उत्तराखंड

क्यंूजा घाटी के अखोडी गांव निवासी कुंवर सिंह की दर्द भरी दांस्ता..

दो जून की रोटी के लिए किया था पलायन, अब लौटना पड़ा गांव.. 

कोरोना महामारी के कारण दुखों के पहाड़ तले दबा है कुंवर का परिवा..

बाल्यावस्था में माता-पिता भी गुजरे, चाचा चाची ने की परवरिश.. 

रीढ़ की हड्डी में परेशानी होने से परेशान हैं कुंवर, दूसरों के मकान पर आसरा लिए है कुंवर का परिवार… 

रुद्रप्रयाग। माता-पिता का साथ बचपन में छूटने से बाल्यावस्था की परवरिश चाचा-चाची ने की और शादी होने के बाद दो जून की रोटी की तलाश में पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। जीवन में खुशियां लौटते ही बीमारी ने सुख चैन छीन लिया। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण अपने गांव को लौटना पड़ा और अब दूसरे के मकान पर सिर छिपाने को विवश हैं। आगे का जीवन कैसे यापन होगा, यह समझ नहीं आ रहा है।

यह कोई फिल्म की कहानी नहीं है, बल्कि क्यंूजा घाटी के अखोडी गांव निवासी कुंवर सिंह की दर्द भरी दांस्ता हैं। कुंवर सिंह के माता-पिता का निधन बचपन में होने के कारण उनका लालन-पालन चाचा चाची ने किया। लगभग 18 वर्ष पूर्व कंुवर सिंह की शादी सुनीता देवी से हुई तो कंुवर सिंह को जीवनयापन करने की उम्मीदे बढ़ती गयी। माता-पिता का पौराणिक मकान खण्डहर में तब्दील होने के कारण कंुवर सिंह दो जून रोटी की तलाश व भविष्य में सिर छिपाने के लिए मकान बनाने की उम्मीदों को लेकर पत्नी सहित फरीदाबाद चले गये तो समय रहते कंुवर सिंह का पुत्र सचिन व पुत्री स्वाति ने घर में जन्म लिया तो दोनों पति पत्नी की आशाओं की करण फिर जगी कि आज दो वक्त की रोटी नसीब होने के साथ ही परमात्मा ने परिवार की खुशियां लौटा दी हैं। सात वर्ष पूर्व परिवार के अरमान तब बिखर गये, जब कुंवर सिंह की रीढ़ की हड्डी में परेशानी आने लगी।

कंुवर सिंह के इलाज पर लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ और परिवार ने जिन अरमानों से कुछ पैंसे बचाकर रखे थे तो वे सब इलाज पर खर्च होने से परिवार के सामने दो जून रोटी का संकट खड़ा होने लगा। परिवार किसी तरह से दो जून की रोटी कमा कर जिन्दगी की गुजर-बसर कर ही रहा था कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हुए लाॅक डाउन से परिवार के सामने दुखांे का पहाड़ खड़ा होने के साथ ही जिंदगी के अरमान धरे के धरे रह गये।

लाॅक डाउन के दो माह फरीदाबाद में गुजारने के बाद परिवार को अपने पैत्रिक गांव लौटना पड़ा। गाँव लौटने के बाद कंुवर सिंह का इलाज भी रुक गया। साथ ही परिवार ने दूसरों की मकान पर आसरा ले रखा है। दुख भरे लिहाज में कंुवर सिंह बताते हैं कि विधाता ने मुझे कदम-कदम पर ठोकरे दी हैं। उनकी पत्नी सुनीता देवी बताती हैं कि पति की बीमारी व लाॅक डाउन ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है। 14 वर्षीय पुत्र सचिन व 12 वर्षीय पुत्री स्वाति भी मासूम भरे शब्दों में कहती हैं कि बारिश होते ही छत से पानी गिरने लगता है।

इस परिवार के सामने विपदाओं का पहाड़ होने से गांव के लोग मदद कर रहे हैं। शासन-प्रशासन या सामाजिक संगठन इस परिवार की मदद करते हैं तो परिवार की समस्याएं कुछ कम हो सकती है। ग्रामीण गौरव कठैत का कहना है कि इस प्रकार के परिवारों की मदद करना हर एक का मानवीय धर्म होना चाहिए।

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