उत्तराखंड

टिहरी गढ़वाल के राजेंद्र की शानदार लेकिन सच्ची कहानी…

टिहरी गढ़वाल के राजेंद्र की शानदार लेकिन सच्ची कहानी…

” अधूरे हाथों ” की पूरी कहानी (प्रेरणात्मक)

एक बड़ी मशहूर कहावत है – अपना हाथ, जगन्नाथ ; मगर यदि हाथ अधूरे हों तो ?

शान्तनू स्वरूप

टिहरी : वीर गबर सिंह जी की जन्म स्थली ग्राम मंज्यूड़ ,चम्बा टिहरी गढ़वाल मे जन्मे 24 वर्षिय राजेन्द्र सिंह नेगी ने अपने दोनो अधूरे हाथों से वह सब कुछ कर दिखाया जो सामान्य लोग दो पूरे हाथ लिये भी कतराते हैं : स्वरोज्गार ,आत्मसम्मान के साथ जीविका । ऐसा करने की हिम्मत , और अधूरे बाजुओं में ताकत शायद उन्ही की प्रेरणा से मिली.

2004 में 10 वर्ष का एक बच्चा एक सुबह हाथ में लोहे की चेन लिए घूमने जाता है और विजली विभाग की झूलती तारों की चपेट मे आकर दोनो हाथ जला बैठता है। गरीब पिता जब देहरादून मे अपने बेटे के हाथ बचाने के लिये दर दर भटक रहा था; बिजली विभाग ने होशियारी दिखते हुए अनपढ़ माँ से 13 हजार रु o की आर्थिक मदद का लालच देकर, यह मनवाकर स्टाम्प पेपर पर अंगूठा लगावा दिया की इसमें विभाग की कोई गलती नहीं है , बेटे के अच्छे भविष्य और इलाज के लिए मदद समझकर अनपढ़ माँ ने अंगूठा लगा दिया उस बेचारी को क्या पता था कि कागज़ के टुकड़े पर उसके बेटे का भविष्य नहीं बल्कि दुर्भाग्य छुपा था , मुआवजा के लिए वह विभाग से अब किसी भी प्रकार की कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकता।

डा ० ने एहतियातन उसके दोनों अधजले हाथों को आधा काट दिया और जब घर लौटा तो नादान को पता न था की आधा बचे हाथों से जीवन की गाड़ी चलाने में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया किशोर अवस्था के हर काम अधूरे हाथों से अधूरे ही छूटने लगे  पढाई भी। आठ दर्जे तक पढ्ने के बाद आर्थिक तंगी और समाज के अधूरे व्यवहार ने आगे पढ्ने न दिया लेकिन जीवन की आवश्यकताओं ने कई पाठ पढ़ाने शुरु कर दिये। आखिरकार जब वह युवा अवस्था में पहुंचा तो पहली समझ उसे विजली विभाग की देहली पर रोजगार की मांग के लिए लेके गई ,आखिर इस अधूरेपन की वजह भी तो वही थे लेकिन आज तक भी निराशा ही हाथ लगी। कई बार अफसरों से लेकर हुक्मरानो तक गुहार लगाई लेकिन अधूरे हाथ कोई न थाम पाया।

अब उन्ही दो अधूरे हाथों से उसने खुद की तकदीर बदलने की ठानी और दोस्तों की मदद से एक दुकान तल्ला चम्बा में खोली और हिम्मत का धन लिए आज एक मंझे हुये दुकानदार की तरह व्यवसाय कर रहा है, चुनौती तो अभी भी हैं, एक ओर एक लाख का दोस्तों का कर्ज और दूसरी ओर परिवार की तंगहालि। फिर भी हर रोज दुकान पर इस आस मे मेहनत करता है कि कर्ज भी चुकेगा और पोल्ट्री फ़ार्म खोलने का सपना भी सच होगा।

आज राजेंद्र हर वो काम कर सकता है जो सामान्य लोग करते हैं स्मार्ट फ़ोन चलाना , लिखना , भारी सामान उठाना , साथ ही वह फूटबाल का भी अच्छा खिलाडी है। जहाँ इस हालत में लोगों की दया मिलती है आज खुद लोग उससे प्रेरणा लेते हैं, राजेंद्र उन सभी लोगों के लिए भी प्रेरणा का श्रोत है जो बहुरुपिया बनकर धर्म के नाम पर दोनों स्वस्थ हाथों से मांगते हैं

एक बार विजली विभाग ने नाइंसाफ़ी की , अब सरकार की बारी है कि इस ऊर्जावान स्वावलम्भी युवा को इसके पोल्ट्री फॉर्म खोलने के सपने को पूरा करने में मदद करे।

इन दो अधूरे हाथों के जज्बे को, मेरे दोनो पूरक हाथों का सलाम।

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