उत्तराखंड

खटीमा गोलीकांड की 26वीं बरसी आज..

राज्य निर्माण के लिए दी थी सात लोगों ने शहादत..

आज भी अपने सपनों के उत्तराखंड के लिए लड़ रहे हैं आंदोलनकारी..

 

 

उत्तराखंड: एक सितंबर 1994 का वह दिन आज भी हर उत्तराखंडी के जेहन में ताजा है। तब पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थी। खटीमा गोलीकांड की आज 26वीं बरसी है। इस तारीख के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द भी छलकता है।  राज्य निर्माण के लिए शहादत देने वालों को याद करते हुए आंदोलनकारी बुधवार को शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

 

साथ ही शहीदों के सपनों का राज्य बनाने के लिए सरकार को जगा रहे हैं। राज्य निर्माण की मांग को लेकर 1 सितंबर 1994 को खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थीं। इस दौरान सात लोगों ने शहादत दी और कई लोग घायल हुए। आज भी इस दिन के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द छलकता है।

 

इस वीभत्स कांड के 26 बरस हो गए हैं, लेकिन आंदोलनकारी आज भी अपने सपनों के उत्तराखंड के लिए लड़ रहे हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के जिला अध्यक्ष प्रदीप कुकरेती का कहना है कि अलग राज्य का सपना तो पूरा हुआ, लेकिन राज्य गठन से पूर्व देखे गए सपने आज भी बस सपने ही हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण के लिए शहादत देने वालों को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी, जब उनके सपनों का राज्य निर्माण होगा। कहा कि आंदोलनकारियों व शहीदों के परिजनों का दर्द सरकार नहीं समझती। तभी तो इतने वर्षों बाद भी आंदोलनकारी अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं।

 

 

खटीमा गोलीकांड ने दी थी राज्य आंदोलन निर्माण की मांग को धार..

उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को धार देने का काम खटीमा गोलीकांड ने किया। एक सितंबर का दिन राज्य के लोगों के दिलों में खटीमा कांड के जख्मों को ताजा कर देता है। और अगले ही दिन दो सितंबर को मसूरी कांड की यादें उन जख्मों को और भी पीड़ादायक बना जाती है। खटीमा गोलीकांड की खबर ने कुछ समय के लिए लोगों को परेशान किया, लेकिन अलग राज्य की मांग का जुनून लोगों पर सवार था। अपनों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देने का संकल्प लेकर आंदोलनकारी आगे बढ़े और दमनकारी नीति का विरोध करते हुए राज्य निर्माण की मांग के लिए और मजबूत से लड़े।

 

राज्य आंदोलनकारी ओमी उनियाल का कहना हैं कि उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में शहादत का सिलसिला खटीमा गोलीकांड से ही शुरु हुआ। इसके बाद हमारे कई भाईयों ने राज्य के लिए शहादत दी, लेकिन शहीदों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया। आंदोलन की लड़ाई के लिए जब खून बहाया जाने लगा तो वह मंजर आज भी हमें बेहद पीड़ा पहुंचाता है, लेकिन कुर्सी पर बैठे नेताओं को शहीदों के बलिदान से कोई मतलब नहीं है। इसलिए आज भी उनके सपनों का राज्य नहीं बन सका।

 

 

 

 

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