उत्तराखंड

दहेज की मांग पूरी न होने पर पति ने दिया तलाक..

दहेज की मांग पूरी न होने पर पति ने दिया तीन तलाक..

उत्तराखंड : महिलाओं पर हो रहे अत्याचार कम नही हो रहे हैं। कहीं पर महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही है, तो कही पर उन्हें दहेज़ प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा हैं। दहेज़ प्रताड़ना का एक ऐसा ही मामला वसंत विहार से सामने आया हैं। जहां दहेज की मांग पूरी न होने पर पत्नी को तीन तलाक कहकर घर से निकाल दिया है। वसंत विहार पुलिस ने पति समेत ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ तीन तलाक और दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज किया है।

वसंत विहार थाना प्रभारी नत्थीलाल उनियाल ने बताया कि वर्ष 2017 में क्षेत्र निवासी एक महिला का विवाह शाहनवाज पुत्र मकसूद निवासी माहीग्रान बंधा रोड थाना कोतवाली रुड़की जिला हरिद्वार से हुआ था।

आरोप है कि विवाह के कुछ समय पश्चात ही महिला के ससुराल वाले उसे दहेज के लिए परेशान करने लगे। महिला को भोजन नहीं देने की बात कही और एक लाख रुपये लाने को कहा।

 

 

22 दिसंबर 2018 को ससुरालवालों ने महिला से मारपीट की और बच्चे संग महिला को बस में बैठाकर मायके भेज दिया। इस पर महिला हेल्पलाइन में प्रार्थना पत्र दिया जिस पर पुलिस ने काउंसलिंग की।

काउंसलिंग में पति और ससुरावलों ने समझौता किया और 18 अप्रैल 2019 को महिला को साथ ले गया। 6 जून 2020 को अपने रिश्तेदार की शादी के लिए महिला दून आई थी। 4 जुलाई को वह ससुराल पहुंची तो पति व ससुराल वाले भड़क गये और मारपिटाई की।

पति ने महिला को तीन तलाक देकर घर से बाहर निकाल लिया। महिला ने घर पहुंचकर परिजनों को जानकारी दी। थाना प्रभारी उनियाल ने बताया कि महिला के ससुराल पक्ष पर दहेज उत्पीड़न, मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया है।

 

 

हैरानी की बात तो यह है कि जब इस प्रथा की शुरूआत की गई तब से लेकर अब तक इस प्रथा के स्वरूप में कई नकारात्मक परिवर्तन देखे जा सकते हैं।यहाँ परंपरा आज घृणित रूप में हमारे सामने खड़ी है।
वर्तमान समय में दहेज व्यवस्था एक ऐसी प्रथा का रूप ग्रहण कर चुकी है जिसके अंतर्गत युवती के माता-पिता और परिवारवालों का सम्मान दहेज में दिए गए धन-दौलत पर ही निर्भर करता है।

इस व्यवस्था ने समाज के सभी वर्गों को अपनी चपेट में ले लिया है। संपन्न परिवारों को शायद दहेज देने या लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती। क्योंकि उन्हें यह मात्र एक निवेश लगता है। उनका मानना है कि धन और उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह उनके मान-सम्मान को बढ़ाने के साथ-साथ बेटी को भी खुशहाल जीवन देगा। लेकिन निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी का विवाह करना बहुत भारी पड़ जाता है। वह जानते हैं कि अगर दहेज का प्रबंध नहीं किया गया तो विवाह के पश्चात बेटी का ससुराल में जीना तक दूभर बन जाएगा।

 

 

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए अब तक कितने ही नियमों और कानूनों को लागू किया गया हैं, जिनमें से कोई भी कारगर सिद्ध नहीं हो पाया। दहेज देना और लेना दोनों ही गैरकानूनी घोषित तो किए गए। लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया। आज भी बिना किसी हिचक के वर-पक्ष दहेज की मांग करता है और ना मिल पाने पर नववधू को उनके कोप का शिकार होना पड़ता है। प्रत्येक वर्ष 5,000 महिलाएं दहेज हत्या का शिकार होती हैं। उन्हें जिंदा जला दिया जाता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top