उत्तराखंड

आमजन के लिए बने हैं नियम-कानून, शायद जनप्रतिनिधियों के लिए नहीं

आम लोगों के लिए बने हैं नियम-कानून, शायद जनप्रतिनिधियों के लिए नहीं

पता नहीं क्यों रह-रह कर एक ही बात कचोटती रहती है कि नेताजी अपना आचरण कब बदलेंगे।

देहरादून : यही फर्क आम आदमी और वीवीआइपी में। नियम-कानून तो आमजन के लिए बने हैं, जनप्रतिनिधियों के लिए शायद नहीं। पता नहीं क्यों, रह-रह कर एक ही बात कचोटती रहती है कि नेताजी अपना आचरण कब बदलेंगे। हालिया एक वाकये ने फिर से दिमाग की बत्ती जला डाली। सवाल खड़ा हुआ कि नेताजी को ‘सुपर दर्जा’ कानून तोड़ने के लिए मिला है क्या।

इस बार कड़ी प्रदेश के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक से जुड़ी है। लॉकडाउन चल रहा है, पर मंत्री जी का भीड़ जुटाने का शौक कम नहीं हो रहा। हालिया दिनों में वह एक समारोह में बतौर अतिथि शरीक हुए, बदकिस्मती से पुरस्कार पाने वाला एक शख्स अब कोरोना पॉजिटिव निकल आया। नियमत: समारोह में जुटे सभी लोगों को क्वारंटाइन किया जाना था। मंत्रीजी ने स्वीकारा भी, लेकिन क्वारंटाइन का नंबर आया तो मुकर गए। अब बेधड़क घूम रहे हैं। समझे बबुआ, इसे कहते हैं सत्ता की हनक।

स्वास्थ्य विभाग का नायाब फार्मूला…

सूबा एक, महकमा एक और नियम शख्सित को देखकर। यही परिचय है अपने स्वास्थ्य महकमे का। काबीना मंत्री सतपाल महाराज के घर दिल्ली से मेहमान क्या आए कि स्वास्थ्य महकमे को क्वारंटाइन की परिभाषा ही बदलनी पड़ गई। मेहमानों की रेड जोन से आमद का पता चलने पर विभाग ने मंत्रीजी के निजी आवास को क्वारंटाइन में तब्दील कर दिया। कोरोना की गाइडलाइन के मुताबिक यही किया जाना था, पर कहते हैं ना वक्त आने पर ही अपनों और अपने रुतबे की पहचान होती है। स्वास्थ्य विभाग ‘अपनेपन’ का अहसास कराने के लिए दूर की कौड़ी खोजकर लाया। उसने मंत्री आवास से एक गेट पर क्वारंटाइन का पर्चा चस्पा कर दिया और दूसरी तरफ से गेट को यूं ही छोड़ दिया। अब मंत्रीजी बोल रहे कि वह क्वारंटाइन किए गए गेट से नहीं, दूसरे वाले गेट से आ जा रहे हैं। अब ये विभाग की मेहरबानी या मजबूरी वही जाने।

रेलवे की कथनी और करनी…

देश दुनिया में इनदिनों एक ही बात पर जोर है कि कोरोना से बचना है तो एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाओ। सरकारी, गैर सरकारी और स्वयंसेवी संगठन इसके लिए बाकायदा जागरूकता अभियान चलाए हुए हैं। शारीरिक दूरी कैसे बनाई जाए, इसके तौर-तरीके बताए जा रहे हैं। शायद रेल विभाग को यह बात अभी तक ठीक से समझ नहीं आई। हालांकि, रेलवे इसे कभी नहीं स्वीकारेगा, लेकिन सोलह आना यही सच है। नजारा देखना तो चले आइए कभी रेलवे स्टेशन की तरफ, पता चल जाएगा कौन सही और कौन गलत। प्रवासियों को एक से दूसरे राज्यों को भेजने के लिए चलाई जा रही श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें रेलवे की चुगली कर रही हैं। देहरादून और हरिद्वार से संचालित स्लीपर और जनरल बोगी वाली इन ट्रेनों की हर बोगी में पूरी क्षमता के बराबर यात्री ठूंसे जा रहे हैं। गजब! प्लेटफार्म पर फिजिकल डिस्टेंसिंग पूरी, पर बोगी में दाखिल होते ही सब ध्वस्त।

दूध का जला छांछ भी …

दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। कुछ यही हाल है पर्वतीय क्षेत्र के गांवों का। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लोग दहशत में हैं। सात सौ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, हालांकि, सौ से अधिक स्वस्थ हो चुके हैं और मृतकों की तादाद चार है। फिर दहशत बरकरार है। कारण है पहाड़ चढ़ता कोरोना। अब तक ग्रीन जोन में शामिल रहे चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, चम्पावत और पिथौरागढ़ अब ऑरेंज जोन बन चुके हैं।

देश के अंतिम गांव चमोली जिले का माणा हो या टिहरी जिले का सुदूरवर्ती गांव गंगी, दोनों ने अपने यहां पूर्ण लॉकडाउन घोषित कर दिया है। इनमें अब कोई प्रवेश नहीं कर सकता। पंचायत का निर्णय है कि चाहे ग्रामीणों के अपने ही लोग क्यों न हो, गांव में घुसने से पहले उन्हें क्वारंटाइन अविध पूरी करनी होगी। दो टूक बोते हैं, स्वागत को तैयार, पर क्वारंटाइन पूरा होने के बाद।

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