उत्तराखंड

जन अधिकार मंच की एक और बड़ी उपलब्धि

जन अधिकार मंच की एक और बड़ी उपलब्धि , हस्तांतरित होंगी दो बड़ी पेयजल योजनाएं

रुद्रप्रयाग। जनपद की दो बड़ी और महत्वपूर्ण पेयजल योजनाएं आगामी एक अगस्त से जल संस्थान को हस्तांतरित हो जाएंगी और उनका रख-रखाव इस तिथि से जल संस्थान करेगा। इससे जहां उनके संचालन व रख-रखाव की पूरी जिम्मेदारी उत्तराखंड जल संस्थान निभाएगा, वहीं उपभोक्ताओं को दो-दो विभागों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल की सख्ती से यह संभव हो पाया है। अन्यथा वर्ष 2006 में बनकर तैयार हुई कलेक्ट्रेट पेयजल योजना और वर्ष 2014 में बनकर तैयार तल्लानागपुर पम्पिंग पेयजल योजनाएं अभी आगे कई वर्षों तक जल संस्थान को हस्तान्तरित होती ही नहीं।

जिलाधिकारी ने जन अधिकार मंच के बार-बार के अनुरोध पर दोनों विभागों के अधिशासी अभियंताओं को निर्देश दिये कि वे इन योजनाओं का संयुक्त निरीक्षण कर हस्तांतरण की कार्यवाही अतिशीघ्र अमल में लाएं, ताकि उपभोक्ताओं को अलग-अलग विभागों के दफ्तरों के चक्कर काटकर परेशान न होना पड़े और जल संस्थान पूरी मुस्तैदी व बहाना बनाये बिना पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित कर सके। ज्ञातव्य है कि विशाल उप्र राज्य में पेयजल योजनाओं के निर्माण के लिए वर्ष 1975 में पेयजल निगम का गठन पृथक से किया गया था, जबकि जल संस्थान को केवल अनुरक्षण और संचालन की जिम्मेदारी संभालनी थी। अलग उत्तराखंड राज्य के छोटे स्वरूप को देखते हुए इसे पुनः एक ही विभाग बनाकर काम किया जाना था लेकिन कमजोर राजनीतिक नेतृत्व के चलते ये दोनों विभाग यहाँ भी अलग-अलग हैं। क्योंकि किसी भी मुख्यमंत्री या पेयजल मंत्री में यह हिम्मत हुई ही नहीं कि छोटे राज्य के अनुरूप इनका एकीकरण करे या विभागों के आपसी विवादों के चलते दोनों विभागों को पेयजल योजनाओं के निर्माण एवं संचालन की जिम्मेदारी दे। जबकि योजनाओं के निर्माण तथा संचालन की जिम्मेदारी उप्र की ही भांति दोनों विभागों की अलग-अलग ही रही। जल निगम को निर्माण के बाद अनुरक्षण का व्यय नहीं मिलता। अनुरक्षण का कार्य क्योंकि जल संस्थान के जिम्मे है, इसलिए पैंसा भी उसे ही मिलेगा लेकिन तब, जब योजना उसे हस्तान्तरित होगी। यह जानना दिलचस्प होगा कि जब जल निगम को अनुरक्षण का पैसा मिलता ही नहीं तो वह योजनाओं पर पानी चलाता कैसे है? यह भी कि योजनाओं का निर्माण पूर्ण घोषित होने के बाद भी उसे वर्षों लटकाये रखने का का अधिशासी अभियंता से लेकर जल निगम के प्रबंध निदेशक, पेयजल सचिव, मंत्री आदि का स्वार्थ क्या रहता होगा और सरकार उससे क्यों दबी रहती होगी?

28 जून 2018 को रुद्रप्रयाग के प्रभारी मंत्री की जिम्मेदारी संभाले, राज्य के पेयजल और वित्त मंत्री प्रकाश पंत को इन पंक्तियों के लेखक ने इन्हीं दो पेयजल योजनाओं का नाम लेकर पूछा था कि इनका हस्तांतरण जल संस्थान को क्यों नहीं किया जा रहा है, तो मंत्री का उत्तर था- श्योजनाओं का निर्माण पूरा नहीं हुआ हैश्। वर्ष 2006 व 2014 में जल निगम की ओर से पूर्ण निर्मित घोषित योजनाओं को मंत्री जी अपूर्ण बताते हैं तो समझा जा सकता है कि इसके पीछे क्या खेल खेले जा रहे हैं।

बहरहाल, जिलाधिकारी को धन्यवाद देना चाहिए कि उनके अथक प्रयास से ये दोनों वर्षों पुरानी योजनाएं एक अगस्त से जल संस्थान चलाएगा, लेकिन योजनाएं बन जाने के बाद उन्हें जल निगम के पास ही लटकाये रखने के पीछे के रहस्य से भी पर्दा उठना जरूरी है और यह भी जरूरी है कि 12 वर्ष पहले बनी आरस्यू-बाड़ा (35.57), 2013 में बनी जाल मल्ला (99.72), 2014 में बनीं जवाड़ी (99.69) और 2015 में बनी तैला-सिलगढ़ (623.46) व क्यार्क-बरसूडी (99.93) (सभी आँकड़े लाख रुपये में) पेयजल योजनाएं भी जल संस्थान को शीघ्र हस्तान्तरित हों। इसके साथ ही इस नियम का भी सख्ती से अनुपालन कराया जाना चाहिए कि पेयजल योजनाओं का निर्माण-कार्य पूर्ण घोषित होने के छः माह के भीतर उसका हस्तांतरण अनिवार्य रूप से जल संस्थान को हो जाये और ऐसा न होने पर संबंधित अधिशाशी अभियंता के खिलाफ सख्त कार्यवाही हो।

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