उत्तराखंड

उत्तराखंड में खुला देश का पहला मशरूम रेस्टोरेंट..

उत्तराखंड का पहला मशरूम रेस्टोरेंट..

उत्तराखंड: मशरूम लेडी ने नाम से जानी जाने वाली दिव्या रावत अब कीड़ाजड़ी का भी उत्पादन कर रही हैं जिसकी कीमत 3 लाख रुपया किलो हैं। इन्होंने न सिर्फ देहरादून में अपना प्लांट लगाया हैं बल्कि पुणे में भी अपना एक प्लांट लगा रही हैं। और इनका कहना हैं की इनको देश भर में काम करके युवाओ को आगे बढ़ाकर आत्मनिर्भर बनाना हैं।

मशरूम को देश भर में एक अलग पहचान दिलाने के लिए इन्होंने देहरादून के राजपुर रोड के एम जे टॉवर में मशरूम रेसिपी और पहाड़ी भोजन वाला एक रेस्टोरेंट खोला हैं। जहा पर आपको सिर्फ मशरूम से बनी 70 से 80 रेसिपीज मिलेगी। साथ ही 1000 रुपया कप कीड़ाजड़ी वाली चाय मात्र 400 रुपया कप में मिलेगी। ऐसे ही 2 रेस्टोरेंट पुणे में भी खोल रही हैं। साथ ही ये सतारा जिले में भी अपना एक मशरूम फॉर्म बना रही हैं।

 

 

मशरूम उत्पादन के बाद लैब में कीड़ा जड़ी (यारशागुंबा) तैयार करने वाली दून की ‘मशरूम गर्ल’ दिव्या रावत की कामयाबी को देश-दुनिया में सराहना मिल रही है। दिव्या आज न केवल सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रही है, बल्कि सालाना करोड़ों रुपये का टर्नओवर भी अर्जित कर रही है। ट्रेनिंग टू ट्रेडिंग कॉन्सेप्ट पर दिव्या उत्तराखंड की आर्थिकी सुधारने के साथ यहां के युवाओं और महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का सपना भी देख रही है। देश-दुनिया में प्राइवेट नौकरी करने वाले युवाओं के लिए दिव्या न सिर्फ प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि उन्हें कुछ नया करने की सीख भी दे रही है।

वर्ष 2011-12 में दिल्ली में 25 हजार की नौकरी छोड़कर दिव्या ने अपने पैतृक गांव में कुछ नया करने की ठानी और आज वह उस मुकाम को हासिल भी कर चुकी है। अपने नए सफर की शुरुआत दिव्या ने वर्ष 2013 में देहरादून के मोथरोवाला में एक कमरे में सौ बैग मशरूम उगाकर की।

 

 

पलायन रोकने के लिए दिल्ली से लौटी उत्तराखंड..

उत्तराखंड राज्य के चमोली (गढ़वाल) जिले से 25 किलोमीटर दूर कोट कंडारा गाँव की रहने वाली दिव्या रावत दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही थी, लेकिन पहाड़ों से पलायन उन्हें परेशान कर रहा था, इसलिए 2013 में वापस उत्तराखंड लौटीं और यहां मशरूम उत्पादन शुरु किया। दिव्या फोन पर गांव कनेक्शन को बताती हैं, “मैंने उत्तराखंड के ज्यादातर घरों में ताला लगा देखा। चार-पांच हजार रुपए के लिए यहां के लोग घरों को खाली कर पलायन कर रहे थे जिसकी मुख्य वजह रोजगार न होना था। मैंने ठान लिया था कुछ ऐसा प्रयास जरुर करूंगी जिससे लोगों को पहाड़ों में रोजगार मिल सके। सोशल वर्क से मास्टर डिग्री करने के बाद दिव्या रावत ने दिल्ली के एक संस्था में कुछ दिन काम भी किया लेकिन दिल्ली उन्हें रास नहीं आई।

दिव्या रावत ने कदम आगे बढ़ाए तो मेहनत का किस्मत ने भी साथ दिया। वो बताती हैं, “वर्ष 2013 में तीन लाख का मुनाफा हुआ, जो लगातार कई गुना बढ़ा है। किसी भी साधारण परिवार का व्यक्ति इस व्यवसाय की शुरुवात कर सकता हैं । अभी तक 50 से ज्यादा यूनिट लग चुकी हैं जिसमे महिलाएं और युवा ज्यादा हैं जो इस व्यवसाय को कर रहे हैं ।” मशरूम की बिक्री और लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए दिव्या ने मशरूम कम्पनी ‘सौम्या फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी’ भी बनाई है। इसका टर्नओवर इस साल के अंत तक करीब एक करोड़ रुपए सालाना का हो जाएगा।

 

 

महिलाओं को बनाया स्वावलंबी..

दिव्या ने मोथरोवाला स्थित अपने घर में सौ बैग से काम शुरू किया था। जल्दी ही मेहनत के बल पर उसने रफ्तार पकड़ ली। इसके बाद प्रदेश में 2013 की आपदा आ गई। तब दिव्या ने अपने पैतृक गांव कंडारा, चमोली गढ़वाल जाकर महिलाओं को मशरूम का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाने की ओर हाथ बढ़ाया।

दिव्या ने गांव में खाली पड़े खंडहरों और मकानों में ही मशरूम उत्पादन शुरू किया। इसके अलावा कर्णप्रयाग, चमोली, रुद्रप्रयाग, यमुना घाटी के विभिन्न गांवों की महिलाओं को इस काम से जोड़ा। दिव्या बताती हैं उस समय प्रशिक्षण प्राप्त बहुत सी महिलाएं आज भी इस काम में लगी हैं।

दिव्या ने वह कर दिखाया, जिसके बारे में पहले सिर्फ बातें की जाती थीं। वर्ष भर मशरूम उत्पादन करना एक बड़ी कामयाबी है। दिव्या ने प्रोडक्शन के अलावा मार्केटिंग पर भी उतना ही ध्यान दिया, इसलिए वह कामयाब है। युवाओं को दिव्या से सीख लेनी चाहिए।

 

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