उत्तराखंड

मलु शाही और रजुलि की प्रेम कहानी: 14वीं सदी की कुमाऊँनी प्रेम कहानी..

मलु शाही और रजुलि की प्रेम कहानी: 14वीं सदी की कुमाऊँनी प्रेम कहानी..

उत्तराखंड: 14वीं सदी में मलु शाही कुमाऊँ के बैरत राज्य के राजकुमार थे। रजुलि भोट देश के एक व्यापारी की बेटी थी। रौजलि के जन्म से पहले ही उसके पिता ने उसकी शादी तिब्बत के राजकुमार से तय कर चुके थे। एक बार रजुलि अपने पिता के साथ तिब्बती नमक बेचने और कुमाऊँनी चावल ख़रीदने बैरत राज्य आए। बैरत के राजकुमार और रजुलि ने एक दूसरे को देखा और एक ही नज़र में मोहब्बत हो गई। दोनो छुप छुप कर मिलने लगे। जब रजुलि के पिता को इसकी खबर हुई तो वो वापस भोट देश पहुँचकर सबसे पहले रजुलि की शादी तिब्बत के राजकुमार से करा दी।

 

रजुलि अपने ससुराल तिब्बत चली तो गई पर मोहब्बत की याद में एक दिन मौक़ा मिलते ही वो वहाँ से भाग गई। सात हिमालय पार करके अंततः वो मलु शाही के पास पहुँच गई। अब समय आया मोहब्बत में परीक्षा लेने की घड़ी। एक दिन रजुलि बिना किसी को कुछ बताए बैरत राज्य छोड़कर अपने पिता के पास भोट देश चली गई। वहाँ पहुँचकर उसने अपने प्रेमी मलु शाही को पत्र लिखा, “जब मुझे व्याह कर तिब्बत देश भेज दिया गया था तो मैं रोज़ आपको दुबारा देखने की तमन्ना में तड़पती रही, अब आपको वो तमन्ना दिखाने की बारी है, क्या आप मुझ तक पहुँच सकते हैं अपनी मोहब्बत को पाने के लिए?

 

मलु शाही ने अपनी सेना और जादूगरों के साथ योगी का भेष बदलकर भोट देश की तरफ़ चल दिया। उधर तिब्बत का राजा और रजुलि का पति भी अपनी सेना और जादूगर लेकर भोट देश पहुँच गया। दोनो तरफ़ के जादूगरों के बीच युद्ध हुआ और अंततः मोहब्बत की जीत हुई। रजुलि को डोली में बिठाकर बैरत लाया गया। ये कहानी आज भी कुमाऊँ में हरकिया समाज के लोग नाटकमयी और संगीतमय रूप में सुनाते हैं।

कुमाऊँ में दो देश थे। ‘भुट देश’ और ‘पहाड़ देश’। ’भुट देश’, भूटिया जनजाति का देश था और बैरत राज्य ‘पहाड़ देश’ का हिस्सा था! तिब्बत और दक्षिणी कुमाऊँ के बीच बसा क्षेत्र जिनकी चोटियाँ कुमाऊँ की चोटियों से कहीं अधिक ऊँची और खूबसूरत थी और है। 1960 तक तिब्बत और कुमाऊँ के बीच व्यापार भूटिया ही किया करते थे। ‘पहाड़ देश’ में तीन तरह के लोग भी रहते थे। ब्रह्म, ख़सिया और डोम। ब्रह्म चौदहवीं सदी में मैदानो से आकर इधर बस गए जबकि अपने आप को आर्य कहने वाले ख़सिया ब्रह्म के आने से पहले से ही क्षेत्र में जमे हुए थे।

 

इन्होंने वेद ग्रंथों का पालन नहीं किया इसलिए इन्हें नीच करार दे दिया गया। मनोरंजन के साथ धर्म-पाठ व जागर के साथ देवी-देवता, भूत-प्रेत करने के लिए डोम समाज से हरकिया और खिस्सा-कहानी और संगीत सुनने के लिए ढोली नामक लोगों को अलग कर दिया। डोम, बाक़ी हिंदुस्तान की तरह यहाँ भी आर्यों के बंदी-ग़ुलाम थे।

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