उत्तराखंड

आपदा पीड़ितों को गौरीकुंड में दी जाय रोजगार करने की अनुमति

रोजगार छीनने की कोशिश करी तो आपदा पीड़ित करेंगे आत्महत्या
गौरीकुंड के आपदा प्रभावितों ने प्रधानमंत्री को भेजा ज्ञापन
रुद्रप्रयाग। गौरीकुंड के आपदा प्रभावितों ने रोजगार न देने और रोजगार छीने जाने पर सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना दिया है। आपदा प्रभावितों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन भेजकर कहा कि एक ओर सरकार सबको रोजगार देने की बात कर रही है। वहीं गौरीकुंड में स्थानीय लोगों के रोजगार को सरकार द्वारा छीना जा रहा है। आपदा प्रभावितों ने अपनी नाप भूमि पर दुकानों का निर्माण कार्य किया था, लेकिन प्रशासन ने बिना नोटिस दिये ही निर्माण कार्यों को तुड़वा दिया है। ऐसे में अब आपदा प्रभावित एक बार फिर बेरोजगार हो गये हैं। पहले तो गौरीकुंड के ग्रामीणों को आपदा ने मारा और अब पशासन की मार से पीड़ित आहत हो गये हैं।

आपदा पीड़ितों ने ज्ञापन में कहा कि 16-17 जून 2013 की आपदा में केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव गौरीकुंड पूर्ण रूप से तबाह हो गया था। तीन सालों तक यात्रा न चलने के कारण आपदा प्रभावित बेरोजगार रहे। अब आपदा प्रभावितों ने अपने पुराने स्थानों पर रोजगार करने के लिये अस्थाई दुकानों का निर्माण करना शुरू किया तो पशासन ने बिना बताये ही दुकानों को तोड़ दिया है। ऐसे में आपदा पीड़ित कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। कहा कि एक ओर तो सरकार सबको रोजगार देने की बात कर रही है, वहीं सरकार की ओर से लोगों से रोजगार छीना जा रहा है। गौरीकुंड के ग्रामीण केदारनाथ यात्रा पर ही निर्भर हैं। होटल, दुकान आदि का संचालन करके वह अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन गौरीकुंड के ग्रामीणों के रोजगार के आगे प्रशासन रोड़ा बन गया है। कहा कि आपदा पीड़ित अपनी भूमि पर अस्थाई दुकान बना रहे हैं, लेकिन प्रशासन यहां भी दुकानें नहीं बनवाने दे रहा है। केदारनाथ, सीतापुर और सोनप्रयाग में तो बड़े-बड़े भवन खड़े किये जा रहे हैं, लेकिन गौरीकुंड में निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जा रही है। रोजगार छीने जाने से समस्त ग्रामवासी आहत हैं और गौरीकुंड से पलायन करने को मजबूर हो गये हैं।

गौरीकुंड के पूर्व प्रधान मायाराम गोस्वामी ने कहा कि आपदा के समय हजारों तीर्थ यात्रियों की जान बचाने वाले गौरीकुंड के ग्रामीण आज रोजगर के लिये दर-बदर भटक रहे हैं। केदारनाथ यात्रा पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों के पास रोजगार के कोई साधन नहीं हैं। यदि ग्रामीण अपनी नापभूमि पर रोजगार करने की सोच रहे हैं तो प्रशासन द्वारा इस पर रोक लगाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि अगर यही स्थिति रही तो आपदा पीड़ितों के सम्मुख आत्महत्या करने के सिवाय ओर कोई साधन नहीं रहेगा। 2013 से गौरीकुंड के ग्रामीण रोजगार के लिये भटक रहे हैं, लेकिन रोजगार की किसी को कोई चिंता नहीं है। सरकार और प्रषासन को आपदा पीड़ितों के रोजगार के बारे में सोचना चाहिये। गौरीकुंड के आपदा पीड़ितों ने चेतावनी देते हुये कहा कि यदि गौरीकुंड के आपदा पीड़ितों के रोजगार के बारे में नहीं सोचा गया तो उग्र आंदोलन करने के लिये बाध्य होनाा पड़ेगा।

 

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