछ फीस कटती थी और हर रोज सेकड़ो यात्री गोमुख यात्रा करने जाते थे।

 

 

ग्लेशियर टूटने से पानी की आपूर्ति हमारी सबसे बड़ी परेशानी थी और कभी कभी खबर आती थी कि ग्लेशियर टूटने से 1-2 लोगों की जान गयी, इससे ज्यादा नुकसान शायद ही कभी हुआ होगा, कुछ बताते थे कि गोमुख के पास फ़ोटो खिंचवाते हुए कैमरे के फ्लैश से ग्लेशियर चटक जाते हैं ऐसे तर्कों की वैज्ञानिकता की सच्चाई का तो मुझे पता नही लेकिन ये बातें संकेत तो देती थी कि ग्लेशियर मानवीय दख़ल-अंदाजी के लिहाज से संवेदनशील होते हैं। लेकिन ग्लेशियर टूटने से आज चमोली की आपदा का आना और 200 से ज्यादा लोगों का लापता होना केवल मानवीय दुष्प्रवृत्ति का परिणाम है|

 

 

आपदा के बाद कारण ढूंढने में अब लाखों पैसे भी खर्च होंगे, कई रिसर्च होगी कई प्रोजेक्ट और बजट खर्च होगा और रिसर्च अलमारियों में बंद हो जाएगी, जबकि जरूरत केवल इतनी है कि इस आपदा को देखकर सरकार ही नही, हर आदमी अपने आप से ये पूछे कि ग्लेशियर के मार्ग में प्राकृतिक रूप से रहने वाले कितने लोगों को इस आपदा ने नुकसान पहुँचाया। शायद इस आपदा के कारण और समाधान आपके सामने होंगे।

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