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IAS बनने के लिए छोड़ी थी HR मैनेजर की नौकरी, डिप्रेशन में आकर बन गई कूड़ा बीनने वाली..

IAS बनने के लिए छोड़ी थी HR मैनेजर की नौकरी

IAS बनने के लिए छोड़ी थी HR मैनेजर की नौकरी, डिप्रेशन में आकर बन गई कूड़ा बीनने वाली..

देश-विदेश: महात्वाकांक्षी लोगों पर कभी-कभी तनाव (Depression) कितना हावी हो जाता है,कि उनकी मानसिक और शारीरिक स्थति तक बदल जाती है। जो कुछ लोगों को तो थोड़े समय के लिए ही रहती है  कुछ लोगो में काफी लंबे समय तक रहती है और एक समय बाद उन लोगों का यही डिप्रेशन एक भयानक रूप भी ले लेता हैइस स्थिति में लोगों का मन ज़िंदगी से भर जाता है और उस इंसान का मन किसी भी काम में नहीं लगता और वह व्यक्ति अकेला रहना ज्यादा पसंद करता है जिसके कारण उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी और उसके कामकाज में बुरा प्रभाव पड़ता है। इसे इस खबर से समझा जा सकता है। 

हैदराबाद की एक युवती ने पहले तो आईएएस बनने का सपना लेकर मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी खासी एचआर मैनेजर की नौकरी छोड़ दी।  फिर सालों तक मेहनत के बाद जब आईएएस क्लियर नहीं कर पाई, तो डिप्रेशन में आ गई. सिर्फ यही नहीं, उसके दिमाग की बीमारी इतनी बढ़ गई की वह अब ‘कूड़ा बीनने वाली’ बन गई है। 

 

वो मल्टीनेशनल कंपनी की HR थी IAS की तैयारी कर रही थी लेकिन डिप्रेशन ने जिंदगी इस कदर तबाह कर दी कि आज वो कुड़ा बीनने वाली बन गयी। जानकारी के मुताबिक, रजनी नाम की यह युवती वारंगल (तेलंगाना) की रहने वाली है।  23 जुलाई को वह विक्षिप्त हालत में गोरखपुर के तिवारीपुर थाने के पास मिली। जुलाई की प्रचंड गर्मी में उसके शरीर पर आठ सेट कपड़े थे।  वह कूड़ेदान के पास फेंके हुए सूखे चावल बीन कर खा रही थी। इसकी जानकारी किसी ने पुलिस को दी, जिसके बाद दो सिपाही उसके पास पहुंचे तो युवती सिपाहियों को देखकर फरार्टेदार अंग्रेजी बोलने लगी। 

लड़की टूटी-फूटी हिंदी भी बोल रही थी।  सिपाहियों ने इसकी जानकारी अधिकारी को दी।  पुलिस वालों ने उसे मातृछाया चैरिटेबल फाउंडेशन के सुपुर्द कर दिया।  जहां तीन महीने तक युवती का इलाज चला।  फिर कुछ नॉर्मल होने पर उसने अपने परिवार के बारे में बताया। युवती के पिता ने मातृछाया के अधिकारियों को बताया कि साल 2000 में एमबीए की पढ़ाई प्रथम श्रेणी से पास की तो उसका इरादा आईएएस बनने का था।  दो बार सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी लेकिन दोनों बार उसे नाकामयाबी मिली।  इसके बाद वह डिप्रेशन में रहने लगी। डिप्रेशन से बचने के लिए उसने एचआर की जॉब की लेकिन वह नौकरी भी छूट गई। 

 

इसके बाद दिमागी संतुलन तेजी से बिगड़ने लगा। नवंबर में उसने घर छोड़ दिया और फि‍र वह घूमते-घूमते गोरखपुर पहुंच गई। बीते 23 जुलाई को उसे पुलिस ने मातृछाया फाउंडेशन में सुपुर्द किया ।  इलाज और काउंसलिंग से रजनी की हालत सुधरी तो उसने घर का पता बताया।  तेलंगाना के वारंगल के हनमकोंडा में रजनी का परिवार रहता है।  मातृछाया की टीम ने उसके परिजनों से संपर्क किया।  परिवार में दिव्यांग पिता, बूढ़ी मां और एक भाई है लेकिन तीनों ने गोरखपुर आने से इनकार कर दिया। इसके बाद मातृछाया की टीम रजनी को हवाई जहाज से लेकर उसके घर पहुंची। 

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