21 वर्ष के उत्तराखंड की बेबसी की कहानी..
उत्तराखंड: राज्य आंदोलन की आग में तपकर नौ नवंबर, 2000 को राज्य का जन्म हुआ था। इस आंदोलन ने राज्य गठन की भूमिका तैयार की और उत्तराखंड वासियों में सपने देखने की मासूम सी इच्छा प्रकट हुई, कि अब शायद उत्तराखंड वासियों के लिए उम्मीद की किरण उभरकर सामने आयेगी। वर्ष 2000 से शुरू हुई यह यात्रा अब 21 साल का सफर पूरा कर चुकी है। लेकिन इस सफर में उत्तराखंड वासियों के सामने चुनौती ही उभरकर सामने आयी हैं। आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीणों के सामने कई समस्याएं आ रही हैं। कही ग्रामीण इलाको में सड़क नहीं पहुंची तो कही पर ग्रामीणों को पेयजल की समस्याओ, स्वास्थ्य समस्याओ से जूझना पड़ रहा हैं। फिर भी सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा हैं।
वह वोट मांगने तो ग्रामीण इलाको में आते हैं। और चुनावी टाइम पर जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं। लेकिन सत्ता में आने के बाद वो ग्रामीण क्षेत्रो और गांव के लोगों को भूल जाते हैं। लेकिन जनता को अब संकल्प लेना चाहिए कि वो ऐसी सरकार को वोट न दें, नही तो पहाड़ का भविष्या और पहाड़ी इलाके समाप्त हो जायेंगे। हमारी एक पीढ़ी समाप्त हो चुकी है और दूसरी पीढ़ी बर्बाद होने के कगार पर है। इसके साथ ही आज हमारे राज्य के युवा ग्रामीण क्षेत्रो की स्थति को देखकर बेरोजगारी और पलायन का शिकार हो रहे हैं।
आज सोशल मीडिया पर एक ऐसा ही वीडियो वायरल हो रहा है। जो स्कूली छात्राओं के द्वारा बनाई गयी हैं। यह वीडियो 21 वर्ष के उत्तराखंड की बेबसी की कहानी बया कर रहा है। जहा पर सड़क न होने के कारण स्कूली छात्राएं स्कूल आते जाते समय घर की जरूरतमंद चीजें ले जाती हुई नजर आ रही हैं। वीडियो में स्कूली छात्राएं 21 वर्ष तक रही सरकारों के विकास के दावों को आइना दिखा रही हैं।