उत्तराखंड

कुलपति को बर्खास्त करने की ख़बर समझ से परे

इन्द्रेश मैखुरी
हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.जवाहर लाल कौल के बारे में समाचार पत्रों में पहले खबर आई कि राष्ट्रपति ने उन्हें बर्खास्त करने के फैसले का अनुमोदन कर दिया है.फिर खबर आई कि प्रो.कौल ने कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया है.यह बात थोड़ा अटपटी है कि यदि कुलपति को बर्खास्त कर दिया गया है तो फिर वे इस्तीफा कैसे दे सकते हैं?जिस पद से कोई व्यक्ति विरत कर दिया गया हो,वह उस पद से त्यागपत्र कैसे देगा?बहरहाल प्रो.कौल बर्खास्त हुए या उन्होंने त्यागपत्र दिया,दोनों में से जो भी बात सही हो,उसमें यह निहित है कि वे आज की तारीख में कुलपति नहीं हैं.

गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना 1 दिसम्बर 1973 को हुई थी.विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में बड़ा जनांदोलन हुआ,जिसके दबाव में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने कुमाऊं एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना की.1989 में हेमवती नंदन बहुगुणा की मृत्यु के बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय का नामकरण बहुगुणा जी के नाम पर कर दिया गया.2009 में इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया.
केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने के बाद अपेक्षा तो यह थी कि विश्वविद्यालय के स्तर में सुधार होगा.लेकिन हुआ इसके ठीक उलट.केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद बने पहले कुलपति प्रो.एस. के.सिंह के कार्यकाल में ही विश्वविद्यालय मनमानी और अराजकता का अड्डा बन गया था.उनके विरुद्ध महीने भर लम्बा आंदोलन भी हुआ पर कोई सुनवाई नहीं हुई.

केंद्रीय दर्जा हासिल करने के बाद प्रो.जे.एल.कौल विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति बने.लेकिन विश्वविद्यालय को अराजकता का अड्डा बनाने में वे जैसे पहले नम्बर पर ले जाना चाहते थे.जिन आरोपों में कौल साहब को हटाया गया है,वे तो बेहद मामूली हैं.तय सीमा से ज्यादा सीटें बढ़ाना भी भला कोई आरोप हुआ किसी कुलपति को हटाने के लिए !

सजा तो उन्हें मिलनी चाहिए थी इस बात के लिए कि उन्होंने विश्वविद्यालय को पूरी तरह अराजकता के अड्डे में तब्दील कर दिया.स्थापना के समय से लेकर राज्य विश्वविद्यालय होने के दौर तक जो अकादमिक साख गढ़वाल विश्वविद्यालय ने हासिल की,कौल साहब के कार्यकाल में वह तार-तार हो गयी.जब छात्र नेता तय करें कि परीक्षा में केंद्र अधीक्षक किस शिक्षक को बनाया जाना है तो परीक्षाओं के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है.छात्र नेताओं की खेप की खीप पी एच.डी की प्रवेश परीक्षा में निकल रही है,जिस खेप में से आधे-बहुत तो पी एच.डी. ही सही-सही लिख दें तो उक्त प्रवेश परीक्षा की नाक बच जाए !

छात्र नेताओं के कौल साहब पर दबदबे का ही नतीजा था कि पीठ पीछे चाहे कुछ भी कहें पर सार्वजनिक मंचों पर जहीन समझे जाने वाले प्रोफेसर भी लम्पट किस्म के छात्र नेताओं की चिरौरी में अपना सम्पूर्ण वाक-चातुर्य झोंकते देखे गए !
कौल साहब के नाम यह कीर्तिमान भी लिखा जाना चाहिए कि उन्होंने विश्वविद्यालय के हर तबके को उदारतापूर्वक ठेके बांटे.रद्दी का ठेका,झाड़ी काटने का ठेका,फर्नीचर का ठेका और इस तरह के कई-कई ठेके, छात्र नेताओं, कर्मचारी नेताओं और शिक्षकों के हिस्से आये.जब कुलपति ठेका-टेंडर बांटेगा और छात्र नेता,कर्मचारी नेता और शिक्षक सब ठेके की चाहत वाले होंगे तो विश्वविद्यालय तो रसातल की ओर ही जायेगा.

गढ़वाल विश्वविद्यालय के केंद्रीय दर्जा पाने को कई लोगों ने विश्वविद्यालय की तरक्की समझा.आज हालत यह है कि इस विश्वविद्यालय में कुलपति बर्खास्त हैं,कुलसचिव निलंबित हैं,वित्त अधिकारी पर वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोप हैं ,प्रति कुलपति के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है.(यह पंक्ति व्हाट्स ऐप पर विश्वविद्यालय से ही प्राप्त हुई है). यह केंद्रीय विश्वविद्यालय के बाद के 8 वर्षों का हासिल है.अगर यह उपलब्धि है तो पतन किसे कहेंगे ?

जनता के संघर्षों से बने विश्वविद्यालय का केंद्र के हाथ जाने के बाद इस तरह बर्बाद होना दुखद है.कौल साहब के जाने के बाद स्थिति बदलेगी,ऐसा कहा नहीं जा सकता.कौल साहब के बारे में आम तौर पर चर्चा करते हुए विश्वविद्यालय में विचरने वालों का कहना है कि आदमी तो वे भले थे.अंग्रेजी में एक कहावत है कि a man is known by the company he keeps यानि आदमी अपनी संगत से पहचाना जाता है.ये कैसे भले आदमी थे जो जिनकी संगति करते थे उनके मुंह विश्वविद्यालय से तात्कालिक लाभ का खून लगाते चलते थे.ऐसी संगत वाले ने तो डूबना ही था.पर मुंह पर खून लगी यह कम्पनी तो यहीं छूट गयी है.इससे यदि विश्वविद्यालय को मुक्त नहीं किया गया तो यह बचेगा नहीं.

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