उत्तराखंड

चीड़ के जंगल कर रहे बांज की जैव विविधता को तहस-नहस..

चीड़ के जंगल कर रहे बांज की जैव विविधता को तहस-नहस..

चीड़ के जंगल कर रहे बांज की जैव विविधता को तहस-नहस..

उत्तराखंड: देश के कई हिमालयी राज्यों में पाए जाने वाले बांज (ओक) के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। यह बात वन अनुसंधान संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों के अध्ययन में सामने आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार दोनों राज्यों में तेजी से पनप रहे चीड़ के जंगल बांज के जंगलों की जैवविविधता को भी प्रभावित कर रहे हैं।

 

वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी डॉ. एचएस गिनवाल की अगुवाई वाली वैज्ञानिकों की टीम ने अध्ययन में पाया कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बांज के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। प्राकृतिक रूप से उग रहे चीड़ के जंगल बांज के जंगलों की जैवविविधता को तहस-नहस कर रहे हैं। चीड़ के जंगलों की वजह से बांज की जेनेटिक डायवर्सिटी तेजी से कम हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश दोनों राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में जलस्रोतों के साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता को संरक्षित करना होगा। साथ ही बांज के जंगलों को संरक्षित करने को लेकर कारगर कदम उठाने होंगे।

 

पर्यावरण में बदलाव और अत्यधिक दोहन से भी खतरा..

शोध के अनुसार एक तरफ चीड़ के जंगल बांज के जंगलों को तहस-नहस कर रहे हैं। तो वहीं वनस्पति विज्ञानियों ने अपने शोध में यह भी पाया है कि पर्यावरण में आए बदलाव और बांज के जंगलों के अत्यधिक दोहन से भी इनके जंगलों का अस्तित्व खतरे में है। खेती में इस्तेमाल होने वाले कृषि उपकरणों को बनाने में बांज की लकड़ियों का इस्तेमाल किए जाने से इनके पेड़ों का हर साल बड़े पैमाने पर कटान होता है जो कि चिंता का विषय है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों में बांज के जंगल पाए जाते हैं वहां पानी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में रहती है। बांज के जंगल बारिश के दौरान वर्षा जल को तेजी से अवशोषित करने के साथ ही उसे संरक्षित करते हैं और फिर धीरे-धीरे जलस्रोतों को रिचार्ज करने का काम करते हैं।

 

इससे आसपास के इलाकों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। वनस्पति विज्ञानी डॉ. एचएस गिनवाल का कहना हैं कि बांज के जंगलों से ना सिर्फ बेशकीमती लकड़ियां मिलती हैं, बल्कि इनकी पत्तियों को पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। जो पत्तियां सूख कर गिरती हैं उनसे खाद बनाई जाती है। जिसका इस्तेमाल खेती में होता है है। जंगलों के तेजी से खत्म होने सं कीमती लकड़ियों के साथ पशुओं के चारे का भी संकट खड़ा हो जाएगा।

 

1800 से लेकर 2400 मीटर ऊंचाई तक पाए जाते हैं बांज के जंगल..

डॉ. एचएस गिनवाल के अनुसार उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में बांज के जंगल 1800 से लेकर 2400 मीटर की ऊंचाई तक बहुतायत में पाए जाते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में इतनी ऊंचाई पर मौसम बांज के जंगलों के लिए बेहद अनुकूल होता है। उत्तराखंड में बांज की चार प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें खरस्यू, बांज, तिलॉंच और रियांज शामिल हैं।

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