अध्यक्ष उम्मीदवार के 39% में प्रवेश के मामले ने पकड़ा तूल।
नैनीताल। इन दिनों कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की सरगर्मियां अपने चरम पर है| विश्वविद्यालय से संबंधित अधिकांश कालेजों में जहां चुनाव निपट चुके हैं, वहीं कुछ कालेजों में चुनाव होना अभी बाकी है। लेकिन छात्र संघ चुनावों में पूरा राजनैतिक अखाड़ा नजर आ रहा है। जहां बीजेपी समर्थक एबीवीपी कहीं न कहीं सरकार और सत्ता का पूरा सहयोग ले रही है। वहीं कांग्रेस की स्टूडेंट विंग एनएसयूआई अपनी बादशाहत बरकरार रखना चाहती है।
आलम यह है कि लिंग्दोह के नियमों की जहां खुलेआम धज्जियां उड रही है, वहीं चुनाव जीतने का हर हथकंडा अपनाया जा रहा है। ऐसा ही नजारा रामनगर के पीएनजीपीजी कालेज में खुलेआम देखा जा सकता है। जहां आने वाली 08 अक्टूबर को छात्रसंघ चुनाव होना है। लेकिन छात्र संगठन एबीवीपी ने सत्ता की हनक में एक ऐसे छात्र नेता पर दांव खेला हुआ है, जिसके नामांकन पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। रोचक बात यह है कि इस छात्र नेता को चुनाव लडवाने के लिए कालेज और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सारे नियम और कायदे कानून ताक पर रख दिए।
जानकारी के मुताबिक कुविवि से समबद्ध सभी कालेजों में प्रवेश के लिए 40% अंको का न्यूनतम मानक है। लेकिन कालेज के प्रशासन ने महज 39% अंक वाले इस छात्र विशेष को रियायत देते हुए न सिर्फ कालेज में बाइज्जत एडमिशन दिया, बल्कि छात्रसंघ चुनाव में बतौर अध्यक्ष प्रत्याक्षी नामांकन का अधिकार देते हुए वैध प्रत्याशी घोषित कर दिया। कालेज प्रशासन की यह विशेष अनुकंपा स्थानीय हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है।
सबसे खास बात यह है कि कुछ इस तरह की विशेष रियायत ही बीते साल कुमाऊं विश्वविद्यालय के एमबीपीजी कालेज, हल्द्वानी ने अध्यक्ष पद के एक दावेदार को नीरज मेहरा को दी थी। जिसमें तथ्य छुपाकर प्रवेश लेने वाले नीरज मेहरा के नामांकन और निर्वाचन में कालेज प्रशासन और विश्वविद्यालय को मुंह की खानी पड़ी थी। इसके बाद कालेज प्रशासन की इस गलती के बाद सबसे बड़ा सवाल उन मतदाताओं के सामने खडा हुआ, जिन्होंने नीरज मेहरा को वोट देकर छात्रसंघ अध्यक्ष बनाया था। बीते वर्ष की इस घटना को रामनगर का पीएनजीपीजी कालेज भी दोहराने की गलती करता नजर आ रहा है| रविन्द्र रौतेला के प्रवेश में खेल करने और नियम विरूद्ध प्रवेश देने के इस मामले में पीएनजी में भी विपक्षी खेमा न्यायालय की शरण लेता दिखाई दे रहा है| अगर रामनगर के पीएनजी में हल्द्वानी के एमबीपीजी का यही इतिहास दोहराया जाता है, तो कालेज प्रशासन और यूनिवर्सिटी प्रशासन की जवाबदेही साफ होनी चाहिए। जिसका खामियाजा कालेज का आम छात्र और
चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट बाद में उठाते हैं। कानून के जानकार कहते हैं कि अगर यह मामला न्यायालय में जाता है तो एबीवीपी कैंडिडेट को खामियाजा उठाना पड सकता है। क्योंकि जिस मानवीय आधार पर कालेज प्रशासन एडमिशन की बात कह रहा है, उसका सवाल ही नहीं उठता है। बडा सवाल यह भी है कि यह मानवता पूरे कालेज में सिर्फ एक छात्र के लिए ही क्यों रखी गई थी। अगर मामला न्यायालय मेें पहुंचता है तो इसमें बडी कार्यवाही होना तय माना जा रहा है।