उत्तराखंड

छोटी काशी के प्राचीन मंदिर का जनसहयोग से जीर्णोद्धार….

प्राचीन मंदिर का जनसहयोग से जीर्णोद्धार किया गया है। इस मंदिर…

उत्तराखंड : चमोली जिले के दशोली ब्लॉक में प्राचीन मंदिर का जनसहयोग से जीर्णोद्धार किया गया है। इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय मंदिरों की तर्ज पर किया गया है। प्रधान ओर प्रमुख ने लोकडाउन्न के दौरान अपने गाँव की जीर्ण शीर्ण अवस्था मे पड़े मंदिरों का श्रम दान करके जीर्णोद्धार किया इसकी पूरे जिले में सराहना हो रही !

कहानी है दशोली ब्लॉक के छोटी काशी हाट नाम से प्रसिद्ध गाँव की जो बदरीनाथ राजमार्ग से 3 km दूर यहां के प्रधान श्री राजेन्द्र प्रसाद हटवाल व इसी गांव के निवासी ज्येष्ठ प्रमुख दशोली पंकज हटवाल के द्वारा अपने गाँव मे लक्ष्मी नारायण मंदिर व चंडिका मंदिर सहित कई मंदिरों का लोकडाउन्न के दौरान मंदिरो की मरमस्त के साथ रंग रोगन समस्त गांव के नवयुवकों के द्वारा किया गया !

जिसके चलते मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर के फर्स व दीवारों पर विशेष मार्बल व टाइल्स लगाए गए हैं तो चारों ओर सफेद पुट्टी की गई है। इसके बाद बीच में गोलाकार में छोटे-छोटे मंदिर हैं। इसके बाद मुख्य मंदिर है।

ज्येष्ठ प्रमुख पंकज हटवाल जी ने कहा कि आदि गुरु संक्राचार्य जी के द्वारा स्तापित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पौराणिक बद्रीनाथ पैदल मार्ग का एक पड़ाव के साथ साथ एक वैकुण्ड धाम भी है यहां पर खुद बद्रीविशाल विराजमान है ! जो यात्री यहां से बद्रीनाथ पैदल चलने में असमर्थ रहता था वो यही से दर्शन करके वापस चले जाता था !

प्रधान राजेन्द्र हटवाल जी मे कहा हम अपने गांव की सभी धरोहरों को संभाल कर इस छोटी काशी को एक भव्य नगरी बनाएंगे ! और वो बताते है की पांडव कालीन कला व 859 इश्वि में गांव की स्थापना हुई स्वम् संक्राचार्य जी ने बसाया है इस गाँव को छोटी काशी कहते है !

उन्होंने कहा बहुत वर्षो पहले छोटी काशी से ही पंचांग बन कर काशी बनारस जाकर वहां स्व सुधिकरन हो कर पूरे भारत वर्ष में प्रकाशित होती थी इस गाँव का उल्लेख केदारखण्ड में व स्कंद पुराण में भी है!

लोगों के सहयोग से मंदिर को मिला भव्य स्वरूप….

मंदिर समिति के सदस्य व ज्येष्ठ प्रमुख दशोली पंकज हटवाल ने बताया कि मंदिर का जीर्णोद्धार जनसहयोग से किया जा रहा है। जिसमें गाँव के लोगों द्वारा अपनी-अपनी स्वेच्छा से सहयोग दिया जा रहा है।

गाँव के सभी नव युवक के सहयोग से ये कार्य सम्भव हो पाया जिसके चलते मंदिर को इतना भव्य स्वरूप दिया गया है।

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