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पहाड़ के पाँच जिले जिनका नब्बे फीसदी परिवहन संभलता है टैक्सी मैक्स सेवा

पहाड़ के पाँच जिले जिनका नब्बे फीसदी परिवहन संभलता है टैक्सी मैक्स सेवा से,हफ्ता से ऊपर बीत गया लेकिन सत्ता के कान मे जूँ नहीं रेंगी, जो सरकारों और जनप्रतिनिधियों की संवेदनहीनता है,

महाबीर सिंह जगवाण

सरकार मे थोड़ा भी दृढ़ इच्छा शक्ति होती,वह हालात सुधारना चाहती,तो निसन्देह समय रहते पहल करती,टैक्स मैक्स चला रहे छोटे वाहन बढती तेल कीमत,बदहाल सड़क ब्यवस्था,भारी टैक्स,फाइनेंस के ब्याज और पलायन के कारण घटती आबादी की वजह से औसतन संघर्ष मे ही जी रहे हैं,यह सौ फीसदी सच है बेरोजगारी की मार के कारण यह पेशा मजबूरी मे ही खिंच रहा है,आठ दस लाख की पूँजी का निवेश,दस बारह घंटे हाड़तोड़ मेहनत और औसतन वार्षिक दिहाड़ी पाँच सौ के आस पास ,पाँच दस साल चलाकर यह गाड़ी कबाड़ी के ही भाव बिकती है,हकीकत यह भी है हर दस मे चार मोटर मालिक दिवालिया हो रहे हैं ,बेरोजगारी के कारण पहाड़ों मे इनकी भीड़ और ढेर दिख सकती है लेकिन कभी फुर्सत से इन्हें न तो जनता टटोलती और न ही मीडिया और सरकार,साहब इन वाहन निर्माताऔं और इनकी ही फाइनेंस कंपनियाँ चाँदी काट रही हैं बाकी तो पहाड़ी खून का पसीना बनाकर दो जून की रोटी का जुगाड़ इस जमाने मे कर रहे हैं यह बड़ी बात है,

जरा सोंचे इन्हें मिलता क्या है सरकारों से,सड़कों पर गड्ढे,पुलिस एआरटीओ का हफ्ता महीना,सवारी बाजार मे उतार नहीं सकते,बैठा नहीं सकते,दस रूपये की सवारी के चक्कर मे हजार का चालान भुगत देते हैं,सड़कों की बदहाली के कारण यह गाड़ियाँ औसतन तीन से पाँच गुना अधिक मैंटिनेंस पर खर्च करते हैं ,ऊपर से कर्ज की किस्त,इंस्योरेंस की किस्त,सड़क कर की किस्त ,यात्री कर की किस्त,सुविधा शुल्क की किस्त,यूनियन की किस्त,काश सरकार का दिल थोड़ा पसीज जाता,जो भू संपत्तियाँ सरकार ने ऑलवेदर निर्माण मे सड़क मंत्रालय को निःशुल्क दी उस कुल पूँजी के पाँच फीसदी रूपये की बदौलत ही यहाँ चलने वाले सभी वाहनों पर #निःशुल्क #स्पीडगर्वनर लग जाता।

पर्वतीय जनपदों मे सभी जानते हैं सार्वजनिक परिवहन शून्य है,या इतना कम केवल खानापूर्ति, लिंक ग्रामीण सड़कों पर यह छोटी गाड़ियाँ परिवहन का साधन तो हैं ही साथ ही आपातकालीन सेवा भी,यही गाड़ियाँ हैं और इनके मोटरमालिक जो अचानक दुर्घटना घटने पर दूरस्थ अस्पतालों तक पहुँचाते हैं साथ ही आपात स्थिति मे रूपये की ब्यवस्था भी करते हैं ,आजकल हालात बहुत खराब हैं ,गाँवों से बाहर कस्बों शहरों तक इलाज के लिए पहुँचने के यही विकल्प हैं।

हमे इस बात की बहुत पीड़ा है सरकार ने इतनी लंबी हड़ताल के वावजूद कोई जनसुविधा हेतु अतिरिक्त ब्यवस्था नहीं की,स्पष्ट है हमारे प्रतिनिधि अपने मुखिया का तमाशा बनाने हेतु हमे बलि का बकरा बना रहे हैं जो असहनीय वेदना देता है,ठीक है आपकी सरकार हड़तालियों से वार्ता करने मे देरी कर रही थी तो कम से कम सरकार से मुखिया से जनता के हित हेतु कुछ तो ब्यवस्था करते,लेकिन नहीं।

हम देख रहे हैं पहाड़ का नेता ,अपनी गाड़ियों के शीषे बंद कर जनता पर नजर पड़ते ही आँख बंद कर सोने का ढोंग करता है,काश आप सब तो कोशिश करते,यदि मुखिया से बैकल्पिक ब्यवस्था नहीं बना सकते थे तो इन हड़तालियों का साथ देते तो सायद एक दो दिन मे ही समाधान निकलता,सरकार कहती हमारे खजाने खाली हैं ,हम कंगाल हैं तो तुम्हीं कह देते हम पाँच दस फीसदी विधायक निधि देंगे तो यह निःशुल्क संभव हो जायेगा,वैसे भी आपकी विधायक निधि कितनी जनपयोगी है यह जनता और नेता भली प्रकार जानते हैं।

तेल के भाव आसमां छू रहे हैं ,जनता की तब और अब के साथ भविष्य मे नियमित परिवहन ब्यवस्था की गारण्टी नहीं ,सरकारें महानगरों के मकड़जाल से बाहर नहीं आ पा रही हैं,दुनिया मे कोई भी ऐसा भू क्षेत्र नहीं जहाँ अनियोजित परिवहन से विकास हुवा हो,नियोजित परिवहन ब्यवस्थायें ही विकास की पहली सीढी है,यदि आज भी इन भू क्षेत्रों मे विकास की पहली प्राथमिकता सार्वजनिक परिवहन की समयबद्ध उपलब्धता ही होनी चाहिये ।सार्वजनिक परिवहन को सुनियोजित तरीके से तबाह किया जा रहा है ताकि,तेल आयात बढे,रूपये का अवमूल्यन हो,वाहन निर्माता कंपनियाँ फले फूले,और आम साधारण आदमी धरती से ही विलुप्त हो जाय।

आखिर कोई तो होगा जबाबदेह या सब तमासबीन।

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