उत्तराखंड

विश्व शांति के लिए निकली यात्रा रुद्रप्रयाग पहुंची

यात्रा

स्थानीय श्रद्धालुओं ने जगदीशिला डोली का किया भव्य स्वागत
मठ-मंदिरों को बढ़ावा देना यात्रा का मकसद
रुद्रप्रयाग। टिहरी गढ़वाल के विशोन पर्वत से निकली भगवान श्री विश्वनाथ एवं मां जगदीशिला डोली रथ यात्रा के रुद्रप्रयाग पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने भव्य स्वागत किया। यात्रा का मुख्य उद्देश्य विश्व शांति, देवसंस्कृति को बढ़ावा देना और चार धाम के अलावा अन्य धामों की जानकारी देश-विदेश तक पहुंचाना है। यह यात्रा करीब दस हजार किमी की दूरी तय करेगी।

हरिद्वार हरकीपैड़ी से प्रारंभ होकर जगदीशिला डोली रथ यात्रा देवप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, चमोली बागेश्वर, अल्मोड़ा समेत विभिन्न पड़ावों से होते हुए रुद्रप्रयाग पहुंची। रुद्रप्रयाग में यात्रा संयोजक और पूर्व काबीना मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि विश्व शांति, देवसंस्कृति को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने के साथ ही प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण धामों के प्रचार-प्रसार के लिए यह यात्रा चल रही है। वेद पुराणों में चारधाम के अलावा भी हजारों धार्मिक स्थलों का जिक्र है। हमारा मकसद एक हजार मंदिर मठों को इस यात्रा से जोड़ने का है। इसके लिए एक हजार लोगों की टीम बनाई जाएगी। इन धामों में संस्कृत महाविद्यालय खोलकर संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा तीर्थाटन के नए आयाम स्थापित करेगी। हरिद्वार की तर्ज पर संगम स्थलों पर गंगा आरती शुरू करने के प्रयास किए जायेंगे। जहां-जहां हिमालय के दर्शन हो रहे हैं, वहां हिमालय आरती शुरू की जानी चाहिए। देवभूमि में 33 करोड़े देवी-देवता विराजमान हैं। यहां विभिन्न धर्म-संप्रदाय के लोग रहते हैं।

सभी की अपनी-अपनी धर्म संस्कृति है। कुछ लोग देश में धर्म के नाम पर बांटने का काम करते हैं। इससे संस्कृति को नुकसान पहुंचता है और आपसी समरसता और भाईचारे पर चोट पहुंचती है। इस यात्रा के माध्यम से असामाजिक तत्वों को भी यह संदेश दिया जा रहा है कि धर्म के नाम को बांटने की राजनीति न की जाए। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप थपलियाल ने कहा कि यह यात्रा विकास यात्रा के रूप में उभरकर आ रही है। प्रदेश में तीर्थाटन की अपार संभावनाएं हैं। ऐसे में जरूरी है कि चारधाम यात्रा के अलावा मठ-मंदिरों की ओर भी ध्यान दिया जाय, जिससे बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिले और अधिक से अधिक लोग यहां आंए। इस मौके पर अध्यक्ष रूप सिंह बजियाला, लक्ष्मण सिंह लमगड़िया, महेन्द्र लुन्ठी, डाॅ केदार पलडिया, कुंवर सिंह राणा, चतर सिंह राणा, परमवीर सिंह, रामप्रसाद, लाल सिंह नेगी सहित कई मौजूद थे।

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