दिल्ली : 36 साल बाद आसमान में ब्लूमून और सुपरमून का अद्भुत नजारा दिखेगा। लेकिन इसका बुरा असर अभी से दिखना शुरू हो गया है। वैज्ञानिकों ने उत्तर भारत में भूकंप का कारण ब्लूमून को भी बताया है।
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के भू भौतिकी समूह के अध्यक्ष वरिष्ठ भूकंप विज्ञानी डॉ सुशील कुमार ने बताया कि, बुधवार को आया भूकंप ब्लूमून का असर भी हो सकता है। ब्लूमून में बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण होता है। यह बहुत प्रभावशाली होता है। इसके प्रभाव तो ज्वार भाटा तक आ सकता है।
कहा कि, हिमालय क्षेत्र में लगातार भूकंप के झटकों से भूस्खलन जोन बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन नए जोनों की वजह से हिमालय क्षेत्र की डेमोग्राफी में भी बदलाव आ सकता है। वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र में एकत्र हो रही भूगर्भीय ऊर्जा और नए भूस्खलन जोन के मद्देनजर सुरक्षित स्थलों को चिन्हित करने की सलाह दी है।
31 जनवरी 2018 को होने वाली यह खगोलीय घटना न केवल भारत बल्कि विश्व के कई देशों में देखी जा सकेगी। इससे पहले चंद्रग्रहण और ब्ल्यू मून 30 दिसंबर 1982 को एक साथ थे। इस घटना में चंद्रमा का रंग भी बदला हुआ नजर आएगा।
बता दें कि, दिल्ली एनसीआर में भूकंप के बाद उत्तराखंड में भी लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए। आपदा प्रबन्धन के मुताबिक, 6.2 मैग्नीट्यूड के भूकंप का झटका महसूस किया गया है। जानकारी के मुताबिक इसका केंद्र अफगानिस्तन, तजागिस्तान बॉर्डर था।